कंपनी कानून में ढील की तैयारी | |
सरकार कर रही 65 धाराओं को आपराधिक श्रेणी से बाहर करने पर विचार | रुचिका चित्रवंशी / नई दिल्ली 08 19, 2019 | | | | |
► कंपनी कानून के तहत मामलों की समीक्षा के लिए समिति होगी बहाल
► कम गंभीर चूक वाली 65 धाराओं में होगी त्वरित कार्रवाई
► दूसरे चरण में गंभीर किस्म की अपराधों की 35 धाराओं पर होगा विचार
► जनहित के खिलाफ गंभीर धोखाधड़ी वाले मामलों में कोई राहत नहीं
सरकार कंपनी कानून के तहत धोखाधड़ी की सजा में ढील देने पर विचार कर रही है। यह ढील ऐसे मामलों में दी जाएगी जो गंभीर अपराध की श्रेणी में नहीं आते हैं या जिनमें जनहित को नुकसान नहीं हुआ है। सरकार साथ ही उन 65 धाराओं को जल्दी से जल्दी अपराध की श्रेणी से बाहर करना चाहती है जो अपराध गंभीर किस्म के नहीं हैं। एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'मामलों को आपराधिक बनाने का कोई सार्थक परिणाम नहीं निकला है। हम उन अधिकांश मामलों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने पर विचार करेंगे जो गंभीर किस्म के नहीं हैं। सजा के अन्य दूरगामी परिणाम हो सकते हैं जो इस कानून का उद्देश्य नहीं है।'
जिन अपराधों में कारावास या जुर्माने या दोनों का प्रावधान होता है वे गंभीर अपराधों की श्रेणी में नहीं आते हैं जबकि जिन अपराधों में कारावास और जुर्माने का प्रावधान होता है उन्हें गंभीर अपराध माना जाता है। गंभीर किस्म के अपराधों में जिनमें संपत्ति का आपराधिक दुरुपयोग या कंपनी के बारे में गलत जानकारी देने जैसे धोखाधड़ी का मामला होता है, उनमें सरकार स्थगित अभियोजन की व्यवस्था के लिए प्रावधान कर सकती है या समझौते से निपटारा हो सकता है, बशर्ते इनमें जनहित को कोई नुकसान न हुआ हो। आपराधिक प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की तर्ज पर ऐसा किया जा सकता है। इसके तहत आरोपी और अभियोजक मुकदमा शुरू होने से पहले बातचीत करते हैं और कुछ रियायतों के बदले आरोपी अपना अपराध स्वीकार करने को तैयार हो जाता है।
मंत्रालय कंपनी कानून के तहत विभिन्न तरह के जुर्मों को अपराध की श्रेणी से बाहर करने के लिए बनाई गई समिति को बहाल करेगी जो दो चरणों में काम करेगी। पहले चरण में वह उन 65 धाराओं को देखेगी जहां खामियों की प्रकृति प्रक्रियात्मक या तकनीकी है और अधिकांश जुर्म क्षम्य हैं, जिनमें शिकायतकर्ता समझौता कर सकता है।
ऐसे अपराधों में धारा 8 (11) के तहत चूक शामिल है। यह धारा परोपकारी उद्देश्य से कंपनियों के गठन से संबंधित है। इसी तरह धारा 26 (9)विवरण पत्रिका में दी गई सामग्री से संबंधित है। इन मामलों में कंपनी के निदेशकों या मामले में अन्य लोगों पर जुर्माना लगाने और उन्हें जेल भेजने का प्रावधान है। कॉरपोरेट प्रोफेशनल्स में पार्टनर अंकित सिंघी ने कहा, 'ये ऐसे मामले हैं जिनमें कुछ फीस देकर चूक का निपटारा किया जा सकता है। इससे आप चूक से संबंधित दंडात्मक प्रावधानों से बच सकते हैं। इससे कंपनियों को राहत मिलेगी।'
दूसरे चरण में समिति 35 धाराओं का अध्ययन करेगी जिनमें अक्षम्य अपराध शामिल हैं। इनमें धारा 57 भी शामिल है जिसमें खुद को किसी कंपनी के शेयरों का मालिक बताकर धोखा देना शामिल है। इसके तहत पांच लाख रुपये का जुर्माना और एक से तीन साल के कारावास का प्रावधान है। अधिकारी ने कहा, 'अगर इसमें गंभीर धोखाधड़ी हुई है तो छूट नहीं मिलेगी। लेकिन ज्यादा गंभीर मामला नहीं है तो फिर दूसरे विकल्पों पर विचार किया जा सकता है।' सरकार ने कॉरपोरेट सामाजिक दायित्व के नियमों का उल्लंघन करने पर तीन साल तक की कारावास वाले प्रावधानों को जोडऩे के लिए कंपनी कानून को संशोधन की प्रक्रिया को आगे नहीं बढ़ाने का फैसला किया है।
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