भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) ने सरकार को सूचित किया है कि बजट से इतर देनदारी कुल मिलाकर 3 लाख करोड़ रुपये से ऊपर पहुंच गई है, इसे बजट के आंकड़ोंं में शामिल किया जाना चाहिए। सरकार ने आईआरएफसी, बिजली वित्त निगम, भारतीय खाद्य निगम जैसी इकाइयों व खाद कंपनियों के लिए विशेष बैंकिंग व्यवस्था के माध्यम से यह धन जुटाया है। अगर इन आंकड़ों को बजट में शामिल कर लिया जाए तो 2019-20 का राजकोषीय घाटा सकल घरेलू उत्पाद के 6 प्रतिशत पर पहुंच जाएगा। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई को संसद में पेश बजट दस्तावेज में 2019-20 का राजकोषीय घाटा 3.3 प्रतिशत दिखाया था। सीएजी द्वारा इस साल फरवरी में संसद में पेश ऑडिट रिपोर्ट में यह मसला उठाया गया था। साथ ही हाल में 15वें वित्त आयोग ने अपनी प्रस्तुति में इसे उठाया। भारत के शीर्ष ऑडिटर ने सरकार को सलाह दी कि 'बजट से इतर वित्तपोषण पर एक नीतिगत ढांचा होना चाहिए और अन्य मदों के साथ इसका खुलासा भी संसद में किया जाना चाहिए।' इसमें यह भी कहा गया है कि ऐसा अचानक नहीं हुआ है और इसकी मात्रा करीब एक दशक से बढ़ रही है। सीएजी ने इसका कुल आंकड़ा नहीं दिया है, लेकिन कथन की पुष्टि करने के लिए 2011-12 के बाद के आंकड़े दिए गए हैं। वहीं वित्त मंत्रालय के अधिकारियों का कहना है कि राजकोषीय दायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम के कानूनी ढांचे में बजट से इतर वित्तपोषण या बजट से इतर संसाधनों का अधिकार मिला हुआ है, जो राजकोषीय घाटे की गणना से अलग होता है। एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बिजनेस स्टैंडर्ड से कहा, 'सीएजी का आकलन विषयनिष्ठ है। सैद्धांतिक स्तर पर बजट से इतर वित्तपोषण पर बहस हो सकती है कि यह राजकोषीय घाटे का हिस्सा होना चाहिए, लेकिन बने हुए ढांचे के मुताबिक ऑडिट की जरूरत होती है और इस मामले मे बना हुआ ढांचा एफआरबीएम कानून है। और कानून में साफ साफ कहा गया है कि कर्ज में बजट से इतर वित्तपोषण और बजट से इतर संसाधन शामिल होता है, जो राजकोषीय घाटे में शामिल नहीं किया जाता है।' उन्होंने कहा, 'यह कहना कि सरकार गलत है, गलत आकलन है क्योंकि कानून के मुताबिक वह सही है। कानूनी ढाचे में साफतौर पर बजट से इतर संसाधनोंं में कर्ज शामिल किया गया है, जिसे राजकोषीय घाटे से बाहर रखा जाता है।' अपने आकलन में सीएजी ने कहा है कि कानूनी प्रावधान का मुख्य तत्व यह होना चाहिए कि बजट से इतर वित्तपोषण का तर्क व मकसद साफ किया जाए। इस तरह के वित्तपोषण की मात्रा और बजटीय समर्थन की सीमा और बजट से इतर वित्तपोषण का ब्योरा सभी सरकारी एजेंसियों के माध्यम से वित्त वर्ष के दौरान लिया जाना चाहिए। सीएजी की टिप्पणियों पर 15वें वित्त आयोग ने सहृदयता से विचार की उम्मीद जताई है। इसके पहले भी दो दशक पुराने एफआरबीएम अधियिनम में संशोधन सीएजी की टिप्पणियों के आधार पर की गई थी। भारत के शीर्ष ऑडिटर के मुताबिक बजट से इतर उधारी बढ़ रही है क्योंकि सरकार सब्सिडी की बढ़ती मांग और पूंजीगत व्यय दोनों लक्ष्यों को हासिल करने की कोशिश कर रही है। 2011-12 के बाद से खाद्य व उर्वरक की सब्सिडी की देनदारी को आगे बढ़ाने की मात्रा अब बढ़कर जीडीपी के 0.5 प्रतिशत के स्तर पर पहुंच गई है। वित्त मंत्रालय ने जहां 2019-20 के बजट में किसी तरह से लक्ष्य हासिल करने की कवायद की है और पहली बार कुछ बजट से इतर उधारी को दिखाया है, यह परंपरागत रहा है। साथ ही सीएजी ने यह भी सूचित किया गया है कि 'बजट से इतर सभी उधारी केंद्रीय बजट के दायरे में बनी हुई है क्योंकि बजट से इतर वित्तपोषण के मूल और ब्याज के भुगतान का प्रावधान बजट के माध्यम से ही होता है।' खाद्य सब्सिडी के असर के बारे में सीएजी ने पाया है कि केंद्र ने एफसीआई को सरकार समर्थित बॉन्डों, असुरक्षित कम अवधि के कर्ज से उधार लेने को बाध्य किया, साथ ही राष्ट्रीय लघु बचत कोष को कम किया, जिससे नियत आमदनी की सुरक्षा जोखिम में पड़ी है। इसमें कहा गया है, '2016-17 के पहले के 5 साल में सब्सिडी के बकाये को आगे टालने की राशि में करीब 350 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। इसके लिए ब्याज की भारी भरकम राशि चुकानी पड़ती है और इस सब्सिडी की वास्तविक लागत में उल्लेखनीय बढ़ोतरी होती है।' ऑडिटर ने बिजली वित्त निगम से भारी मात्रा में बाजार उधारी की ओर भी ध्यान दिलाया है, जो 2016-17 के अंत मेंं 2 लाख करोड़ रुपये से ऊपर हो गया है। इसमें कहा गया है, 'इस उधारी को न तो वित्त खाते में दिखाया गया है, न सरकार द्वारा दी गई गारंटी में शामिल किया गया है। इससे न सिर्फ खुलासे की कमी जाहिर होती है बल्कि यह भी पता चलता है कि सरकार की अहम बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के वित्तपोषण का स्रोत संसद के नियंत्रण से परे है।' हालांकि सीएजी ने इस तरह की उधारी को लेकर सहानुभूति वाला रुख अपनाया है। सीएजी ने कहा है, 'इस तरह की उधारी पूंजीगत व्यय के लिए जरूरी हो सकती है, लेकिन कर्ज के टिकाऊ होने पर पर्याप्त खुलासे के लिए ठोस नीति की जरूरत है।' वित्त मंत्रालय का तर्क है कि कंपनियां अपनी उधारी की जररूरतोंं पर खुद फैसला करती हैं क्योंकि वे स्वतंत्र कॉर्पोरेट इकाइयां हैं, जबकि ऑडिट की टिप्पणियों में उनके द्वारा किए गए व्यय को सरकार के हवाले से दिखाया गया है।
