ड्रोन के फायदे हैं बहुत मगर नियम-कानूनों में उलझ गया भारत | नेहा अलावधी / August 18, 2019 | | | | |
पिछले दिनों दो कंपनियों ने ड्रोन को लेकर ऐसी घोषणाएं की हैं जिनसे ड्रोन हमारी रोजमर्रा की जिंदगी से जुड़ जाएगा। फीड-टेक स्टार्टअप जोमैटो ने कहा है कि वह घर तक खाने-पीने का सामान पहुंचाने के लिए ड्रोन का एक बेड़ा तैयार कर रही है। बेंगलूरु स्थित अन्य स्टार्टअप स्काइलार्क ड्रोन्स ने बताया कि वह झारखंड में लौह-अयस्क खदानों के हवाई सर्वे के लिए ड्रोन के उपयोग की योजना पर काम कर रही है। ड्रोन की मदद से सामान पहुंचाने की योजना काफी उत्साहजनक है। लेकिन दूर से नियंत्रित होने वाले इस उपकरणों से केवल नवीनता या कार्यकुशलता में तेजी ही नहीं आएगी बल्कि इनकी मदद से कई दूसरे काम भी किए जा सकते हैं। ड्रोन के शुरुआती प्रयोगों में सेना द्वारा उपयोग प्रमुख था जहां निगरानी, सूचना इक_ा करने और दुश्मन क्षेत्र में हथियार ले जाने के लिए सेना ड्रोन का इस्तेमाल करती थी। हालिया दिनों में इनका उपयोग सर्वव्यापी हुआ है। ड्रोन के पीछे काम करने वाली तकनीक का भी तेजी से विकास हुआ है और यह आसान रेडियो संचार से बदलकर स्मार्टफोन की मदद से दूर से नियंत्रित होने वाली तकनीक बन गई है।
संभावनाएं
फिल्मों में कैमरा और फोटो से लेकर, इंस्टाग्राम चित्र, वीडियो और शादियों में वीडियो बनाने जैसे आसान काम से लेकर लॉजिस्टिक उद्योग में उपयोग के जरिये ड्रोन हर जगह काम की क्षमता और गुणवत्ता बढ़ाने के साथ साथ समय और पैसों की बचत कर रहे हैं। कृषि, बीमा, ऊर्जा, खनन, मीडिया और मनोरंजन के क्षेत्र में भी ड्रोन के उपयोग की संभावनाओं को तलाशा जा रहा है। बड़ी जमीन और ऊंची इमारतों की निगरानी और वीडियोग्राफी के लिए भी ड्रोन का उपयोग हो रहा है। साल 2016 में इस तरह की खबरें आई थीं कि गुरुग्राम प्रशासन ड्रोन की सहायता से शहर का नक्शा तैयार कर रहा है जिससे खाली पड़ी जमीन की वास्तविक स्थिति का पता लग सके।
देश में ड्रोन को लेकर अन्य कई तरह के प्रयोग हो रहे हैं। पिछले दिनों हैदराबाद स्थित स्टार्टअप टेरा ड्रोन इंडिया ने शहर के ऐतिहासिक स्थल चारमीनार की एक मीनार से बड़ी मात्रा में प्लास्टर गिरने के बाद मल्टी सेंसर स्कैनिंग के लिए ड्रोन का उपयोग किया। इसी तरह, बिजली क्षेत्र की कंपनियां लागत घटाने और दक्षता बढ़ाने के उद्देश्य से संवेदनशील क्षेत्रों में परियोजनाओं की निगरानी के लिए ड्रोन के उपयोग का परीक्षण कर रही हैं। खतरों से भरे काम के लिए भी ड्रोन का उपयोग बेहतर उपाय है। युवा उद्यमी हाथ से मैला ढोने की प्रथा को खत्म करने के उद्देश्य से सीवर की निगरानी के लिए ड्रोन के उपयोग की योजना बना रही है।
तो क्या अब ड्रोन हमारे सहकर्मी होंगे? ड्रोन नीति के संदर्भ में सक्रिय भागीदारी रखने वाली कानूनी फर्म इकीगाई लॉ में मैनेजिंग पार्टनर अनिरुद्ध रस्तोगी कहते हैं, 'ड्रोन औद्योगिक परिसंपत्तियों (विशेषकर ऊंची, अधिक लंबाई वाली या दूर के इलाकों में स्थित संपत्तियों) की निगरानी या जांच में काफी उपयोगी हैं। उदाहरण के लिए, हजारों किलोमीटर लंबे रेलवे ट्रैक का रोजाना निरीक्षण करना या भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण द्वारा बनाए जा रहे राजमार्र्गों की प्रगति की निगरानी करना। ड्रोन की सहायता से दूरस्थ क्षेत्रों से आंकड़े जुटाना काफी आसान हो गया है क्योंकि इसे दूसर से नियंत्रित किया जा सकता है और इसके कारण उपग्रह से मिलने वाले चित्रों पर निर्भरता में कमी आई है।'
