तीनों सेनाओं के साझा प्रमुख की क्या होगी संभावित भूमिका | दोधारी तलवार | | अजय शुक्ला / August 21, 2019 | | | | |
सरकार ने बीते 15 दिन में सुरक्षा से जुड़े तीन अहम कदम उठाए हैं। पहला, जम्मू कश्मीर का विशेष राज्य का दर्जा समाप्त कर उसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बांट दिया गया है। दूसरा, रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने परमाणु हथियारों के पहले इस्तेमाल न करने के भारत के पुराने सिद्घांत को नकारते हुए परोक्ष रूप से यह कहा है कि खास परिस्थितियों में भारत भी पहले हमला कर सकता है। तीसरा, स्वतंत्रता दिवस के अपने भाषण में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि वह चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति करने जा रहे हैं। वह तीनों सेनाओं का कमांडर होगा जो सशस्त्र बलों को और प्रभावी बनाएगा। यह स्पष्ट नहीं है कि वह करगिल समीक्षा समिति द्वारा 1999 में की गई अनुशंसाओं तथा 2001 में मंत्री समूह के कहे के मुताबिक पांच सितारे वाला सर्वोच्च पदस्थ होगा जिसे तीनों सेनाओं के प्रमुख रिपोर्ट करेंगे। या फिर नया सीडीएस 2012 के नरेश चंद्र कार्य बल के मुताबिक एक चार सितारा अधिकारी होगा जिसे चीफ्स ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी चेयरमैन का दर्जा मिलेगा जो तीनों सेनाओं का प्रमुख नहीं होगा। वह केवल समकक्ष में सर्वोपरि होगा। एक पांच सितारा सीडीएस की नियुक्ति हालांकि पहला चरण होगी लेकिन यह इशारा होगा कि उच्च रक्षा प्रबंधन को लेकर राजनीतिक इच्छाशक्ति बरकरार है। वहीं चार सितारा अधिकारी की नियुक्ति प्रतीकात्मक होगी।
नए सीडीएस के समक्ष क्या काम होंगे? पहला, थलसेना, नौसेना और वायुसेना के मध्य निर्णायक बनना। इसके लिए पांच सितारा अधिकारी की आवश्यकता होगी क्योंकि इन सेनाओं का नेतृत्व फिलहाल चार सितारा अधिकारियों के पास है। तीनों प्रमुख अपने-अपने क्षेत्र के हित में काम करते हैं इसलिए सीडीएस को बजट आदि के वितरण में गहन ईमानदारी का परिचय देना होगा। उसके निर्णय व्यापक राष्ट्रहित में होने चाहिए। इसके अलावा सीडीएस शीर्ष राजनैतिक नेतृत्व को सलाह देने का भी काम करेगा।
कई वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों को आशंका है कि सीडीएस उनके अधिकार का अतिक्रमण और उनकी सेना को सीमित करेगा। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि तीनों सेनाओं की प्रतिद्वंद्विता सैन्य क्षमताओं को नुकसान पहुंचाएगी। दूसरे विश्वयुद्घ में जब अमेरिका और जापान की जंग चल रही थी तब वॉशिंगटन में अधिकारियों ने टिप्पणी की थी कि इस अभियान की सबसे भीषण लड़ाई सैन्य कमांडर जनरल डगलस मैकआर्थर और नौसेना के उनके समकक्ष अर्नेस्ट किंग के बीच लड़ी गई। बाद में अमेरिका के राष्ट्रपति बनने वाले तत्कालीन जनरल आजइनहॉवर ने अपनी डायरी में लिखा, 'अगर कोई किंग को मार दे तो यह जंग जीतने में मदद मिल सकती है।' आखिरकार वियतनाम युद्घ में विभिन्न सेनाओं के बीच विसंगति के बाद राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन के कार्यकाल में गोल्डवॉटर-निकोलस अधिनियम के जरिये राजनीतिक हस्तक्षेप कर सैन्य कमान के ढांचे में बदलाव लाना पड़ा।
