इस महीने बजट में घोषित 70,000 करोड़ रुपये की पुनर्पूंजीकरण की योजना सार्वजनिक क्षेत्र के बैकों की नियामकीय व बढ़त वाली पूंजी की जरूरत का ध्यान रख सकती है। मॉर्गन स्टैनली के एशियाई (जापान को छोड़कर) वित्तीय शोध प्रमुख अनिल अग्रवाल ने श्रीपाद ऑटे को दिए साक्षात्कार में कहा कि फंसे कर्ज में कमी से उनके मार्जिन को सहारा मिलेगा क्योंकि ब्याज अर्जित करने वाले कर्ज की हिस्सेदारी धीरे-धीरे बढ़ेगी। मुख्य अंश... ऐक्सिस बैंक, आईसीआईसीआई बैंक और भारतीय स्टेट बैंक जैसे बड़े बैंकों को लेकर आप क्यों सकारात्मक हैं? पिछले साल हमने कहा था कि परिसंपत्ति गुणवत्ता का परिदृश्य सुधरेगा और यह शेयरों का प्रदर्शन बेहतर करेगा। यह हो चुका है। अब मूल्यांकन लंबी अवधि के औसत से ऊपर है। गैर-निष्पादित कर्ज उम्मीद से थोड़ा है, जो शेयर को ज्यादा आगे नहीं ले जा रहा। लेकिन बड़े बैंकों के साथ सकारात्मक यह है कि प्रतिस्पर्धा में नाटकीय कमी आ रही है। थोक फंडिंग वाले संस्थानों की चुनौतियां, चाहे वह बैंक हो या गैर बैंक या हाउसिंग फाइनैंस कंपनी, यह है कि वे कर्ज नहीं दे सकते क्योंकि वे नकदी से जूझ रहे हैं। ऐसे माहौल में अगर आपके पास बढ़त के लिए पूंजी व नकदी है (जो इन बड़े बैंकों के पास है) तो आप अपनी लोनबुक किसी भी दर पर बढ़ा सकते हैं। संपत्ति की बढ़त में एकमात्र अवरोध यह है कि कितनी जल्दी वे जमाओं में इजाफा करते हैं। अगर आप मार्जिन या शुद्ध ब्याज मार्जिन के देखें तो बड़े बैंकों के पास कीमत की शक्ति है। उनके स्प्रेड मेंं सुधार हो रहा है, लिहाजा मुख्य आय मजबूत हो रही है। जमाओं की रफ्तार कब सामान्य होगी? भारत में वित्तीय बचत की समस्या है। जमाओं में बढ़त की रफ्तार कमजोर है, वित्तीय बचत कम हुई है। मुझे नहीं लगता कि इसमें आसानी से सुधार होगा, जब तक कि जमा दरें नहीं बढ़ती। आपको सरकारी समर्थन वाली प्रतिभूतियों से प्रतिस्पर्धा करना होता है, जो करीब 7 फीसदी दे रहा है। अगर सरकारी बैंक उधारी देना शुरू करेंगे तब जमाओं में बढ़ोतरी में मदद मिलेगी। उनका कर्ज-जमा अनुपात 65 फीसदी है। निजी बैंकों में यह 85-90 फीसदी है। ऐसे में सरकारी बैंकों के पास काफी नकदी है, लेकिन वे उधार नहीं दे रहे। मेरी राय में जमाओं में इजाफे के लिए सरकारी बैंकों को आक्रामकता के साथ उधार देना शुरू करना होगा। ऐसे में क्या सरकारी बैंकों के लिए लाभ का प्रबंधन चुनौतीपूर्ण होगा? मार्जिन के मामले में सरकारी बैंकों के साथ अच्छी बात यह है कि यह एक बैंंक से दूसरे बैंक का अलग-अलग होता है। इनके पास ऐसे गैर-निष्पादित कर्ज हैं जो ब्याज अर्जित नहीं करते। अगर ऐसे कर्ज में कमी आती है तो बैलेंस शीट में ब्याज अर्जित करने वाले कर्ज में इजाफा होगा और यह मार्जिन को सहारा देगा। इसके अलावा सरकारी बैंकों का शुद्ध ब्याज मार्जिन तब तक और बेहतर नहीं होगा जब तक कि उनकी लोनबुक में इजाफा नहीं होता। सरकारी बैंकों का सकारात्मक मार्जिन 2019-20 और 2020-21 में दिखेगा। बैंकों के मूल्यांकन में कितना विस्तार होगा? अगर आप निजी क्षेत्र के बड़े बैंकों पर नजर डालें तो ये सभी लंबी अवधि के औसत या इससे थोड़ा ऊपर कारोबार कर रहे हैं। चूंकि वैश्विक ब्याज दर का चक्र बदल रहा है और भारतीय ब्याज दर घट रहा है, ऐसे में कच्चे तेल की कीमत सुस्त है। मुझे आश्चर्य नहीं होगा अगर अगले 12 महीने में इनका मूल्यांकन वास्तव में ऊपर चढ़ता है। क्या निवेशकों को एनबीएफसी से दूर रहना चाहिए? अभी उनके साथ समस्या नकदी पाने की है। ऐसे में संघर्ष कर रही (और आगे भी संघर्ष जारी रह सकता है) कई एनबीएफसी या हाउसिंग फाइनैंस कंपनियां सामान्य तौर पर पसंद नहींं की जा रही।
