कैशबैक मिलने पर भी चुकाना होगा कर | तिनेश भसीन / August 11, 2019 | | | | |
नकदी छोड़कर इलेक्ट्रॉनिक तरीकों से भुगतान करने वाले ग्राहकों की आजकल मौज है क्योंकि उन्हें कई तरह के फायदे मिलते हैं। ऐसे ग्राहकों को लुभाने के लिए कमोबेश सभी भुगतान ऐप और वॉलेट कैश बैक या कैश (नकद) रिवार्ड देते हैं। उनमें से कुछ ऐप या वॉलेट ऐसे भी हैं, जिन पर एकीकृत भुगतान इंटरफेस (यूपीआई) के जरिये लेनदेन किया जाए तो नकद रिवार्ड सीधे आपके बैंक खाते में भेज दिया जाता है। कभी-कभी ई-कॉमर्स वेबसाइट भी क्रेडिट कार्ड जारी करने वाले बैंक के साथ मिलकर कुछ खास तरह की पेशकश या ऑफर देती हैं। इन ऑफर के तहत खरीदारी करने के कुछ महीने बाद कैशबैक आपके खाते में भेज दिया जाता है।
ऐसे रिवार्ड या फायदे आपको भी मिले होंगे और बहुत अच्छे भी लगे होंगे। लेकिन अगर आपको बहुत अधिक रिवार्ड मिल रहे हैं तो आप कर के फेर में भी फंस सकते हैं। आयकर नियमों के मुताबिक व्यक्तिगत करदाताओं से नकद रिवार्ड पर उपहार कर वसूला जा सकता है। टैक्समैन डॉट कॉम में चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन वाधवा कहते हैं, 'आयकर अधिनियम की धारा 56(2)(एक्स) के प्रावधानों में बिना विचारे प्राप्त किए हुए धन की बात की गई है और उसे उपहार कर की श्रेणी में रखा गया है। यदि किसी वित्त वर्ष में मिले सभी उपहारों की कुल कीमत 50,000 रुपये से अधिक हो जाती है तो उन्हें प्राप्त करने वाले व्यक्ति को कर चुकाना पड़ेगा।' वह बताते हैं कि यदि कोई व्यक्ति कारोबार के सिलसिले में खरीद करता है और उस पर उसे कैशबैक हासिल होता है तो कर अलग तरीके से लगाया जाएगा।
आम तौर पर वॉलेट और भुगतान ऐप्स इस्तेमाल करने वाले किसी भी वित्त वर्ष में 50,000 रुपये की तय सीमा से अधिक कैशबैक या नकद रिवार्ड हासिल नहीं कर पाते। लेकिन कर विशेषज्ञों का कहना है कि इस प्रकार के लाभ को अलग-थलग रखकर देखना भूल हो सकती है। उनके मुताबिक ऐसा हो सकता है कि किसी वित्त वर्ष में विभिन्न सौदों में मिले कैशबैक कुल 8,000 या 10,000 रुपये तक ही पहुंच रहे हों। ऐसा होने की संभावना तब अधिक रहती है, जब वह व्यक्ति ई-कॉमर्स वेबसाइट पर खरीदारी कर रहा हो क्योंकि वहां उसका क्रेडिट कार्ड प्रदाता बैंक कुछ महीने बाद कैशबैक दे सकता है। यदि आपको अपने दोस्तों या दूर के रिश्तेदारों से एक वित्त वर्ष के भीतर करीब 45,000 रुपये कीमत के तोहफे मिले हैं और आपको 5,000 रुपये से अधिक के नकद रिवार्ड भी मिले हैं तो आपको उपहार कर देना पड़ेगा। रिटर्न दाखिल करते समय इसे अन्य स्रोतों से आय मद में दिखाना पड़ेगा। यदि कोई व्यक्ति अपने कारोबार के लिए सामान खरीदता है तो कराधान इस बात पर निर्भर करेगा कि वह सामान पूंजीगत संपत्ति में आता है या नहीं। पूंजीगत संपत्ति हो तो खरीदार शुद्घ राशि पर यानी कुल कीमत में से कैशबैक घटाने के बाद आई रकम पर मूल्यह्रïास का दावा कर सकता है। चाहे तो पूरी कीमत पर मूल्यह्रïास का दावा भी किया जा सकता है, लेकिन ऐसी सूरत में कैशबैक को कारोबारी आय मानकर उस पर कर चुकाना ही पड़ेगा। अगर खरीदा गया सामान पूंजीगत वस्तु की श्रेणी में नहीं आता है तो कारोबार का स्वामी नकद रिवार्ड को निकालने के बाद बची शुद्घ राशि पर कटौती का दावा कर सकता है।
कराधान के ये नियम केवल नकद रिवार्ड पर लागू होते हैं। कई बार कोई रिटेल कारोबारी या ई-कॉमर्स कंपनी तुरंत छूट की पेशकश भी करते हैं। इसमें कारोबारी या कंपनी के साथ साझेदारी वाले बैंक के डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान किया जाए तो फौरन छूट मिल जाती है। ऐसे मामलों में किसी भी तरह का कर नहीं वसूला जाएगा क्योंकि खरीदार को मौद्रिक लाभ नहीं हुआ यानी किसी तरह की रकम उसे नहीं लौटाई गई है। इस तरह मिले फायदों को प्रमोशनल ऑफर की श्रेणी में रख दिया जाता है।
इसी तरह बार-बार विमान यात्रा करने वालों को रिवार्ड के रूप में जो फ्रीक्वेंट फ्लायर माइल्स मिलते हैं, उनका इस्तेमाल हवाई टिकट बुक कराते समय किया जा सकता है और उनके बदले टिकट की कीमत में कुछ छूट मिल जाती है। यह भी उत्पादों पर मिलने वाली तत्काल छूट की तरह होता है। इसीलिए फ्रीक्वेंट फ्लायर माइल्स के मामले में भी व्यक्तिगत करदाता या कारोबार मालिक से किसी तरह का कर नहीं वसूला जाता।
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