जून 2018 में जब नरेंद्र मोदी ने विश्व पर्यावरण दिवस पर अप्रत्याशित घोषणा की कि भारत सन 2022 तक एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का इस्तेमाल समाप्त करने की नीति अपनाएगा तो लोग हंस रहे थे। इसकी वजह भी थी। दरअसल एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक की राजनीतिक अर्थव्यवस्था को देखते हुए प्रधानमंत्री ऐसा सोच भी कैसे सकते थे? कुछ राज्य सरकारों ने अपने स्तर पर प्रतिबंध लगाने की घोषणा की लेकिन ज्यादातर मामलों में ये निरर्थक साबित हुए। गत 15 अगस्त को स्वतंत्रता दिवस के दिन मोदी ने अपने भाषण में दोहराया कि एक बार इस्तेमाल होने वाले प्लास्टिक का प्रयोग बंद किया जाएगा। इसके लिए उनकी सराहना की जानी चाहिए लेकिन यह कहना जितना आसान है, इस पर अमल करना उतना ही मुश्किल। देश में प्लास्टिक के दो पहलू हैं। एक ओर विनिर्माण समेत सरकार की पहलों और प्रयासों के कारण वाहन क्षेत्र और आधुनिक सिंचाई आदि में प्लास्टिक उत्पादों के लिए नए अवसर उत्पन्न हुए हैं तो वहीं दूसरी ओर एक बार प्रयोग में लाए जाने वाले प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग और उससे जुड़े प्रदूषण को लेकर बढ़ती जागरूकता के बीच राजनीतिक हितों के चलते उसका बचाव किया जा रहा है। कारण यह कि लागत की दृष्टि से संवेदनशील बाजार है जहां प्रमुख रूप से असंगठित और छोटे कारोबारी शामिल हैं। देश और विदेश में प्लास्टिक से जुड़ी अर्थव्यवस्था किस प्रकार बढ़ी और विकसित हुई, इस बारे में विद्वान चीजों को स्पष्ट कर चुके हैं। यह बात प्लास्टिक के इस्तेमाल के बाद उस पर कितना ध्यान दिया जा रहा है, इससे पता चलती है। पश्चिम में पॉलिमर और अन्य उत्पादों का प्रसार सन 1950 के दशक में आरंभ हुआ जब प्लास्टिक कचरे के प्रयोग के बाद की चुनौतियों को लेकर जागरूकता अधिक नहीं थी। परंतु हमारे देश में प्लास्टिक उद्योग की वृद्धि उस समय हुई जब सन 1970 और 1980 के दशक में इसके पर्यावरण प्रभाव को लेकर जागरूकता बढऩे लगी थी। इसलिए इस उद्योग में वृद्धि के साथ-साथ इन उत्पादों का इस्तेमाल करने वाली कंपनियों की प्रतिष्ठा का जोखिम भी बढऩे लगा। बहरहाल, औपचारिक पुनर्चक्रण उद्योग भी इससे कदमताल नहीं कर सका क्योंकि किसी तरह का प्रोत्साहन नहीं जुड़ा है। सबसे उल्लेखनीय आंकड़े दिल्ली के पैकेजिंग सामग्री क्षेत्र से मिलते हैं जो प्लास्टिक उद्योग का सबसे लोकप्रिय क्षेत्र भी है। स्वयंसेवी संगठनों के शोध के मुताबिक राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में 660 ऐसी कंपनियां हैं जो एकल प्रयोग वाला प्लास्टिक बनाती हैं। जबकि 1,242 कंपनियां प्लास्टिक का आयात और निर्यात करती हैं। केवल 272 ऐसी संस्थाएं हैं जो औपचारिक रूप से प्लास्टिक के पुनर्चक्रण और पुन:प्रसंस्करण से जुड़ी हैं। दुनिया की जो 10 नदियां विश्व का 90 प्रतिशत प्लास्टिक समुद्र तक ले जाती हैं, वे सभी भारत में बहती हैं। इनमें सिंधु, गंगा और ब्रह्मपुत्र शामिल हैं। जनवरी 2015 में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा जारी एक रिपोर्ट के मुताबिक देश के शहर हर रोज 15,000 टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न कर रहे थे। 