विदेशी बॉन्ड के पक्ष में नहीं रिजर्व बैंक | अनूप रॉय / मुंबई August 12, 2019 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा डॉलर में विदेशी सॉवरिन बॉन्ड के पक्ष में मत देने की संभावना कम है। सरकार के साथ रिजर्व बैंक की 16 अगस्त को बैठक होने वाली है। सूत्रों के मुताबिक रिजर्व बैंक को डर है कि विदेशी बॉन्डों को हरी झंडी देने से स्थानीय बॉन्डों में हस्तक्षेप खत्म हो जाएगा, जो रिजर्व बैंक द्वारा कड़ाई से नियंत्रित किए जाते हैं और केंद्रीय बैंक सरकार के धन का प्रबंधक होता है। बहरहाल विदेशी बॉन्डों और स्थानीय बॉन्डों को लंबे समय तक अलग अलग खांचे में नहीं रखा जा सकता और इससे अर्थव्यवस्था में ब्याज दरें प्रबंधित करने की रिजर्व बैंक की स्वतंत्रता उल्लेखनीय रूप से कम हो जाएगी।
इस मसले पर रिजर्व बैंक के गवर्नर शक्तिकांत दास ने भी कोई प्रतिक्रिया देने से इनकार करते हुए इस बात पर जोर दिया कि रिजर्व बैंक का जो भी विचार होगा, सरकार को बता दिया जोगा। वहीं सूत्रों का कहना है कि रिजर्व बैंक ने इसे लेकर पहले ही अपनी आपत्तियां जता दी है और 16 अगस्त की बैठक में वह औपचारिक रूप से ऐसा कर देगा। इस समय ग्लोबल यील्ड शून्य करीब, यहां तक कि तमाम अर्थव्यवस्थाओं में यह शून्य से नीचे है और सरकार के लिए धन जुटाना सस्ता होगा, लेकिन केंद्रीय बैंक इसकी जरूरत नहीं महसूस कर रहा है क्योंकि घरेलू बॉन्ड यील्ड जनवरी के बाद से 100 आधार अंकों से भी ज्यादा कम हुआ है।
सॉवरिन बॉन्ड की मौजूदगी मुद्रा में नॉन डिलिवरेबल फॉरवर्ड (एनडीएफ) मार्केट की तरह से काम कर सकता है, जिससे घरेलू मुद्रा बाजार की धारणा संचालित होती है। रिजर्व बैंक का एनडीएफ बाजार पर कोई नियंत्रण नहीं होता, यह व्यापक तौर पर अटकलबाजियोंं से संचालित होता है। एनडीएफ बाजार की विनिमय दरें प्राय: स्थानीय दरें निर्धारित करती हैं। संकट के समय में यह कनेक्शन और ज्यादा स्वाभाविक हो जाता है। रिजर्व बैंक की पूर्व डिप्टी गवर्नर उषा थोराट की अध्यक्षता में बने एक कार्यबल ने सुझाव दिया था कि उसी तरह की बुनियादी ढांचा सुविधाएं और ऑनशोर मुक्त कारोबार की सुविधाएं देकर किस तरह से ऑफशोर बाजार को ऑनशोर लाया जा सकता है। बहरहाल मुद्रा के विपरीत से बॉन्डों की मात्रा का संचालन करना आसान नहीं है और ऐसे में इस तरह के अनुचित ऑफशोर प्रभाव की संभावना कम है। लेकिन रिजर्व बैंक को डर है कि इससे जो संकेत जाएगा, वह स्थानीय बाजार में व्यवधान डालने के लिए पर्याप्त होगा। एक और चिंता की बात यह है कि सभी बाजार हिस्सेदारों को डर है कि जब भी सॉवरिन बॉ्ज आएगा क्रेडिट डिफॉल्ट स्वैप (सीडीएस) होगा और यह पूरी तरह से सट्टेबाजी पर आधारित होगा। चिंता की बात है कि इन सीडीएस का कारोबार होगा और आगे उसे टुकड़ोंं में विभाजित कर विभिन्न साधनों में समायोजित किया जाएगा। इसकी वजह से संपत्तियोंं का विभिन्न वर्ग बनेगा और इसका सरकार से कोई संबंध नहीं होगा बल्कि यह घरेलू बॉन्ड बाजार में संकेत भेजेगा। इससे साधनों में हेरफेर आसान होगा और इससे स्थानीय बॉन्डों पर नकारात्मक असर पड़ सकता है।
पिछले सप्ताह एक नोट में इंडिया रेटिंग्स ऐंड रिसर्च में कहा, 'इससे (सीडीएस) से जहां मूल्य की खोज में मदद मिलेगी, विदेशी बॉन्डों से घरेलू बाजार पर विदेशी बाजारोंं की वजह से विपरीत असर पड़ेगा। तमाम हेज फंड व निवेश कंपनियां सीडीएस कॉन्ट्रैक्ट कर सकती हैं, और इसमें सिक्योरिटी की जररूरत नहीं होगी व यह पूरी तरह से अटकलबाजियोंं पर आधारित होगा।' रिजर्व बैंक की चिंता भी कुछ इसी तरह की है, जिसका माना है कि विदेशी सॉवरिन बॉन्ड जारी किए जाने से 'फीडबैक प्रॉसेस' को प्रमुखता मिलेगी और घरेलू ऋण बाजार पर इसका असर पड़ेगा और इससे मौद्रिक नीति का असर कमजोर हो सकता है।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने इस तरह के बॉन्ड जारी करने का प्रस्ताव 2019-20 के बजट में रखा था और तर्क दिया था कि भारत का बाहरी कर्ज सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 5 प्रतिशत से कम है। मार्च 2019 के आखिर तक कुल विदेशी कर्ज 103.8 अरब डॉलर था, जो जीडीपी का 3.8 प्रतिशत है। रिजर्व बैंक के पूर्व गवर्नरों ने इस कदम पर आपत्ति जताई है। रघुराम राजन ने कहा था कि इस कदम से लाभ होने की कोई संभावना तो नहीं है, लेकिन जोखिम भरपूर है। राजन ने कहा कि कुल 10 अरब डॉलर का बॉन्ड हो सकता है,जो सकल उधारी का 10 प्रतिशत है, लेकिन समय बीतने के साथ इसके बढऩे का डर है। सॉवरिन बॉन्ड जारी होने से रिजर्व बैंक के कर्ज प्रबंधन का अधिकार कम हो सकता है, जो केंद्रीय बैंंक संभवत: छोडऩा नहीं चाहेगा।
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