पतंजलि: विज्ञापन तालिका में फिसली | विवेट सुजन पिंटो / August 13, 2019 | | | | |
एक समय टेलीविजन पर विज्ञापनों के बीच नई ऊंचाइयां छूने वाला पतंजलि ब्रांड बहुराष्ट्रीय कंपनियों को कड़ी चुनौती दे रहा था लेकिन आज वह टीवी या अखबारों में कम दिखाई देता है और हालिया आंकड़े बताते हैं कि शहरी तथा ग्रामीण बाजारों में विभिन्न उत्पाद श्रेणियों में इसकी बिक्री में तेज गिरावट आई है। एक समय था जब पतंजलि ब्रांड को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता था। प्रत्येक सप्ताह टीवी के शीर्ष 10 विज्ञापनदाताओं की सूची में शामिल होकर यह लगातार सुर्खियों में रहता था। बार्क द्वारा जारी साप्ताहिक आंकड़े बताते हैं कि प्राकृतिक सामग्री की ओर लोगों का ध्यान आकृष्टï कराने वाली पतंजलि अब शीर्ष 10 विज्ञापनदाताओं में नहीं रही। मीडिया रणनीतिकारों ने बताया कि लगातार दो साल शीर्ष 10 की सूची में शामिल रहने के बाद पतंजलि ब्रांड वर्ष 2018 में किसी समय इस सूची में नीचे जाने लगा।
रेंटिंग एजेंसी केयर की हाल में जारी एक रिपोर्ट बताती है कि पतंजलि की बिक्री वर्ष 2017 के 10,000 करोड़ रुपये के मुकाबले वर्ष 2018 में गिरकर 8,135 करोड़ रुपये और साल 2019 के शुरुआती नौ महीनों में घटकर 4,701 करोड़ रुपये रह गई है। साल 2017 में कंपनी की बिक्री वर्ष 2016 के 5,000 करोड़ रुपये से दोगुनी होकर 10,000 करोड़ रुपये हो गई थी। विशेषज्ञ कहते हैं कि कुछ समय पहले तक बड़ा ब्रांड बनने की ओर अग्रसर पतंजलि की गिरावट का मुख्य कारण यह है कि इसके द्वारा लाया गया 'प्राकृतिक' उत्पाद के विचार को प्रतिस्पर्धी कंपनियों ने तेजी से अपनाया और आम ग्राहकों को पतंजलि के अलावा दूसरे विकल्प मिलने लगे। एडलवाइस में अनुसंधान (संस्थागत इक्विटी) वरिष्ठ उपाध्यक्ष अबनीश रॉय कहते हैं, 'एचयूएल और डाबर जैसी कंपनियों ने प्राकृतिक उत्पाद श्रेणी में वापसी के लिए तेज प्रतिस्पर्धा की।' वह बताते हैं, 'एचयूएल और डाबर, दोनों कंपनियों ने प्राकृतिक श्रेणी में नए उत्पाद लाकर तेज गति से कदम बढ़ाए जिससे ग्राहक दोबारा उनकी तरफ देखने लगे।'
वित्त वर्ष 2020 की पहली तिमाही के आंकड़े जारी करते समय डाबर और एचयूएल, दोनों कंपनियों ने कहा कि वे 'प्राकृतिक' श्रेणी के तहत उत्पाद लाना जारी रखेंगी। डाबर इंडिया में मुख्य कार्याधिकारी मोहित मल्होत्रा बताते हैं कि भारत के 8,000 करोड़ रुपये के ओरल केयर बाजार में प्राकृतिक उत्पादों की 25-30 फीसदी हिस्सेदारी है। वह कहते हैं कि यह सालाना 18 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है जो गैर-प्राकृतिक श्रेणी की वृद्धि (6 प्रतिशत वार्षिक) से तीन गुना अधिक है। संबंधित क्षेत्र के विशेषज्ञ बताते हैं कि इसके चलते डाबर ने पिछले महीने ही टूथपेस्ट ब्रांड बबूल को दोबारा लॉन्च किया और अनुमान है कि कंपनी आयुर्वेदिक साख को मजबूत बनाने के लिए मिसवॉक (टूथपेस्ट) को भी दोबारा बाजार में लेकर आ सकती है।
एचयूएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक संजीव मेहता के पास 'प्राकृतिक' उत्पादों के लिए त्रि-स्तरीय रणनीति है। कंपनी प्राकृतिक उत्पादों की बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए पर्सनल केयर क्षेत्र के हालिया ब्रांड के तहत ही अलग-अलग उत्पाद लॉन्च कर रही है। कंपनी लीवर आयुष जैसे फ्लैगशिप ब्रांड पर ध्यान देने के साथ ही इंदुलेखा जैसे विशिष्ट ब्रांड पर भी विशेष ध्यान दे रही है। हालांकि पतंजलि ने बाजार में अपनी गिरावट की किसी भी बात से इनकार किया है। कंपनी के संस्थापक रामदेव ने देश की अर्थव्यवस्था में मंदी की बात करते हुए कहा कि कंपनी ग्राहकों को रसायन मुक्त उत्पाद देने के वादे को पूरा कर रही है और वह एक बार फिर बाजार में शानदार वापसी करेगी। हालांकि विशेषज्ञ गिरावट का ही अनुमान लगा रहे हैं और उनका कहना है कि वितरण का असमान विस्तार और उत्पादों की गुणवत्ता में असंगतता पतंजलि की सबसे बड़ी समस्या है। विशेषज्ञ कहते हैं कि एक तरफ कर्ज से घिरी खाद्य तेल कंपनी रुचि सोया का 4,350 करोड़ रुपये में अधिग्रहण करने के कारण पतंजलि खबरों में है लेकिन मई माह में कुछ डेरी उत्पादों को छोड़कर कंपनी ने बाजार में कोई नया उत्पाद नहीं उतारा है। नवंबर में कंपनी ने कपड़ा क्षेत्र में उतरते हुए 'पतंजलि परिधान' लॉन्च किया था। इन सभी प्रयासों से कंपनी को ब्रांड के तौर पर छवि बनाए रखने में थोड़ी राहत मिली है लेकिन कुछ वर्ष पहले जिस तरह से कंपनी चर्चाओं का विषय बनती थी, लगता है कि वह कहानी अब कहीं खो सी गई है।
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