अब आय की रफ्तार पर एफएमसीजी का ध्यान | विवेट सुजन पिंटो / मुंबई July 24, 2019 | | | | |
एफएमसीजी बाजार में मंदी स्पष्ट होने के बाद ज्यादातर कंपनियां वॉल्यूम में बढ़ोतरी से अपना ध्यान दूसरी तरफ ले जा रही हैं। उनका ध्यान अब इसकी बजाय विज्ञापन और अन्य खर्च में कटौती के दम पर आय में बढ़ोतरी पर है। जरा इस पर गौर कीजिये : पिछले एक हफ्ते में छह कंपनियों ने जून तिमाही के नतीजे पेश किए और संयुक्त रूप से इनकी शुद्ध बिक्री की रफ्तार 8.9 फीसदी रही जबकि लाभ में 12.7 फीसदी की उछाल आई। खास तौर से राजस्व की रफ्तार कमजोर रही क्योंकि बिक्री की रफ्तार का इस पर असर पड़ा। राजस्व की रफ्तार मार्च तिमाही में ही नरम होने लगी थी, जो इस वित्त वर्ष की पहली तिमाही में और नरम हो गई। उदाहरण के लिए हिंदुस्तान यूनिलीवर की बिक्री की रफ्तार पहली तिमाही में पिछली सात तिमाहियोंं में सबसे कमजोर रही और इसमें सिर्फ 5 फीसदी की बढ़ोतरी दर्ज हुई। मार्च तिमाही में एचयूएल की बिक्री की रफ्तार 7 फीसदी रही थी।
लेकिन मार्जिन के मोर्चे पर एचयूएल के पास अच्छी खबरें हैं। इसका परिचालन या एबिटा मार्जिन पहली तिमाही में 250 आधार अंक सुधरा। नए लेखा मानक के असर को छोड़ दें (जिसकी शुरुआत जून तिमाही से हुई) तो एबिटा मार्जिन 150 आधार अंक बढ़ा क्योंकि एचयूएल ने विज्ञापन व अन्य खर्च में क्रमश: 70 आधार अंक व 150 आधार अंकों की कटौती की। अन्य खर्च में बिक्री व वितरण खर्च शामिल है। एचयूएल के अलावा डाबर, एशियन पेंट्स और ज्योति लैब्स ने भी पहली तिमाही में एबिटा मार्जिन में बढ़ोतरी दर्ज की। इनका एबिटा मार्जिन 140 से 182 आधार अंक तक बढ़ा। इसमें अपवाद के तौर पर कोलगेट पामोलीव व बजाज कंज्यूमर रही। कोलगेट पामोलीव का एबिटा मार्जिन पहली तिमाही में स्थिर रहा, वहीं बजाज कंज्यूमर का एबिटा मार्जिन 188 आधार अंक घट गया क्योंकि जून तिमाही में कंपनी का विज्ञापन खर्च ज्यादा था।
ब्रोकरेज फर्म एचडीएफसी सिक्योरिटीज के शोध विश्लेषक नवीन त्रिवेदी ने कहा, मंदी के समय में जब बढ़त में बिक्री का योगदान नहींं होता है तो विज्ञापन व अन्य खर्च में कमी और अन्य शृंखला की दक्षता अहम रणनीति होती है, जिसे कंपनियां अपना रही हैं। आय की रफ्तार पर आगामी तिमाहियोंं में ध्यान दिया जाएगा। पिछले हफ्ते मार्केट रिसर्च एजेंसी नीलसन ने एफएमसीजी बाजार के लिए कैलेंडर वर्ष 2019 में बढ़त का अनुमान घटा दिया था। एजेंसी ने कहा था कि अब बढ़त की रफ्तार 9-10 फीसदी रहेगी, जो पहले 11-12 फीसदी अनुमानित थी। यह आकलन पहली तिमाही के प्रदर्शन पर आधारित था, जो बढ़त की रफ्तार के लिहाज से 10 फीसदी के स्तर पर आ गया, जो मार्च 2019 व दिसंबर 2018 की तिमाही में क्रमश: 13.4 फीसदी व 15.7 फीसदी रहा था।
कच्चे माल की कीमतें स्थिर रहने से भी पहली तिमाही में मार्जिन बढ़ा। विश्लेषकों ने कहा कि कंपनियों को आय की रफ्तार को सहारा देने के लिए भविष्य में लागत से जुड़े और कदम उठाने पड़ सकते हैं। साल दर साल के हिसाब से कच्चे तेल की कीमतें 13 फीसदी घटी हैं जबकि पाम तेल की कीमतों में 6 फीसदी की नरमी आई है। ये दोनों एफएमसीजी के लिए अहम कच्चा माल है। मंगलवार को एचयूएल के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक संजीव मेहता ने कहा कि भविष्य में कच्चे तेल व मुद्रा पर नजर रखना अहम रहेगा।
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