10 टन प्रति ट्रक के हिसाब से यह कचरा 1,500 ट्रक के बराबर था। इसमें से 9,000 टन प्लास्टिक का संग्रह कर उसका पुनर्चक्रण कर लिया जाता जबकि शेष 6,000 टन कचरा यानी 600 ट्रक कचरा नालियों, गलियों या कूड़े के ढेर पर पड़ा रहता है। प्लास्टिक कचरे का 66 फीसदी पॉलिबैग या पाउच के रूप में होता है जिनका इस्तेमाल खाना पैक करने में किया जाता है। देश में सबसे अधिक प्लास्टिक कचरा दिल्ली में उत्पन्न होता है। इसके बाद कोलकाता और अहमदाबाद आते हैं। सन 2017 में लोकसभा में प्लास्टिक कचरे से संबंधित एक प्रश्न का उत्तर देते हुए तत्कालीन पर्यावरण राज्य मंत्री महेश शर्मा ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि ये तीनों शहर एक दिन में 4,059 टन प्लास्टिक उत्पन्न करते हैं। प्लास्टिक के पुनर्चक्रण में सबसे बड़ी बाधा है कचरे को अलग-अलग न करना। शहर-शहर का भी अंतर है। सूरत में शहर के कुल कचरे में प्लास्टिक 12.47 प्रतिशत है जबकि चंडीगढ़ में केवल 3.1 प्रतिशत। प्लास्टिक की बोतलें आसानी से पुनर्चक्रित की जा सकती हैं लेकिन कचरा बीनने वालों को प्लास्टिक की थैली एकत्रित करने के लिए अलग से कोई प्रोत्साहन नहीं है। एक किलो प्लास्टिक थैली एकत्रित करने में बहुत अधिक मेहनत लगती है जबकि बदले में कुछ नहीं मिलता। नतीजा, इसे लेकर सुस्ती बरती जाती है। इस बीच, एकल उपयोग वाले प्लास्टिक के छोटे विनिर्माता विरोध जता रहे हैं। महाराष्ट्र प्लास्टिक ऐंड थर्मोकोल प्रोडक्ट्स ने मार्च 2018 में एक अधिसूचना जारी की जिसके तहत प्लास्टिक बैग और कटलरी के साथ-साथ प्लास्टिक की पैकिंग पर रोक लगाई गई। परंतु इस अधिसूचना के बाद बिना विकल्प सुझाए एकल प्रयोग वाले प्लास्टिक के निर्माताओं और उपयोगकर्ताओं पर अत्यधिक कड़ाई होने लगी। यह प्रतिबंध फेंके जाने वाले प्लास्टिक के निर्माण, बिक्री और इस्तेमाल पर था। इसमें छोटी बोतल, बैग, प्लेट, कटलरी, स्ट्रॉ आदि शामिल थे। इनके निर्माण और बिक्री पर जुर्माना और तीन महीने तक की जेल का प्रावधान था। प्रतिबंध के पहले सप्ताह में 300 से अधिक प्लास्टिक बैग बनाने वाले निर्माताओं को बंदी का सामना करना पड़ा। इससे हजारों लोग एक झटके में बेरोजगार हो गए। प्लास्टिक निर्माताओं, दूध उत्पादकों, छोटे कारोबारियों, पेप्सी और कोका-कोला जैसी कंपनियों तथा एमेजॉन जैसी ई-कॉमर्स कंपनियों के अनुरोध पर सरकार ने नियम शिथिल कर दिए, जिससे उन्हें विकल्प तलाशने का समय मिल गया। एकल इस्तेमाल वाले प्लास्टिक को खत्म करना नरेंद्र मोदी के नेतृत्व की असली परीक्षा होगी। क्या मोदी भाजपा कार्यकर्ताओं को एकल प्रयोग प्लास्टिक का प्रयोग बंद करने के लिए मना पाएंगे?
