कमजोर हुई भारतीय कंपनी जगत की बैलेंस शीट | इन कंपनियों का शुद्ध कर्ज-इक्विटी अनुपात बढ़ा, जिसने कर्ज घटाने की प्रक्रिया पर विराम लगा दिया | | कृष्ण कांत / मुंबई July 15, 2019 | | | | |
कंपनियों की आय में हुई हालिया गिरावट भारतीय कंपनी जगत की बैलेंस शीट व लिवरेज अनुपात पर असर डालना शुरू कर चुकी है। भारत की अग्रणी कंपनियों और कारोबारी समूह ने साल 2018-19 के दौरान कर्ज-इक्विटी अनुपात में बढ़ोतरी दर्ज की है और इस तरह से पिछले तीन साल से चल रही बैलेंस शीट को दुरुस्त करने की प्रक्रिया पर विराम लगा दिया है। निजी क्षेत्र का कर्ज-इक्विटी अनुपात वित्त वर्ष 2019 के आखिर में मामूली बढ़कर 0.88 गुने पर पहुंच गया, जो एक साल पहले 0.86 गुना था। कंपनियों की संयुक्त उïधारी साल दर साल के हिसाब से वित्त वर्ष 2019 में 13.2 फीसदी बढ़ी, जो पिछले पांच वर्षों की सबसे तेज रफ्तार है। इसकी तुलना में इनकी हैसियत या शेयधारकों की इक्विटी 11.3 फीसदी बढ़ी जबकि एख साल पहले इसकी रफ्तार 14 फीसदी रही थी।
हमारे नमूने में शामिल 40 सूचीबद्ध गैर-वित्तीय पीएसयू मसलन ओएनजीसी, एनटीपीसी, पावर ग्रिड, भारत हैवी इलेक्ट्रिकल्स और सेल के मामले में यह और भी खराब है। उनका औसत कर्ज-इक्विटी अनुपात साल दर साल के हिसाब से 10 आधार अंक बढ़कर वित्त वर्ष 2019 में 0.68 की रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गया। यह लगातार तीसरा साल है जब पीएसयू की बैलेंस शीट का अनुपात खराब हुआ है। सरकारी स्वामित्व वाली कंपनियों की संयुक्त उïधारी वित्त वर्ष में 13.5 फीसदी बढ़ी जबकि उनकी हैसियत में साल दर साल के हिसाब से 1.9 फीसदी का इजाफा हुआ। साथ ही उनकी नकदी व बैंक शेष में साल दर साल के हिसाब से 12.8 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई।
विश्लेषकों ने इसके लिए बढ़त की सुस्त रफ्तार और कमजोर लाभ को जिम्मेदार ठहराया है। इक्विनॉमिक्स रिसर्च ऐंड एडवाइजरी के प्रबंध निदेशक जी चोकालिंगम ने कहा, हर क्षेत्र में मांग की रफ्तार में भारी कमी देखने को मिली है, जिससे कंपनियों के राजस्व व लाभ पर चोट पहुंची है। सबसे ज्यादा मंदी गहन पूंजी वाले क्षेत्रों मसलन धातु, ऊर्जा, बुनियादी ढांचा व दूरसंचार में देखने को मिली, जिसने कंपनियों की बैलेंस शीट पर दोहरी चोट पहुंचाई। निजी क्षेत्र की कंपनियों का संयुक्त शुद्ध लाभ पिछले वित्त वर्ष में साल दर साल के हिसाब से 1.8 फीसदी घटा और आय में गिरावट का यह लगातार दूसरा साल है, वहीं सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों की आय 2.1 फीसदी बढ़ी।
विश्लेषकों के मुताबिक, सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों को मोटे तौर पर लाभांश भुगतान और शेयर पुनर्खरीद पर खर्च में बढ़ोतरी से झटका लगा। पीएसयू का नकदी रिजर्व वित्त वर्ष 2019 में साल दर साल के हिसाब से 12.8 फीसदी घटा। विश्लेषकों ने कहा कि ज्यादा कर्ज कंपनियों को नए दौर के पूंजीगत खर्च में मुश्किल होगी और अर्थव्यवस्था में अंतत: निवेश सूख जाएगा। आईडीएफसी सिक्योरिटीज के रणनीति प्रमुख और मुख्य अर्थशास्त्री धनंजय सिन्हा ने कहा, खाते में ज्यादा कर्ज को देखते हुए कंपनियों की नए पूंजीगत खर्च के लिए नया कर्ज लेने की क्षमता घटाएगा। बढ़त के लिए पूंजी उनके लाभ व नकद प्रवाह में बढ़ोतरी से ही आ सकती है। उन्होंने कहा, इसके अलावा अर्थव्यवस्था में मांग की स्थिति अभी कंपनियों के लिए बहुत उत्साहजनक नहीं है कि वे बड़े क्षमता विस्तार की ओर बढ़े।
यह विश्लेषण 782 गैर-वित्तीय कंपनियों के नमूने पर आधारित है, जो बीएसई-500, बीएसई मिडकैप और बीएसई स्मॉलकैप क्षेत्रों का हिस्सा हैं। इस नमूने में सूचना प्रौद्योगिकी निर्यातक, एफएमसीजी कंपनियां और वैश्विक बहुराष्ट्रीय कंपनियों की भारतीय सहायक शामिल नहीं हैं। इन क्षेत्रों की कंपनियां मसलन टीसीएस, इन्फोसिस, एचयूएल, आईटीसी, एशियन पेंट्स, सीमेंस इंडिया, बॉश और मारुति को नमूने में शामिल नहीं किया गया है क्योंकि वे कर्ज मुक्त हैं और काफी मुक्त नकदी सृजित करती हैं। इन कंपनियों को शामिल करने से भारतीय कंपनी जगत की कुल तस्वीर पर असर पड़ता। वित्त वर्ष 2019 के आखिर में भारतीय कंपनी जगत में ऐसे कर्ज मुक्त क्षेत्रों की हिस्सेदारी कुल कंपनी कर्ज में महज 1.5 फीसदी थी, लेकिन लाभ में इनकी हिस्सेदारी 35.6 फीसदी और सभी गैर-वित्तीय कंपनियों के संयुक्त बाजार पूंजीकरण में करीब 38 फीसदी।
यह विश्लेषण मोटे तौर पर अनअंकेक्षित वित्तीय आंकड़ों पर आधारित है क्योंकि ज्यादातर कंपनियों ने वित्त वर्ष 2019 की सालाना रिपोर्ट अभी पेश नहीं की है। अंतिम कर्ज व लिवरेज अनुपात ज्यादा हो सकती है क्योंकि अनअंकेक्षित बैलेंस शीट में उधारी कम दिखाई गई है। आंकड़े बताते हैं कि कंपनियों की कर्ज चुकाने की क्षमता घटी है। निजी क्षेत्र में ब्याज कवरेज अनुपात वित्त वर्ष 2019 में घटकर 2.1 फीसदी रह गया, जो एक साल पहले 2.3 फीसदी रहा था। सार्वजनिक क्षेत्र के मामलों में यह 30 आधार अंक घटकर 6.1 फीसदी रह गया।
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