उपभोक्ताओं से भावनात्मक संबंध कंपनियों की बुनियादी जरूरत | इंसानी पहलू | | श्यामल मजूमदार / July 31, 2019 | | | | |
विपणन यानी मार्केटिंग में संबंधों के इस्तेमाल में कुछ भी नया नहीं है। सन 1983 में लियोनार्ड बेरी द्वारा दिये गए इस जुमले का अर्थ यह है कि कारोबारों को अपने मौजूदा ग्राहकों की सेवा करने पर अधिक ध्यान देना चाहिए। बेरी की मूल चिंता यह थी कि कंपनियां अगर यह सोचती हैं कि मार्केटिंग का संबंध नए ग्राहक बनाने से है तो वे गलत हैं। इसका संबंध ग्राहकों को अपने साथ जोड़े रखने से भी है। दुनिया भर की तमाम कंपनियां शुरुआत से ही ग्राहकों के साथ रिश्ता बरकरार रखती आई हैं और उन्हें सफलता भी मिली है। परंतु मार्केटिंग गुरु जगदीश सेठ का कहना है कि इस अवधारणा में बदलाव लाने की आवश्यकता है।
सेठ का उपभोक्ता व्यवहार, संबंध आधारित विपणन, प्रतिस्पर्धी, नीति और भूराजनैतिक विश्लेषण में अच्छा अध्ययन है। भारत के अल्पकालिक दौरे पर आए प्रोफेसर सेठ कहते हैं कि कई कंपनियां मार्केटिंग के जुनून में संबंधों को भुला चुकी हैं। उन्होंने कहा कि कंपनियों को उपभोक्ताओं की जेब के बजाय उनके दिल पर कब्जा करने की दिशा में आगे बढऩा होगा। उन्होंने कहा कि प्रोग्राम, समेकित पेशकश और व्यक्तिगत सेवाओं का स्तर इतना व्यापक हो चुका है कि इनमें भेद नहीं किया जा सकता। सेठ कहते हैं कि ग्राहक के साथ जुड़ाव की बात करें तो दिल का रिश्ता आर्थिक पेशकश पर हमेशा भारी पड़ता है। वह कहते हैं कि यह रिश्ता कारोबारी रिश्ते से आगे बढ़कर मित्रता में तब्दील होना चाहिए।
वह उदाहरण देकर बताते हैं कि कैसे कारोबारी जगत के प्रसिद्ध नाम भी डिजिटलीकरण के दौर में ग्राहकों के साथ रिश्ता कायम करने का बुनियादी नियम भुला बैठे हैं। सेठ कम से कम तीन शीर्ष विमानन कंपनियों का जिक्र करते हैं जिन्होंने उन्हें फोन करके यह तक पूछना जरूरी नहीं समझा कि उन्होंने निरंतर यात्रा के दौरान जो बोनस प्वाइंट अर्जित किए थे, उनका इस्तेमाल करना उन्होंने क्यों बंद कर दिया। अगर उनमें से किसी एक ने एक बार भी फोन किया होता तो शायद उन्हें लगता कि वे बतौर मूल्यवान ग्राहक उनकी कदर करते हैं। चूंकि उन कंपनियों ने परवाह नहीं की इसलिए सेठ ने भी दूसरी विमानन कंपनियों का रुख कर लिया। रिश्तों पर आधारित मार्केटिंग में केवल आंकड़ों से काम नहीं चलता क्योंकि आखिरकार आपको इंसानों और उनकी भावनाओं से काम पड़ता है।
संबंधों पर आधारित मार्केटिंग, लेनदेन की पारंपरिक मार्केटिंग के विपरीत होती है जो केवल बिक्री बढ़ाने पर जोर देती है। हालांकि इसकी अहमियत को भी कम करके नहीं आंका जा सकता है लेकिन समस्या यह है कि किसी ग्राहक को एक बार ब्रांड पसंद करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है लेकिन बिना मजबूत संबंध आधारित मार्केटिंग नीति के वह दोबारा उस ब्रांड के पास लौटकर शायद ही आए। ग्राहक के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम करने के लिए यह आवश्यक है कि कंपनी ईमानदार हो और संवाद में उसकी संवेदनशीलता उजागर हो जाने से भी उसे कोई घबराहट नहीं होती हो। उदाहरण के लिए डोमिनोज ने बहुत प्रभावी तरीके से इसे अंजाम दिया। उसने ग्राहकों की नकारात्मक समीक्षा को लगातार सामने रखा, डोमिनोज के कर्मचारी इसे पढ़ते और एक बेहतर और सुधरे हुए पिज्जा का वादा करते। अपनी गलतियों को स्वीकार कर डोमिनोज ने अपने ब्रांड को पारदर्शी और ईमानदार साबित किया।
कुछ कंपनियां इसके लिए अनूठेपन या दुर्लभता का सिद्धांत अपनाते हैं। उदाहरण के लिए विमानन कंपनियां और उनके टिकट बेचने वाले एग्रीगेटर अक्सर यह दर्शाते हैं कि इस कीमत पर केवल तीन सीटें उपलब्ध हैं। यह सीधे-सीधे मांग और आपूर्ति के सिद्धांत की तरह काम करता है। अवसर जितना कम होगा, विषयवस्तु या उत्पाद, ग्राहक के लिए उतना ही महंगा होगा। कुछ अन्य ब्रांड आत्मगौरव का इस्तेमाल करते हैं जो मैस्लो के आवश्यकताओं के पदसोपान में सबसे ऊपर है। लोग चाहते हैं कि उन्हें तवज्जो दी जाए। यही कारण है कि कुछ विज्ञापन कहते हैं कि उनके उत्पाद सबके लिए नहीं हैं।
यह सही है कि हर गुजरता दिन ग्राहक के साथ भावनात्मक रिश्ते को कठिन बनाता जा रहा है क्योंकि तकनीक का प्रभाव बढ़ रहा है और कंपनियों को इस दिशा में अतिरिक्त प्रयास करने की जरूरत है। उदाहरण के लिए कंपनियां एक परिवार की आवश्यकता के अनुसार संबद्धता की नीति का इस्तेमाल कर सकती हैं। यह कम हो रहा है क्योंकि सेठ के मुताबिक अब परिजनों का स्थान रूममेट यानी साथ रहने वाले ले रहे हैं। पहले परिवार साथ में भोजन करते थे और मिलजुल कर काम करते थे। अब ऐसा नहीं है। लोगों में वैयक्तिकता बढ़ रही है। यानी एक परिवार के भीतर भी ब्रांड को लेकर लोगों की अलग-अलग पसंद है।
ऐसे में मार्केटिंग की संभावनाओं का काफी विस्तार हुआ है। परंतु अब चुनौती यह है कि परिवार के ऐसे हर सदस्य के साथ रिश्ता कायम करना होगा, जिसकी व्यक्तिगत ब्रांड प्राथमिकता है। मोबाइल फोन ने यह काम आसान किया है, कंपनियों को भी यह अंदाजा हुआ है कि उन्हें ग्राहक की जरूरत के मुताबिक चीजें तैयार करनी होंगी। यह काम केवल तकनीक से नहीं होगा बल्कि तकनीक का इस्तेमाल ग्राहकों के साथ भावनात्मक रिश्ता कायम करने में करना होगा ताकि वे बार-बार उनके पास लौट कर आयें।
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