भले ही भारत ड्रोन निर्माण में आग्रणी नहीं है लेकिन विभिन्न सॉफ्टेवयर निर्माण के चलते यहां इस संबंध में भी काफी संभावनाएं विद्यमान हैं। चीन से आने वाले ड्रोन काफी सस्ते हैं और आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। रतन कहते हैं, 'ड्रोन में लगे कैमरा और सेंसर इसका केवल एक हिस्सा हैं लेकिन किसी काम विशेष के लिए बेहतर ऐप्लीकेशन विकसित करने के लिए अच्छे सॉफ्टवेयर की भी जरूरत होती है जिससे ड्रोन द्वारा जुटाए गए डेटा का बेहतर इस्तेमाल किया जा सके। इसके कारण भारत के पास संबंधित क्षेत्र में कौशल उन्नयन की असीम संभावनाएं हैं।' भारत ड्रोन क्षेत्र की पूरी क्षमता का उपयोग करने से काफी दूर है। पीडब्ल्यूसी में रीजनल मैनेजिंग पार्टनर (नॉर्थ) नील रतन के अनुसार फूड और ई-कॉमर्स क्षेत्र में सामान पहुंचाने वाले ड्रोन 'अभी तीन साल आगे की बात' है। इस धीमा प्रगति का मुख्य कारण यह है कि क्षेत्र की वृद्धि के लिए नियामकों को अभी काम करना बाकी है। ड्रोन उपयोग के अधिक अनुप्रयोग के रास्ते में नियामकीय अनिश्चितता सबसे बड़ी बाधा है। साल 2014 में भारत में नागरिक उड्डयन नियामक नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) ने सार्वजनिक नोटिस जारी कर नागरिक संचालन के लिए ड्रोन के उपयोग पर रोक लगा दी थी क्योंकि यह सुरक्षा संबंधी खरता उत्पन्न करता है। नियामक ने ड्रोन को उड़ाने से पहले मंजूरी लेना अनिवार्य कर दिया। अप्रैल 2016 में डीजीसीए ने सुझावों के लिए नियमों का मसौदा जारी किया लेकिन इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका। अक्टूबर 2017 में डीजीसीए ने नागरिक विमानन क्षेत्र में ड्रोन के उपयोग को लेकर दोबारा निर्देश जारी किए।
अंतत: पिछले वर्ष दिसंबर माह में डीजीसीए ने ड्रोन नीति तैयार की और सभी तरह की मंजूरियों के लिए एक पोर्टल पर समाधान के लिए डिजिटल स्काई नामक पोर्टल बनाया। डीजीसीए ने 250 ग्राम और इससे कम वजन वाले ड्रोन को उड़ान की मंजूरी दी है। नियामक ने इससे अधिक वजन वाले सभी ड्रोन को प्रतिबंधित किया है। इसके लिए डीजीसीए के साथ साथ विदेश व्यापार महानिदेशालय, गृह मंत्रालय, रक्षा मंत्रालय, भारतीय वायु सेना, वायरलेस योजना और समन्वय विंग (दूरसंचार विभाग), नागरिक उड्डयन सुरक्षा ब्यूरो, भारतीय विमानपत्तन प्राधिकरण और स्थानीय पुलिस से अलग से अनुमति लेनी होगी। रस्तोगी कहते हैं, 'इस समय सबसे बड़ी समस्या यह है कि उड़ान के लिए मंजूरी देने वाला डिजिटल स्काई प्लेटफॉर्म पूरी तरह से परिचालन में नहीं है। आज के समय ड्रोन परिचालन की अनुमति के लिए उपयोगकर्ता को स्वयं नियामक के पास जाना होगा।'
एक बार जब नीतिगत बाधाओं को दूर कर लिया जाएगा तो बड़े स्तर पर ड्रोन के उपयोग के लिए अलग एयर कॉरिडोर बनाना होगा जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि हवाई मार्ग ड्रोन से भरे हुए नहीं हैं और इन्हें उड़ाने वाले पायलट पूरी तरह प्रशिक्षित हैं। पीडब्ल्यूसी के रतन कहते हैं कि भविष्य में ड्रोन के लिए अलग हवाई गलियारा बनाया जा सकता है।
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