एमडीआर छूट से यूपीआई भुगतान को मिलेगा बढ़ावा, बैंकों को लगेगी चपत | युवराज मलिक / बेंगलूरु July 15, 2019 | | | | |
मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) शुल्क जिसका वहन डिजिटल भुगतान पर दुकानदारों द्वारा किया जाता है, को समाप्त करने के निर्णय पर उद्योग जगत बंटा नजर आ रहा है। बिजनेस स्टैंडर्ड ने जिन विशेषज्ञों और उद्योग साझेदारों से बात की है उनका मानना है कि इस कदम से मुट्ïठी भर ग्राहकों (केवल दुकानदारों से लेनदेन करने वाले लोगों) और यूपीआई से जुड़े भुगतान प्रणाली का उपयोग करने वाले बड़े खुदरा दुकानदारों को फायदा पहुंचेगा जबकि इससे बैंक और प्वाइंट ऑफ सेल (पीओएस) प्रदाता भुगतान मध्यस्थों को नुकसान पहुंचेगा क्योंकि उनकी कमाई को इससे चोट पहुंचेगी।
5 जुलाई को पेश किए गए केंद्रीय बजट में सरकार ने घोषणा की थी कि 50 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार करने वाले दुकानदारों और उनके ग्राहकों से एमडीआर शुल्क नहीं वसूला जाएगा। इसकी सीमा में आने वाले कारोबारियों से भीम, यूपीआई, यूपीआई-क्यूआर कोड, आधार पे, कुछ तय डेबिट कार्डों, एनईएफटी, आरटीजीएस के जरिये भुगतान स्वीकार करने की सूरत में कोई शुल्क नहीं लिया जाएगा। इस शुल्क का वहन बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) द्वारा किया जाएगा। डिजिटल भुगतान सेवा प्रदाता उद्यम इजीटैप मोबाइल सॉल्यूशंस के मुख्य कार्याधिकारी (सीईओ) व्यास नामबिसन ने कहा, 'इसके बार में सरकार की ओर से इस पर और स्पष्टïता आएगी। इस योजना से शॉपर्स स्टॉप या बिग बाजार जैसी बड़ी खुदरा दुकान शृंखलाओं को यूपीआई भुगतान स्वीकार करने से फायदा होगा क्योंकि एमडीआर का भुगतान नहीं करने से उनकी जेब में अधिक पैसा आएगा।'
डेबिट और क्रेडिट कार्ड भुगतान के मामले में दुकानदार को लेनदेन रकम का 1 से 3 फीसदी एमडीआर के रूप में जारीकर्ता बैंक को देना पड़ता है। सरकार ने कहा है कि कुछ डेबिट कार्डों को एमडीआर शुल्क से छूट दी जाएगी जिसका मतलब हुआ कि कुछ निश्चित बैंकों या कार्उ नेटवर्क के डेबिट कार्ड को खुदरा प्रतिष्ठïानों में अन्य कार्डों की अपेक्षा अधिक तवज्जो मिलेगी। हालांकि क्रेडिट कार्ड से भुगतान पर एमडीआर शुल्क जारी रहेगा। पेटीएम, गुगल पे या भीम जैसे प्रचलित भुगतान ऐप का इस्तेमाल करने वाले दुकानदारों पर इससे हल्का असर पड़ेगा क्योंकि ये कंपनियां अपने प्लेटफॉर्म के इस्तेमाल पर दुकानदारों से शुल्क नहीं वसूलती हैं। इसके पीछे उनकी रणनीति अपने कारोबार को बढ़ाने की होती है। बहरहाल 1 जनवरी 2020 तक 2,000 रुपये के लेनदेन पर यूपीआई से भुगतान करने पर कोई शुल्क नहीं वसूला जाएगा। इसके लिए सरकार ने 2017 के अंत में सब्सिडी देने की घोषणा की थी।
मोबाइल भुगतान के क्षेत्र में अग्रणी कंपनी पेटीएम ने एमडीआर से जुड़ी वित्त मंत्री की घोषणा की सराहना की है। कंपनी ने एक वक्तव्य में कहा, 'कुल मिलाकर उद्योग के लिए यह एक बड़ी बात है। पेटीएम का मॉडल शून्य एमडीआर पर तैयार किया गया है जिससे दुकानदारों को ऑनलाइन सामान बेचने या वित्तीय सेवा ग्राहक बनने का मौका मिलता है।' हालांकि उद्योग के साझेदारों का कहना है कि एमडीआर से छूट का बोझ डिजिटल भगतान कंपनियों के बैंकिंग साझेदारों द्वारा वहन किया जाएगा जिसके कारण बैंकों को डिजिटल भुगतान सेवाओं का प्रचार करने के लिए कम प्रोत्साहन मिलेगा।
डिजिटल लेनदेन में जैसे कि किसी सुपरमार्केट में कार्ड से भुगतान करने पर सुपरमार्केट (दुकानदार) अपने बैंकिंग सहयोगी (एक्वायरर के रूप में जाना जाने वाला यह बैंक दुकानदार के लिए पीओएस की व्यवस्था करता है) को एक शुल्क का भुगतान करता है। यह बैंक जितना शुल्क अपने दुकानदार से वसूलता है उससे अधिक शुल्क का भुगतान ग्राहक को कार्ड जारी करने वाले बैंक को करता है। इस दर को इंटर-चार्ज दर कहा जाता है। एमडीआर वसूलने का मकसद दुकानदार को पीओएस देने वाले बैंक के दुकान अधिग्रहण लागत को कम करने के लिए है जबकि इंटर-चार्ज दर वसूलने वाले बैंक के लिए यह अपने ग्राहक को खर्च के लिए प्रेरित करने से होने वाली कमाई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि एमडीआर छूट की घोषणा के बाद दुकान को पीओएस मुहैया कराने वाले एचडीएफसी, एक्सिस बैंक और आईसीआईसीआई जैसे बड़े बैंकों की कमाई को चोट पहुंचेगी। डिजिटल भुगतान कंपनियों का प्रतिनिधित्व करने वाले भारतीय भुगतान परिषद ने एक वक्तव्य जारी कर कहा है कि हाल की बजट घोषणा के मुताबिक अगर ग्राहकों व कारोबारियों से एमडीआर नहीं लिया जाता है तो इसका वहन सरकार को करना चाहिए।
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