इलेक्ट्रिक वाहनों की दौड़ में ग्राहकों को भुला दिया गया | अरिंदम मजूमदार / July 15, 2019 | | | | |
टीवीएस मोटर्स के चेयरमैन और प्रबंध निदेशक वेणु श्रीनिवासन ने हर बार की मंदी और नीतियों में जल्दी जल्दी हुए बदलाव को देखा है। लेकिन वे यह नहीं समझ पा रहे हैं कि इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए सरकार इतनी सख्त समयसीमा क्यों तय कर रही है। नीति आयोग ने वाहन निर्माताओं को साल 2025 तक पूरी तरह इलेक्ट्रिक की ओर जाने को कहा है। अरिंदम मजूमदार को दिए साक्षात्कार में श्रीनिवासन ने ईवी की दौड़ की राह में आने वाला बाधाओं पर विस्तार से बातचीत की। साथ ही यह भी बताया कि भारत के बेहतर दोपहिया उद्योग पर नीतिगत पाबंदी क्यों विनाशकारी होगी। पेश हैं मुख्य अंश...
सरकार ने पूरी तरह इलेक्ट्रिक वाहनों के लिए उद्योग के सामने महत्वाकांक्षी लक्ष्य रखा है और लग रहा है कि वह इससे पीछे नहीं हटेगी। यह लक्ष्य कितना वास्तविक है?
मेरा मानना है कि कायापलट पाबंदी से नहीं होनी चाहिए। हमें यह भी देखना चाहिए कि हम वास्तव में क्या हासिल करना चाहते हैं। अगर हम ग्रीनहाउस गैस पर नजर डालें तो भारत में ज्यादातर बिजली उत्पादन कोयले से होता है। अगर आप कोयले का इस्तेमाल कर रहे हैं तो निश्चित तौर पर यह बीएस-6 इंजन के मुकाबले ज्यादा कार्बन डायऑक्साइड पैदा कर रहा है। हाल में तेल व वाहन उद्योग ने बेहतर उत्सर्जन की खातिर इंजनों व र्ईंधन को उन्नत बनाने के लिए 1.7 लाख करोड़ रुपये निवेश किए हैं। इतनी रकम निवेश करने का क्या लाभ, अगर पांच साल में इस निवेश से कोई फायदा नहीं मिलना हो। दूसरा, अगर आप उच्च प्रदूषित शहरों पर नजर डालें तो बीएस-2 व बीएस-3 वाहनों को बाहर करने और प्रदूषण घटाने के लिए प्रोत्साहन इलेक्ट्रिक वाहनों के मुकाबले तेजी से काम करता है। तीसरा, सभी वाहन दिल्ली में उत्सर्जन में 20 फीसदी का योगदान करते हैं। इनमें से दोपहिया का योगदान महज तीन फीसदी है। ऐसे में पर्यावरण सुधारने के लिए यह किस तरह की प्राथमिकता है। मुझे लगता है कि सरकार अनावश्यक रूप से हड़बड़ी में है, जिसकी दरकार नहीं है। उत्सर्जन में सिर्फ तीन फीसदी के योगदान की वजह से आप उद्योग को बंद कर देंगे?
आप कह रहे हैं कि ईवी व पारंपरिक इंजन एक साथ अस्तित्व में बने रह सकते हैं?
आईसी इंजन उपलब्ध हैं। इसके बाद हल्के हाइब्रिड हैं। हल्के हाइब्रिड प्रदूषण के असर को कम कर सकते हैं। इसके बाद पूर्ण इलेक्ट्रिक वाहन का स्थान है। ऐसे में किसी एक को बंद करने की कोई वजह नहीं है। मुझे लगता है कि हमें यह समझना होगा कि समाज के लिए क्या सही है और इसके बाद समाधान खोजने का काम विनिर्माताओं पर छोड़ देना चाहिए। दुनिया के ज्यादातर देश ऐसा ही करते हैं।
ऐसे में क्या पूरी तरह से इलेक्ट्रिक वाहनों की ओर जाना अनिवार्य नहीं है?
ईवी की ओर एक समय में 100 फीसदी बढऩा दुनिया भर में कहीं नहीं हुआ है। ऐसा कभी नहींं हुआ है कि 100 फीसदी वाहन अचानक इलेक्ट्रिक वाहन में तब्दील हो गए। उदाहरण के लिए फोक्सवैगन ने ऐलान किया है कि 2035 तक चीन में बिकने वाले 50 फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक होंगे। इनके पास 15 साल की समयसीमा है और बदलाव सिर्फ 50 फीसदी होगा। चीन में सिर्फ तीन फीसदी वाहन इलेक्ट्रिक हैं। मुझे लगता है कि हम एक अरब से ज्यादा लोगों के जीवन में अवरोध पैदा करने के लिए तैयार नहीं हैं, जिसे उद्योग समर्थन देता है। इस पर हमें सोचना होगा।
क्या भारत का बुनियादी ढांचा ईवी के लिए तैयार है?
मैं समझ रहा हूं कि भीड़भाड़ वाले शहरों में प्रोत्साहन व बुनियादी ढांचे में सुधार पर आप प्रगति करना चाहते हैं। लेकिन छोटे शहरों व गांवों में चार्जिंग स्टेशन विकसित करना और मुश्किल होगा। चार्जिंग का ढांचा सिर्फ बिजली की उपलब्धता से नहींं जुड़ा है। स्थानीय बिजली ग्रिड काफी कमजोर हैं। किसी अपार्टमेंट में अगर हर कोई गीजर का स्विच ऑन कर दे तो फ्यूज उड़ जाता है। अगर हर कोई अपना वाहन चार्ज करने लगे तो क्या होगा? मुझे लगता है कि ईवी के मामले में हमें बुद्धिमत्ता से आगे बढऩा चाहिए। हम इस हड़बड़ी को समझ नहीं पा रहे हैं।
इसकी वास्तविक समयसीमा क्या होनी चाहिए?
वाहन निर्माताओं का संगठन लागत पर पडऩे वाले असर, रोजगार पर प्रभाव, उत्सर्जन पर असर और ग्रीन हाउस गैस को लेकर अध्ययन कर रहा है। मुझे लगता है कि तीन महीने में यह काम हो जाएगा। तब हम सरकार के पास अपना पक्ष रखेंगे।
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