एनटीपीसी को कोयले की कमी से राहत नहीं | श्रेया जय / नई दिल्ली September 02, 2019 | | | | |
भारत की सबसे बड़ी बिजली उत्पादक एनटीपीसी लिमिटेड ने पाया है कि उसकी कुछ इकाइयां पिछले दो वित्तीय वर्षों से कोयले की कमी के संकट से जूझ रही हैं। इसकी वजह कम उत्पादन और केंद्र सरकार द्वारा कोयले के आयात पर प्रतिबंध है। केंद्रीय बिजली नियामक आयोग (सीईआरसी) की हाल की याचिका में उसने कहा है कि उसकी 4 इकाइयां कोयले की कमी से जूझ रही हैं, जिसकी वजह से राज्यों से कम भुगतान मिल रहा है। सीईआरसी ने एनटीपीसी को इस आधार पर कोई राहत देने से इनकार कर दिया है कि बिजली के खरीदार ईंधन आपूर्ति के जोखिम के चलते उत्पादक को भुगतान नहीं कर रहे हैं। लेकिन इस आदेश से कोयले की कमी की चिंता बढ़ गई है, जो 2016 के बाद से ही चल रही है।
एनटीपीसी ने सीईआरसी में मानक के मुताबिक सालाना संयंत्र उपलब्धता के आधार (एनएपीएएफ) पर राहत देने के लिए याचिका दायर की थी, जो कम से कम 85 प्रतिशत होना चाहिए। एनएपीएएफ से उस अवधि का संकेत मिलता है, जिससे संयंत्र से बिजली की आपूर्ति की उपलब्धता तय होती है। एनटीपीसी ने दावा किया कि उसकी इकाइयां न्यूनतम उपलब्धता से नीचे हैं। उसने अधिकतम उत्पादन से नीचे उत्पादन रहने के लिए कोल इंडिया और केंद्र सरकार की कोयला आयात न करने की नीति को दोषी करार दिया। सरकार ने कोयला न आयात करने की नीति की घोषणा 2015 में की थी।
अगर एनएपीएएफ में कोई चूक होती है तो इसका असर राज्यों द्वारा एनटीपीसी को किए जाने वाले भुगतान की तय लागत पर पड़ता है। एनटीपीसी द्वारा लिए जाने वाले शुल्क में पूंजी की नियत लागत के साथ ईंधन की परिवर्तनीय लागत शामिल होती है। जिन राज्यों ने एनटीपीसी के साथ बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किया है, उनके लिए तय लागत का भुगतान अनिवार्य है, भले ही वे बिजली नहीं खरीदते हैं। लेकिन अगर उत्पादक के पास बिजली की उपलब्धता नहीं होती है तो तय लागत का एक हिस्सा कम कर दिया जाता है।
एक ई-मेल के जवाब में एनटीपीसी के प्रवक्ता ने कहा कि 2017-19 के दौरान एनटीपीसी को पूरा सालाना नियत शुल्क उन इकाइयों से नहीं मिला, जो कोयले की कमी से जूझ रही हैं। उन्होंने कहा, 'इन संयंत्रों से कम वसूली के कारण इन वर्षों के दौरान एनटीपीसी के मुनाफे पर असर पड़ा है।' उन्होंने कहा कि सीईआरसी के आदेश का कोई अतिरिक्त वित्तीय असर नहीं है। इस मसले पर गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, पश्चिम बंगाल और केरल सरकार के साथ एनटीपीसी का विवाद है। सुनवाई के दौरान इन लाभार्थी राज्यों, खासकर गुजरात ने एनटीपीसी के दावे का यह कहते हुए विरोध किया कि ईंधन की उपलब्धता के जोखिम को अकेले उत्पादक को वहन करना चाहिए।
कुछ राज्यों ने यह भी कहा कि एनटीपीसी की इकाइयां अक्षय ऊर्जा की उपलब्धता बढऩे की वजह से भी बिजली की आपूर्ति नहीं कर रही हैं। सीईआरसी ने ज्यादा मांग वाली अवधि के दौरान कोयले की आपूर्ति सुनिश्चित व नियमित करने की एनसीपीसी की मांग को खारिज कर दिया। नियामक ने कहा कि यह उसके दायरे से बाहर है। नियामक को दी गई याचिका में एनटीपीसी ने कहा, 'कोयले की उपलब्धता कम रही है, और इसकी वजह से कोयले की सुनिश्चित आपूर्ति अप्रैल 2017 से नहीं हो रही है।'
सरकारी बिजली उत्पादक ने यह भी आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार की नीतियों की वजह से कोयले की कमी से जूझना पड़ रहा है। इसने कहा है कि नई कोयला वितरण नीति (एनसीडीपी-2013) में सुनिश्चित घरेलू कोयला आपूर्ति 65 प्रतिशत तक सीमित कर दिया गया है। एनटीपीसी ने यह भी कहा है कि कोयला मंत्रालय ने 2015 में सभी तरह के कोयले का आयात रोकने का फैसला लिया। इससे आयातित कोयले की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगता है।
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