काले मोती : उद्यमी वैज्ञानिक से हाथ मिलाएगा कृषि संस्थान | भाषा / नई दिल्ली September 08, 2019 | | | | |
भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) का अंडमान-निकोबार द्वीप समूह प्रकोष्ठ वहां समुद्री जल में मोती की खेती पर अनुसंधान कर रहे निजी क्षेत्र के उद्यम मरीन एक्वाकल्चर इंडस्ट्रीज के साथ सहयोग का समझौता करने की संभावना तलाश रहा है। विगत में काला पानी के नाम से चर्चित अंडमान के कुछ तटीय क्षेत्र अपनी पारिस्थितिकी के कारण पर्ल फार्मिंग (मोती की खेती) के लिए काफी उपयुक्त समझे जाते हैं। वैज्ञानिक डॉ. अजय सोनकर के नेतृत्व में उद्यम मरीन एक्वाकल्चर इंडस्ट्रीज पोर्ट ब्लेयर के पास तटीय क्षेत्र में काले मोती की खेती के अनुसंधान और विकास में लगी है।
डॉ. सोनकर ने कहा कि आईसीएआर के पोर्टब्लेयर स्थित सेंट्रल आइलैंड एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टिट्यूट (सीआईएआरआई) ने हमारे साथ सहयोग के प्रस्ताव पर रुचि दिखाई है। यह सहयोग छात्रों, शोधकर्ताओं और मोती की खेती करने के इच्छुक उद्यमियों व किसानों के लिए नई संभावनाएं पैदा करने में मदद करेगा। सीआईएआरआई के कार्यकारी निदेशक डॉ. ए कुंडू ने कहा कि हम पर्ल एक्वाकल्चर (समुद्री मोती की खेती) के क्षेत्र में काम करने वाले जानकारों का एक प्रतिनिधिमंडल डॉ. सोनकर के पास सहयोग की संभावनाओं का पता लगाने के लिए भेज रहे हैं।
उन्होंने कहा कि हमारे संस्थान की कोशिश है कि अंडमान के विशाल समुद्री संसाधनों का देश हित में उपयोग किया जाए। पर्ल एक्वाकल्चर के लिए अंडमान की समुद्री परिस्थितियां बेहद अनुकूल हैं। हम सोनकर के काम की जानकारी ले रहे हैं और उन्होंने सहयोग देने की मंशा जताई है। उन्होंने कहा कि यह सहयोग न सिर्फ हमारे यहां पढ़ रहे देश-विदेश के छात्र-छात्राओं को इस क्षेत्र की व्यावहारिक जानकारी प्रदान करेगा, बल्कि अंडमान को काले मोती के केंद्र के रूप में विकसित करने में उत्प्रेरक बनेगा।
डॉ. कुंडू ने कहा कि डॉ. सोनकर द्वारा विकसित किया गया काला मोती दुनिया में अनोखा है। उन्होंने कहा कि हम इस संबंध में संस्थान के अंशधारकों की बैठक करने जा रहे हैं और जल्द ही इस दिशा में डॉ. सोनकर के साथ प्रौद्योगिकी अंतरण के संबंध में करार होने की संभावना है। हमारी बातचीत काफी आगे बढ़ चुकी है। मूलत: इलाहाबाद के निवासी अजय सोनकर ने वर्ष 1994 में मीठे पानी में मोती का उत्पादन कर दुनिया भर में भारत को ख्याति दिलाई थी।
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