भारत की विभिन्न सेनाओं के बीच रिश्तों को भी ऐसे ही पुनर्गठन की जरूरत है। सन 1962 में चीन के साथ जंग में वायुसेना पूरी तरह बाहर ही रह गई। सन 1965 में पाकिस्तान के साथ लड़ाई में नौसेना के साथ यही हुआ। सन 1999 में करगिल की लड़ाई के वक्त सेनाध्यक्ष जनरल वीपी मलिक ने बताया कि कैसे उन्हें शुरुआती चरण के दौरान वायु सेना का सहयोग पाने की खातिर एयर चीफ मार्शल अनिल टिपणिस पर दबाव बनाना पड़ा। केवल सीडीएस की नियुक्ति करने से यह असहजता दूर नहीं होगी। बिना सेना और रक्षा मंत्रालय के बीच की खाई पाटे कोई सुधार नहीं होता दिखता। नई सर्वोच्च संस्था में सैन्य, अफसरशाही और वित्त तीनों क्षेत्रों पर काम होना चाहिए।
नए सीडीएस को दीर्घावधि की योजना पर काम करना होगा। खासकर तीनों सेनाओं के कार्यबल के ढांचे, कमान और संचार, उनके द्वारा प्रयोग में लाए जाने वाले हथियार तथा तकनीक आदि पर। सीडीएस को तीनों सेनाओं को आधुनिकतम तकनीक से लैस कर भविष्य में साइबर हथियारों और ऐंटी-सैटेलाइट हथियारों से सुरक्षित करना होगा। आंतरिक स्थिति को देखते हुए सीडीएस को ऐसा सैन्य ढांचा बनाना होगा जो प्रशिक्षित हो और आंतरिक सुरक्षा की जिम्मेदारी निभा सके। वह बेहतर प्रबंधन के माध्यम से कुछ धनराशि भी बचा सकते हैं।
सीडीएस की नियुक्ति से जुड़ा सबसे विवादास्पद सवाल यह है कि क्या उन्हें जंगी कार्रवाई की निगरानी और तीनों सेनाओं की संयुक्त सैन्य शक्ति के तालमेल वाले मुख्यालय का नेतृत्व देना चाहिए? या फिर सैन्य ऑपरेशन क्षेत्रीय कमान द्वारा चलाए जाने चाहिए। इन्हें तीनों सेनाओं का समर्थन मिलना चाहिए। फिलहाल तीनों सेनाओं के पास कुल 17 एकल सर्विस कमान हैं। इन्हें तीनों सेनाओं की चार कमान में बांटा जा सकता है। मिसाल के तौर पर पाकिस्तान और चीन की चुनौती को एकीकृत पश्चिमी और पूर्वी कमान से संभाला जा सकता है जिसमें थलसेना और वायुसेना शामिल हों। इस बीच हिंद-प्रशांत क्षेत्र की समुद्री चुनौती को दक्षिण-पश्चिम और दक्षिण-पूर्व कमान से निपटाया जा सकता है जो मुख्यतौर पर नौसेना की होगी लेकिन इसे वायुसेना और थलसेना की मदद मिलेगी।
तीनों सेनाओं की भौगोलिक कमान का विचार अमेरिका जैसी वैश्विक सेना को संगठनात्मक बढ़त दिलाने में कामयाब रहा है। हो सकता है उसकी केंद्रीय कमान इराक में लड़ रही हो जबकि प्रशांत कमान उत्तर कोरिया में लड़ सकती है। भारत में सैन्य परिचालन के मोर्चे इतने दूर नहीं हैं, ऐसे में अमेरिकी ढांचे की नकल करना ठीक नहीं। वायुसेना के बेड़ों को तयशुदा कमान पर रखना सही नहीं होगा क्योंकि आधुनिक युद्घक विमानों की पहुंच बहुत तगड़ी होती है। विमान आसानी से एक स्थान से दो जगह आक्रमण कर सकता है। इसी लचीलेपन के कारण वायुसेना तयशुदा तैनाती की कट्टर विरोधी है।
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