लंबी नहीं टिकी आम्रपाली के अनिल शर्मा की शोहरत | करण चौधरी / July 26, 2019 | | | | |
अनिल शर्मा के दोस्त हमेशा यह मानते थे कि वह कभी मात नहीं खा सकते। उनका मानना था कि आम्रपाली समूह के इस चेयरमैन के आड़े कोई चीज नहीं आ सकती है। ऐसा लगता था कि शर्मा के पास सभी कुछ है- कॉलेज की प्रतिष्ठित डिग्री, अधिकारियों एवं राजनेताओं से संपर्क और सबसे अहम किस्मत, जिसने लगभग दो दशक तक उनका साथ दिया। इस रियल एस्टेट समूह के लिए सभी संभावनाएं खत्म होने से पहले तक उनके दोस्त यही मानते थे कि अनिल शर्मा किसी भी संकट से बाहर निकलने की कुव्वत रखते हैं। उनका मानना था कि शर्मा के पास तेज दिमाग है, मिलनसार स्वभाव है और वह हमेशा दूसरा विकल्प तैयार रखते हैं। लेकिन यह पहले की बात थी। मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने आम्रपाली समूह का रियल एस्टेट (नियमन एवं विकास) अधिनियम यानी रेरा के तहत पंजीकरण रद्द कर दिया और इसके भूमि पट्टों को रद्द करके इसे राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (एनसीआर) में अपनी मुख्य संपत्तियों से बेदखल कर दिया।
जब शर्मा क्रेडाई (एनसीआर) के अध्यक्ष थे, तब उनके साथ अच्छी जान-पहचान वाले दिल्ली-एनसीआर के एक प्रमुख रियल एस्टेट डेवलपर ने कहा, 'हम हमेशा यह मानते थे कि उन्हें कोई जोखिम नहीं है। एक समय वह इतने ताकतवर थे कि पहले समय लिए बिना बेहिचक मुख्यमंत्री के कार्यालय में जा सकते थे और केंद्र सरकार में बैठे लोगों को फोन कॉल कर काम करा लेते थे। उनकी इस पहुंच की वजह से ही हमने उन्हें एनसीआर में कनफेडरेशन ऑफ रियल एस्टेट डेवलपर्स ऑफ इंडिया (क्रेडाई) का अध्यक्ष चुना था। वह कोई भी परियोजना हासिल कर सकते थे। केवल फोन पर बड़े भूखंड खरीद सकते थे। सबसे अच्छी चीज यह थी कि उनके लोगों से अच्छे संपर्क थे, इसलिए हर कोई उन्हें जानना और उनके साथ कारोबार करना चाहता था।' एक समय आम्रपाली समूह की 24 शहरों में 50 से अधिक आवासीय और व्यावसायिक परियोजनाएं चल रही थीं। शर्मा पेज थ्री पार्टियों से लेकर महत्त्वूर्ण उद््घाटनों और राजनीतिक कार्यक्रमों तक में मौजूद रहते थे। अगर 2019 की बात करते हैं तो उनके नाम से 40,000 मकान खरीदारों का गुस्सा फूट पड़ता है। ये 40,000 मकान खरीदार अपने फ्लैटों की चाबी की लड़ाई लड़ रहे हैं, जो उन्हें अब से 7 साल से पहले ही मिल जाने चाहिए थे।
शर्मा का जन्म पटना से 50 किलोमीटर दूर बेगूसराय जिले के पंडारक में एक मध्य वर्गीय परिवार में हुआ था। शर्मा को यह शोहरत अपने तेज दिमाग से मिली। एनसीआर के एक डेवलपर और शर्मा के एक दोस्त ने कहा, 'वह जिस सरकारी स्कूल में पढ़े, उसमें अपने अन्य सहपाठियों से ज्यादा तेज थे। उन्होंने कड़ी मेहनत की और न केवल एनआईटी कालीकट से बीटेक करने बल्कि आईआईटी, खडग़पुर से एमटेक करने में कामयाब रहे। उस समय इस स्तर की शैक्षिक योग्यता बहुत कम सुनने को मिलती थी।'
उन्हें बिहार में एनटीपीसी में नौकरी मिली। वहां उन्होंने यह सीखा कि अफसरशाही के साथ कैसे काम किया जाता है। शर्मा ने दिल्ली-एनसीआर में रियल्टी कारोबार में भी अपने इसी ज्ञान को आजमाया। दोस्तों ने कहा, 'एनटीपीसी के वरिष्ठ कार्याधिकारियों के साथ बातचीत के दौरान उन्होंने महसूस किया कि रियल एस्टेट गतिविधियों का अगला बड़ा केंद्र ग्रेटर नोएडा होगा। वह कभी सरकारी कर्मचारी के रूप में सेवानिवृत्ति नहीं होना चाहते थे, इसलिए उन्होंने अपना पहला बड़ा कदम उठाया।' वर्ष 2002 से 2016 के बीच आम्रपाली समूह के पास ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, बिहार, झारखंड और राजस्थान जैसी जगहों पर कई बड़ी टाउनशिप थीं। कंपनी ने बड़े व्यापारिक केंद्र, सिनेमा हॉल, अस्पताल, होटल शृंखलाएं और आईटी केंद्र विकसित किए।
उन्हें जानने वाले लोगों ने कहा कि उनकी शिक्षा और उनकी पेशवर पृष्ठभूमि ने न केवल उन्हें उत्तर प्रदेश और केंद्र में अफसरशाही तक पहुंच बनाने में मदद दी बल्कि इसने उन्हें राजनेताओं का सम्मान भी दिलाया। शर्मा की तगड़ी लोकप्रियता थी और हमेशा सुर्खियों में रहते थे। यहां तक कि उनकी कंपनी ने फिल्म जगत में भी हाथ आजमाया और दो फिल्मों का निर्माण किया। एक 'गांधी टू हिटलर' और दूसरी 'आई डॉन्ट लव यू' थी। लेकिन उनकी महत्त्वाकांक्षाएं यहीं खत्म नहीं हुईं। वह सांसद भी बनना चाहते थे ताकि राजनीतिक ताकत हासिल की जा सके। उन्होंने 2014 में जनता दल (यूनाइटेड) के टिकट पर जहानाबाद से चुनाव लड़ा था, लेकिन करारी हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने राज्य सभा में आने की कोशिश की, लेकिन नाकाम रहे। इस समूह में संकट की आहट 2016 में हुई, जब आम्रपाली द्वारा अपने ऋणदातााओं को दिए जाने वाले चेक बाउंस होने लगे।
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