कम घटेंगी निजी बैंकों की जमा दरें | रघु मोहन / मुंबई July 29, 2019 | | | | |
भारतीय स्टेट बैंक (एसबीआई) द्वारा विभिन्न योजनाओं के तहत जमा दरों में 20 आधार अंक से 75 आधार अंक की कटौती करने की घोषणा की है, जिससे निजी क्षेत्र के बैंकों को तुलनात्मक रूप से सस्ती सावधि जमा के मामले में राहत मिल सकती है। निजी बैंक एसबीआई के कदम पर चल सकते हैं, लेकिन जमा दरों में कटौती करते समय वे देश के सबसे बड़े बैंक की जमा दरों से मिलान बनाए रखने की कवायद करेंगे। सोमवार को देश के सबसे बड़े बैंक एसबीआई ने ज्यादा नकदी और गिरती ब्याज दरों का हवाला देकर जमा दरों में बदलाव किया है। स्टेट बैंक ने 1 अगस्त से 179 दिनों की अवधि के लिए जमा पर अपनी दरों में 50-75 आधार अंक की कटौती करने का फैसला किया है। वहीं दीर्घावधि योजनाओं में खुदरा में 20 आधार अंक और थोक जमा में (2 करोड़ रुपये से ऊपर) 35 आधार अंक की कमी करने का फैसला किया है।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) के गवर्नर शक्तिकांत दास ने इस महीने की 25 तारीख को मुख्य कार्यकारी अधिकारियों (सीईओ) की बैठक बुलाई थी, उसके बाद निजी बैंकों ने अपनी जमा दरोंं में एक पखवाड़े पहले ही 25 आधार अंक की कमी कर दी थी। अब इस बैठक को 2 अगस्त के लिए टाल दिया गया है। इस दौरान दास ने सरकारी बैंकों के सीईओ के साथ मुलाकात में केंद्रीय बैंक की ओर से दरों मेंं कटौती को ग्राहकों तक बेहतर तरीके से पहुंचाने की बात कही थी, खासकर नए कर्ज दिए जाने के मामले में उनका जोर था।
केयर रेटिंग में मुख्य अर्थशास्त्री मदन सबनवीस ने कहा, 'इसकी संभावना कम है कि स्टेट बैंंक ने सोमवार को जितनी कटौती की है, उतनी ही कटौती निजी क्षेत्र के बैंक भी करें। वे अपने बही खाते मजबूत कर रहे हैं और जमा की जरूरतें पूरी कर रहे हैं। ऐसे में उनकी जमा दरें सरकारी बैंकों की तुलना में थोड़ी ज्यादा रहेंगी। साथ ही म्युचुअल फंडों की बढ़त से निपटना है।' निजी क्षेत्र के बैंक जमा दरों के मामले में बहुत रणनीतिक रूप से कदम उठाएंगे क्योंकि म्युचुअल फंडों (एमएफ) और बीमा कंपनियों की कर बचत योजनाओंं से प्रतिस्पर्धा के कारण बैंकों में जमा का आधार कमजोर हुआ है। यह ढांचागत मसला है तो वित्त वर्ष 18 और वित्त वर्ष 19 के दौरान हुआ है। इसकी वजह से बैंकों की सावधि जमा (खुदरा और थोक दोनों) प्रभावित हुई है, हालांकि उनके चालू खाते व बचत खाते (सीएएसए) में अच्छी वृद्धि दर देखी गई है। हालांकि हाल के आंकड़े उपलब्ध नहीं हैं, लेकिन वित्त वर्ष 18 में बैंकों की गैर जमा राशियों (बॉन्ड और रिफाइनैंसिंग) की हिस्सेदारी बैंक की बढ़ी जमा राशि में 30 प्रतिशत रही, जबकि वित्त वर्ष 17 में इनकी हिस्सेदारी 11 प्रतिशत थी।
भारतीय रिजर्व बैंक की 'बैंकिंग में प्रगति एवं प्रवृत्ति (2018-19)' नामक रिपोर्ट में कहा गया है कि बैंकों के जमा में हमेशा सावधि जमा की हिस्सेदारी ज्यादा रही है, खासकर एक से दो साल की परिपक्वता वाले जमा की। इसकी वजह अन्य वित्तीय साधनों तुलना में इन पर ज्यादा ब्याज दरें हैं। लेकिन वित्त वर्ष 2017 से सीएएसए की हिस्सेदारी 5 प्रतिशत बढ़ी है, जो 5 साल के औसत की तुलना में ज्यादा है। खासकर सरकारी बैंकों में नोटबंदी के बाद इन खातों में जमा में बढ़ोतरी हुई है। वित्त वर्ष 18 में सरकारी और निजी दोनों ही बैंकोंं में सीएएसए जमा में थोड़ा सुधार हुआ है, जबकि विदेशी बैंकों में यह बढ़ा है। रिजर्व बैंक की रिपोर्ट में कहा गया है, 'सावधि जमा में समन्वित रूप से बढ़ोतरी हुई है, हालांकि सावधि जमा में मुनाफा अन्य प्रतिस्पर्धी योजनाओं जैसे म्युचुअल फंड और पेंशन फंड की तुलना में अनाकर्षक हो गया है।'
स्टेट बैंक द्वारा की गई जमा दरों में कटौती से हालांकि म्युचुअल फंड में बहुत तेजी आने की संभावना नहीं है क्योंकि हाल के दिनों में इस क्षेत्र को लेकर चिंता बढ़ी है, लेकिन यह भी सही है कि संभवत: निजी क्षेत्र के बैंक एसबीआई जितनी कटौती नहीं करेंगे। सोमवार को स्टेट बैंक द्वारा जमा दरों में की गई कटौती रिजर्व बैंक की 7 अगस्त को प्रस्तावित नीतिगत समीक्षा बैठक के पहले हुई है। उम्मीद की जा रही है कि इस बैठक में रिजर्व बैंक नीतिगत दरों में 50 आधार अंक की कटौती करेगा।
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