दरों में कटौती से इतर | संपादकीय / August 04, 2019 | | | | |
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) की मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के बारे में माना जा रहा है कि वह इस सप्ताह एक बार फिर ब्याज दरों में कटौती करेगी। हालांकि खुदरा मूल्य सूचकांक पर आधारित मुद्रास्फीति जून में बढ़ी लेकिन निकट भविष्य में उसके 4 फीसदी का स्तर पार करने की आशंका नहीं है। बहरहाल, फिलहाल बड़ा सवाल यह है कि क्या एक और बार दरों में कटौती आर्थिक गतिविधि बहाल करने में सहायक होगी? भारतीय अर्थव्यवस्था गंभीर मंदी में है और वाहनों की बिक्री, कंपनियों के नतीजे तथा आधारभूत क्षेत्रों के ताजा आंकड़ों जैसे संकेतक यह बता रहे हैं कि चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही में वृद्घि दर, जनवरी-मार्च तिमाही में दर्ज 5.8 फीसदी से भी कम रहेगी। इतना ही नहीं वृद्घि को सहायता पहुंचाने के लिए किसी भी तरह की राजकोषीय गुंजाइश भी नहीं है। हकीकत यह है कि कर संग्रह के आंकड़े बताते हैं कि बजट के लक्ष्य हासिल करना आसान नहीं होगा और इसके लिए व्यय में कटौती करनी पड़ सकती है। उच्च व्यय के समायोजन की सलाह भी नहीं दी जा सकती है क्योंकि सार्वजनिक क्षेत्र का ऋण पहले ही काफी बढ़ा हुआ है।
भारतीय अर्थव्यवस्था को शेष विश्व से भी सहायता मिलने की उम्मीद नहीं है। वैश्विक अर्थव्यवस्था गति खो रही है। अमेरिकी केंद्रीय बैंक फेडरल रिजर्व ने गत सप्ताह ब्याज दरों में कटौती कर दी। वैश्विक वित्तीय संकट के बाद यह पहला अवसर है जब कटौती की गई है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे कारोबारी युद्घ, ब्रेक्सिट से जुड़ी अनिश्चितता और पश्चिम एशिया का भूराजनैतिक तनाव भी वैश्विक वृद्घि के लिए खतरा हैं। दिए गए आर्थिक परिदृश्य में यह सवाल पूछना उचित है कि वृद्घि को गति देने के क्रम में मौद्रिक नीति के लिए क्या कुछ उचित होगा। जून में हुई बैठक में आरबीआई के गर्वनर शक्तिकांत दास ने कहा, 'वृद्घि और मुद्रास्फीति के नए समीकरण के बीच मौद्रिक नीति के मोर्चे पर निर्णायक कदमों की आवश्यकता है।' वृद्घि के पूर्वानुमान तब से अब तक खराब ही हुए हैं। ऐसे में इस सप्ताह ब्याज दरों में कटौती से इतर तमाम अंशधारकों की नजर इस बात पर होगी कि केंद्रीय बैंक वृद्घि को किस हद तक समर्थन देने को तैयार है। चूंकि आरबीआई का प्राथमिक लक्ष्य मुद्रास्फीति को 4 फीसदी के आसपास रखना है इसलिए यह देखना अहम होगा मौद्रिक नीति समिति आने वाली तिमाहियों में मुद्रास्फीति और वृद्घि में कैसी प्रगति देखती है? अगर वह वृद्घि में उल्लेखनीय धीमापन आने की उम्मीद करती है तो मौद्रिक मोर्चे पर उदारता देखने को मिल सकती है। कीमतों में ज्यादा इजाफा होने की उम्मीद नहीं है क्योंकि आर्थिक गतिविधियां पहले ही धीमी हो रही हैं। हालिया महीनों में मूल मुद्रास्फीति में गिरावट से यह परिलक्षित भी हुआ है।
इसके अलावा एमपीसी अगर यह बता दे कि वह वास्तविक ब्याज दर को किस स्तर पर रखना चाहती है और किन हालात में उसमें कमी की जाएगी तो और भी अच्छा होगा। इससे व्यवस्था में यह भरोसा पैदा होगा कि केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति तय करने के अपने लक्ष्य से विचलित नहीं होगा। यह भी अहम है कि वित्तीय बचत को हतोत्साहित न किया जाए। अर्थव्यवस्था को नीतिगत कदमों का लाभ मिलने के लिए यह आवश्यक है कि केंद्रीय बैंक दरों के पारेषण पर काम करे। मौद्रिक समायोजन केवल एक सीमा तक ही कारगर हो सकता है और यह सार्थक सुधार के लिए पर्याप्त न होगा। सरकार को भूमिका निभानी होगी। कुछ हालिया कदम मसलन अमीरों के लिए आयकर की उच्च दर, उच्च आयात शुल्क, अफसरशाही को अतिरिक्त शक्ति आदि ने कारोबारी भरोसे पर असर डाला है। कुछ हालिया निर्णयों तथा अर्थव्यवस्था के संचालन का दोबारा आकलन सरकार के लिए इस दिशा में शुरुआती कदम हो सकता है।
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