अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं रद्द करने पर रोक | श्रेया जय / नई दिल्ली July 25, 2019 | | | | |
आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने राज्य सरकार की एक समिति द्वारा राज्य की सभी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं का आवंटन रद्द किए जाने की कार्यवाही पर रोक लगा दी है, जिससे 7,900 मेगावॉट क्षमता की परियोजनाओं को थोड़ी राहत मिल गई है। यह स्थगनादेश 4 सप्ताह के लिए है। इसके बाद न्यायालय आवंटित की गई सभी अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की बिजली की दरों को कम करने के सरकार के फैसले की वैधता की जांच करेगा, जिसका आवंटन पिछली सरकार ने किया था। राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) के सहयोगी वाईएसआर कांग्रेस की नवगठित सरकार ने उच्चस्तरीय वार्ता समिति (एचएलएनसी) का गठन किया था, जिसे राज्य में प्रतिस्पर्धी बोली से अक्षय ऊर्जा परियोजनाएं हासिल करने वालों की बिजली की दरों की समीक्षा, दरों को लेकर मोलभाव, और उन्हें कम करने का काम किया जा सके।
समिति और फैसला एक आदेश का हिस्सा था, जिसमें ऊर्जा विभाग ने अक्षय ऊर्जा उद्योग के सभी हिस्सेदारों के लिए आदेश जारी किया था। विभाग ने बिजली वितरण कंपनियोंं की खराब वित्तीय हालत को बिजली दरों की समीक्षा की वजह बताई थी। राज्य की वितरण कंपनियों पर 20,000 करोड़ रुपये का कर्ज है। उदय पोर्टल पर उपलब्ध हाल की जानकारी के मुताबिक इसकी शुद्ध आय में 1,563 करोड़ रुपये का घाटा दिखाया गया है। आदेश में कहा गया है, 'राज्य में बिजली वितरण कंपनियां वित्तीय संकट से गुजर रही हैं। इसकी एक बड़ी वजह पवन और सौर ऊर्जा खरीद समझौते की असामान्य दरें हैं, जो हाल के वर्षों में हुए हैं। ग्राहकों को उचित दर पर बिजली मुहैया कराने और वितरण कंपनियों पर वित्तीय दबाव को ध्यान में रखते हुए पवन और सौर ऊर्जा खरीद समझौतों (पीपीए) की बढ़ी कीमतों की समीक्षा और उन पर फिर से बातचीत की जरूरत है।'
राज्य सरकार ने अपने आगे की नोटिस और प्रस्तुति में कहा है कि पहले की सरकार के कार्यकाल में किए गए समझौते 'गलत इरादे' से किए गए और इसकी वजह से राज्य के ग्राहकों पर अतार्किक बोझ बढ़ा है। राज्य सरकार ने अपने नोटिस में कहा है कि वज कुछ पवन बिजली परियोजनाओं के लिए बिजली का भाव 2.25 रुपये प्रति यूनिट तय करना चाहती है। इंडियन विंड पावर एसोसिएशन के साथ दर्जन भर पवन ऊर्जा कंपनियों और एक्मे सोलर और वारी एनर्जी सहित दो बिजली कंपनियों ने आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में रिट याचिका दायर की थी। ग्रीनको एनर्जी, जिसका आंध्र प्रदेश में आधार है, ने अपनी याचिका में कहा कि पीपीए में बदलाव करने का राज्य सरकार का फैसला मनमाना, अवैध, असंवैधानिक है और यह प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों का उल्लंघन भी करता है।
एक्मे सोलर होल्डिंग्स ने भी रिट दायर किया और कहा कि राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई बिजली अधिनियम 2003 के प्रवाधानों के खिलाफ है और इससे याचियों को संविधान के अनुच्छेद 14 और 19 में मिले अधिकारों का हनन होता है। सूत्रों ने कहा कि उच्च न्यायालय ने एचएलएनसी की किसी भी कार्यवाही पर रोक लगाने का आदेश दिया है। इसका मतलब यह हुआ कि अगले 4 सप्ताह तक शुल्क पर कोई समीक्षा नहीं होगी। उद्योग जगत के अधिकारियों ने कहा कि यह एक अस्थायी राहत है और कोई बड़ी राहत नहीं मिली है।
एक अधिकारी ने कहा, 'राज्य पहले ही अक्षय ऊर्जा परियोजना डेवलपरों के भुगतान में पीछे है। छह महीने से ज्यादा समय से बकाया है। यह स्थगनादेश बिजली शुल्क में बदलाव पर है। राज्य का ऊर्जा विभाग लगातार भुगतान में देरी कर रहा है।' रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने हाल में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि शुल्क की समीक्षा और पीपीए रद्द करने से 5.2 गीगावॉट क्षमता की पवन और सौर ऊर्जा परियोजनाएं अतिरिक्त दबाव में आ सकती हैं, जिन पर अनुमानित कर्ज 21,000 करोड़ रुपये से ज्यादा है। रेटिंग एजेंसी ने कहा था, 'उपरोक्त क्षमताओं में से करीब आधी चूक को लेकर उच्च जोखिम में हैं, क्योंकि परियोजना से इतर उनको नकदी का समर्थन नहीं है।'
पवन ऊर्जा खरीद पर रोक
आंध्र प्रदेश सरकार ने चौंकाने वाला कदम उठाते हुए सभी पवन ऊर्जा डेवलपरों से बिजली का उत्पादन बंद करने को कहा है। राज्य सरकार ने सभी बिजली इकाइयों को अधिसूचित किया है कि वह पवन ऊर्जा खरीद में 100 प्रतिशत कटौती कर रही है। इस क्षेत्र के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा, 'राज्य सरकार ने डेवलपरों को मौखिक रूप से सूचित किया है कि वे अपने विंड टर्बाइन तत्काल बंद कर दें।' बिजली आपूर्ति की रूपरेखा बनाने वाले लोड डिस्पैच सेंटर की ओर से कोई नोटिस नहीं भेजा गया है। यह फैसला ठीक उसी दिन उठाया गया है, जब आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय ने अक्षय ऊर्जा की दरों में बदलाव की सभी कार्यवाही और पिछली सरकार के समझौतों को रद्द करने पर रोक लगा दी है।
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