जीएसटी रिफंड में देरी पर देना होगा ब्याज | इंदिवजल धस्माना / नई दिल्ली August 02, 2019 | | | | |
गुजरात उच्च न्यायालय ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि अगर जीएसटी रिफंड का भुगतान करने में देरी होती है तो देरी के लिए ब्याज दें। प्राधिकारियों को 9 प्रतिशत सालाना की दर से ब्याज भुगतान करने को कहा गया है। एक साझेदारी फर्म सराफ नेचुरल फर्म ने जीएसटी रिफंड का दावा किया था। प्राधिकारियों द्वारा जीएसटी रिफंड में उल्लेखनीय देरी की गई। उसके बाद फर्म ने उच्च न्यायालय में रिट के माध्यम से आवेदन किया और अधिकारियों से देरी के लिए ब्याज दिए जाने की मांग की। आवेदन मेंं कहा गया था कि अधिकारियों को प्रॉविजनल फंड का 90 प्रतिशत दावे की तिथि के 7 दिन के भीतर जारी करने का प्रावधान है।
फर्म ने कहा कि अधिकारियों ने देरी की कोई वजह नहीं बताई और उन्हें देरी को लेकर कोई नोटिस नहीं मिली, जिससे इस तरह की देरी की वजह का पता चल सके। इसमें आगे कहा गया कि देरी की वजह से फर्म की कार्यशील पूंजी पर असर पड़ा है इसलिए उन्हें देरी से भुगतान के एवज में ब्याज दिया जाना चाहिए। बहरहाल प्राधिकारियों- राजस्व विभाग, केंद्रीय अप्रत्यक्ष कर एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीआईसी) और जीएसटी नेटवर्क ने कहैा है कि फर्म को ब्याज दिए जाने का कोई प्रावधान नहीं है और इसलिए याचिका में कोई दम नहीं है।
उच्च न्यायालय ने पाया कि कानून स्थापित है, जहां ब्याज को लेकर प्रावधान किए गए हैं कि रिफंड का भुगतान लाभकारी और गैर विभेदकारी होना चाहिए। इसलिए न्यायालय ने कहा कि प्राधिकारी 9 प्रतिशत सालाना ब्याज भुगतान करने के लिए उत्तरदायी हैं। केपीएमजी के पार्टनर हरप्रीत सिंह ने कहा, 'यह एक अहम फैसला है क्योंकि अक्सर लंबित रिफंड दावोंं का निर्यातकों की कार्यशील पूंजी पर खराब असर होता है।' उन्होंने कहा कि इस फैसले ने दावेदारों के लिए राह खोल दी है और अब करदाता की चूक न होने के बावजूद बहुत ज्यादा देरी होने पर ब्याज की मांग कर सकते हैं।
|