देश की अधिकतर दवा कंपनियों ने वित्त वर्ष 2018-19 में अपने ऐक्टिव फार्मास्युटिकल इनग्रेडिएंट (एपीआई) कारोबार में जबरदस्त वृद्धि दर्ज की। साल के दौरान अंतरराष्ट्रीय बाजार में आपूर्ति संबंधी उथल-पुथल से इन कंपनियों को अपनी हिस्सेदारी बढ़ाने में मदद मिली। विश्लेषकों का कहना है कि एपीआई अथवा बल्क ड्रग्स के मूल्य में तेजी के कारण इस श्रेणी के राजस्व को बल मिला। एपीआई कारोबार में वृद्धि से कंपनियों को घरेलू कारोबार में नरमी से निपटने में भी मदद मिली। उदाहरण के लिए, सन फार्मास्युटिकल इंडस्ट्रीज का एपीआई कारोबार 2018-19 में 24 फीसदी बढ़कर 1,730 करोड़ रुपये हो गया जबकि उसके घरेलू फॉर्मूलेशन कारोबार से प्राप्त राजस्व में 8.5 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। कंपनी ने कहा कि वृद्धि को मुख्य तौर पर नए अनुबंधों, बेहतर प्राप्तियों और अनुकूल विदेशी मुद्रा विनिमय दर से रफ्तार मिली। सन फार्मा के पास 14 एपीआई विनिर्माण इकाइयां हैं। कंपनी 1995 से ही बल्क ड्रग्स उत्पादन कर रही है और लागत एवं आपूर्ति में सुधार के लिए उसने अपने कारोबार को सुदृढ़ किया है। निजी खपत के अलावा कंपनी अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी एपीआई की आपूर्ति करती है। एडलवाइस के विश्लेषक दीपक मलिक ने कहा, 'अधिकतर औषधि कंपनियों ने वित्त वर्ष 2019 में अपने एपीआई कारोबार में अच्छी वृद्धि दर्ज की है। ऐसा कई कारकों के कारण संभव हुआ। चीन से आपूर्ति में उथल-पुथल के बाद अंतरराष्ट्रीय बाजार में एपीआई की कीमतों में तेजी आई। ऐसे में एपीआई कारोबार से प्राप्त राजस्व में इजाफा हुआ। दूसरा, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार जंग के मद्देनजर कंपनियों ने बल्क ड्रग्स सोर्सिंग में विविधता पर जोर दिया। इससे भारतीय कंपनियों को मदद मिली।' औद्योगिक प्रदूषण पर लगाम लगाने की पहल के बाद पिछले साल चीन में कई एपीआई इकाइयां बंद हो गईं जिससे अंतरराष्ट्रीय बाजार में एपीआई के दाम बढऩे लगे। इसके अलावा अमेरिकी औषधि नियामक यूएसएफडीए ने जुलाई के आसपास ऐक्टिव इनग्रेडिएंट वलसार्टन से बनी कई दवाओं को स्वैच्छिक तौर पर बाजार से वापस मंगाए जाने की जानकारी दी। उन दवाओं की वापसी अशुद्धता के कारण की गई थी। यूएसएफडीए ने चीन की आपूर्तिकर्ता झेजियांग हुआहई फार्मास्युटिकल को भी आयात अलर्ट पर रखा। यूरोपीय औषधि एजेंसी ने भी वलसार्टन का उत्पादन करने वाली चीन की कंपनी के लिए अपनी मंजूरी वापस ले ली थी। इससे वैश्विक फॉर्मूलेशन बाजार में कंपनियां एपीआई की आपूर्ति के लिए वैकल्पिक स्रोत तलाशने लगीं। ल्यूपिन के एपीआई कारोबार में सालाना आधार पर 23.2 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। कंपनी के कुल राजस्व में उसके एपीआई कारोबार का योगदान करीब 8 फीसदी है। जबकि कंपनी के कुल राजस्व में उभरते बाजारों का योगदान करीब 10 फीसदी है। डॉ रेड्डीज लैबोरेटरीज के एपीआई कारोबार में 2018-19 के दौरान 10 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई। ऊंचे आधार के कारण कंपनी का एपीआई कारोबार बढ़कर 2,400 करोड़ रुपये हो गया। जबकि साल के दौरान कैडिला हेल्थकेयर का एपीआई कारोबार 16 फीसदी बढ़कर 424.5 करोड़ रुपये हो गया। इसी प्रकार एलेंबिक फार्मा के एपीआई कारोबार में पिछले साल के मुकाबले वित्त वर्ष 2019 में 18 फीसदी की वृद्धि दर्ज की गई।
