कृषि जिंस कीमतों में तेजी का अनुमान | दिलीप कुमार झा / मुंबई August 30, 2019 | | | | |
कृषि जिंसों की कीमतें इस साल औसत 10-12 प्रतिशत महंगी रहने का अनुमान है। कुछ इलाकों में ज्यादा और कुछ में कम बारिश की वजह से फसल को हुए नुकसान की वजह से इस साल फसल की कम पैदावार और कीमतें अधिक रहने की आशंका जताई गई है। जहां कम पैदावार और गन्ने का इस्तेमाल जैव ईंधन उत्पादन में किए जाने की वजह से चीनी की कीमतों में तेजी आने की संभावना है, वहीं सोयाबीन, जूट, धान समेत अन्य फसलें इस साल सपाट स्थिति में बने रहने का अनुमान है। दिलचस्प तथ्य यह है कि कृषिगत जिंसों की कीमतों में वृद्घि से इस साल भारत की खाद्य मुद्रास्फीति में ज्यादा तेजी आने की संभावना नहीं है, क्योंकि वैश्विक बाजार में कीमतें कमजोर हैं और कीमत वृद्घि की स्थिति में सरकार के हस्तक्षेप के तहत बफर स्टॉक की बहुतायत है। भारत की खाद्य मुद्रास्फीति पिछली कई तिमाहियों से धीमी बनी हुई है।
गुरुवार को यहां आयोजित एक कार्यक्रम में क्रिसिल रिसर्च की निदेशक हेतल गांधी ने कहा, 'कम उत्पादन अनुमानों की वजह से कृषिगत जिंसों की कीमतों में इस साल 10 से 12 प्रतिशत तक की तेजी आने के आसार हैं।' लगातार तीन वर्षों की वृद्घि के बाद, भारत में असमान मॉनसून की वजह से खरीफ उत्पादन इस सीजन में 3 से 5 प्रतिशत तक घटने का अनुमान है। इस साल मॉनसून की बारिश में जहां जून में 30 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई, वहीं अगस्त में अतिरिक्त बारिश दर्ज की गई। इस असमान बारिश की वजह से फसलों को नुकसान हुआ है। क्रिसिल द्वारा एकत्रित आंकड़ों में कहा गया है कि चालू सीजन के लिए कुल खरीफ उत्पादन 16.22 करोड़ टन पर रहा जो पूर्ववर्ती वर्ष में 17.07 करोड़ टन दर्ज किया गया था।
विलंब से मॉनसून की शुरुआत से 22 अगस्त तक धान की बुआई में 6.4 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई थी। खरीफ सीजन के कुल रकबे में धान का योगदान 30 प्रतिशत से ज्यादा है। हालांकि कपास और मक्के की खेती का रकबा पिछले सीजन की तुलना में ज्यादा रहेगा, क्योंकि पिछले साल इनकी ऊंची कीमतों ने किसानों को इस साल अतिरिक्त रकबे पर खेती के लिए प्रोत्साहित किया। इस बीच, महाराष्ट्र, ओडिशा और आंध्र प्रदेश में बाढ़ और पश्चिम बंगाल तथा महाराष्ट्र के मराठवाड़ा क्षेत्र में कमजोर बारिश से इस साल खरीफ फसलों की पैदावार प्रभावित होने की आशंका है। इसके अलावा, अगस्त में हुई ज्यादा बारिश से मक्के और धान पर कीट हमले बढऩे से पैदावार प्रभावित होने का अनुमान है। क्रिसिल के मुख्य अर्थशास्त्री धर्मकीर्ति जोशी ने कहा, 'दक्षिण-पश्चिम मॉनसून में तेजी का मतलब है कि अगस्त में कुछ उप-क्षेत्रों में अत्यधिक बारिश। इससे धान की फसल प्रभावित हुई है। हालांकि प्रचुर मात्रा में हुई बारिश से मजबूत रबी उत्पादन की संभावना भी बढ़ी है, क्योंकि भूजल स्रोतों में सुधार आया है और जलाशयों का स्तर बढ़ा है।' जुलाई में बारिश तेज हुई। अगस्त के अंत तक, कुल बारिश सामान्य की तुलना में 1 प्रतिशत ऊपर थी, जो लंबी अवधि के औसत (एलपीए) के संदर्भ में 6 वर्षों में सर्वाधिक है। गांधी का कहना है कि खरीफ पैदावार में कमी से मंडी कीमतों में तेजी आने और कई फसलों का मुनाफा बढऩे की संभावना है जिससे किसानों को राहत मिलेगी।
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