लीथियम आयन बैटरी की मदद से दौड़ेंगे रेल इंजन | शाइन जैकब / September 10, 2019 | | | | |
वाहन कंपनियां तो लीथियम आयन बैटरी पर जोर दे ही रही हैं, भारतीय रेल की नजर भी अब इस पर टिक गई है। हो सकता है कि जल्द ही आपको बैटरी से चलने वाली रेलगाड़ी में बैठने का मौका मिल जाए क्योंकि विद्युतीकरण पर जोर देने के बाद रेलवे लीथियम आयन बैटरी से चलने वाल इंजन तैयार करने की संभावना तलाश रहा है। ऐसे 10 रेल इंजन चितरंज लोकोमोटिव वक्र्स में तैयार होंगे। पूर्व रेलवे में ऐसी बैटरी से चलने वाला इंजन पहले ही आजमाया जा चुका है। रेलवे के एक वरिष्ठï अधिकारी ने बताया, 'भारतीय रेलवे के पूर्ण विद्युतीकरण की योजना के जोर पकडऩे के साथ ही बैटरी से चलने वाले इन इंजनों का इस्तेमाल शंटिंग जैसे छोटे कामों या स्टेशन के भीतर ही छोटे उपकरणों को ढोने अथवा छोटी दूरी तय करने के लिए किया जाएगा।' फिलहाल शंटिंग का काम डीजल इंजन से लिया जाता है, लेकिन उसमें बहुत अधिक ईंधन जलने पर भी कम ऊर्जा ही उत्पन्न होती है।
रेलवे बैटरी वाले इंजनों की योजना पर उस समय बढ़ रहा है, जब नीति आयोग 2023 तक सभी तिपहिया वाहनों और 2025 तक सभी दोपहिया वाहनों को ई-वाहनों में बदलने की बात कह रहा है। प्रयोग के तौर पर पूर्व रेलवे के कांचरापाड़ा रेलवे वर्कशॉप ने एक मोटर कोच को बैटरी वाले 25 केवी शंटिंग इंजन में बदल दिया है। अधिकारी ने कहा, 'यह तार (25 केवी) के साथ भी काम करेगा और बिना तार के भी चलेगा ताकि ग्रिड से बिजली नहीं मिलने पर भी इंजन काम कर सके। मगर बैटरी से चलते समय इंजन मालगाड़ी या यात्री गाड़ी को कम रफ्तार पर ही खींच पाएगा।'
केवल एक स्विच दबाने पर यह इंजन बिजली के बजाय बैटरी से चलना शुरू कर देगा। बैटरी से चलने वाला इंजन 24 डिब्बों वाली सवारी गाड़ी और 58 बॉक्सन वाली मालगाड़ी को खींच सकेगा। भारतीय रेल बची हुई ब्रॉड गेज लाइनों का 2021-22 तक विद्युतीकरण करना चाहता है। इसीलिए शंटिंग के लिए बैटरी चालित इंजनों का निर्माण बड़े पैमाने पर किया जाएगा। 2009 से 2014 के दौरान सालाना औसतन 608 मार्ग किलोमीटर (आरकेएम) लाइन का विद्युतीकरण किया गया। यह रफ्तार 2014 और 2019 के बीच बढ़कर सालाना 2,737 मार्ग किलोमीटर हो गई।
सरकार की कार्ययोजना के मुताबिक 2019-20 में 7,000 मार्ग किलोमीटर का विद्युतीकरण किया जाएगा, जिसके बाद 2020-21 और 2021-22 में हर साल 10,500 मार्ग किलोमीटर का विद्युतीकरण किया जाएगा। चालू वित्त वर्ष में अभी तक करीब 1,000 किलोमीटर का ही विद्युतीकरण हो पाया है। अधिकारियों को साल के अंत तक इसमें तेजी आने की उम्मीद है। दिलचस्प है कि रेलवे पहली बार बैटरी वाले इंजनों का इस्तेमाल नहीं कर रहा है। इससे पहले सोनारपुर कार शेड ने 2000 के दशक के आरंभिक वर्षों में ही एक पुराने मोटर कोच को बैटरी से चलने वाले शंटर में बदल दिया था। इसे परंपरागत ईएमयू और मेमू के खाली पड़े उपकरणों तथा परंपरागत वातानुकिलत कोचों की ट्रैक्शन बैटरियों (2 वोल्ट/1100 एएच) की मदद से विकसित किया गया था। अधिकारी ने कहा, 'इस बार अंतर यह है कि रेलवे भी लीथियम आयन क्लब में शामिल हो रहा है।'
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