डिजिटल भुगतान के लिए दुकानदार अक्सर इस तरह की प्रक्रिया को अपनाते हैं। जब भी कोई ग्राहक डेबिट या क्रेडिट कार्ड से भुगतान करने के लिए पूछता है तो वे 3 प्रतिशत अतिरिक्त शुल्क लेने की बात करते हैं। इसका कारण यह है कि कार्ड के जरिये भुगतान स्वीकार करने वाले दुकानदारों से प्रत्येक लेनदेन पर 'मर्चेंट डिस्काउंट रेट' (एमडीआर) नाम का शुल्क वसूला जाता है और वे इसे ग्राहकों पर डाल देते हैं। एक बार संसद द्वारा बजट प्रस्ताव पारित होने के बाद इस चलन पर रोक लग जाएगी। डिजिटल लेनदेन को बढ़ावा देने और भारत को कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था बनाने के लिए वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कई उपायों का प्रस्ताव रखा है। इनमें सबसे प्रभावी है कार्ड से लेनदेन पर दिए जाने वाले शुल्क को हटाना। इसके तहत कार्डधारक या दुकानदार को किसी तरह का शुल्क नहीं देना पड़ेगा। संबंधित बैंक और भारतीय रिजर्व बैंक इस शुल्क का वहन करेंगे। ईवाई इंडिया में टैक्स पार्टनर और इंडिया मोबिलिटी लीडर अमरपाल चढ्ढïा कहते हैं, 'सरकार ने अतीत में कई तरह के उपाय किए हैं, जैसे नोटबंदी के जरिये नकदी में कमी की और कालेधन पर नकेल कसी। लेकिन जितनी उम्मीद थी, उस गति से बदलाव नहीं हो रहे हैं। सरकार इस चुनौती से निपटने के लिए दूसरे रास्ते भी तलाश रही है। डिजिटल भुगतान को बढ़ावा देना इसमें से एक है।' चढ्ढïा के अनुसार सरकार की मंशा स्पष्ट है कि डिजिटल ही आगे की राह है। नकदी में लेनदेन को प्रतिबंधित किया जा रहा है। एक करोड़ रुपये से अधिक के लेनदेन पर कर अगर कोई भी व्यक्ति एक साल में बैंक या डाकघर से एक करोड़ रुपये से ज्यादा राशि निकालता है तो वित्तीय संस्थान खाते से 2 प्रतिशत कर वसूलेगा। इसके लिए सरकार आयकर अधिनियम कानून में धारा 194एन लेकर आ रही है। डेलॉयट इंडिया में पार्टनर दिव्या बवेजा कहती हैं, 'पिछले कई सालों से सरकार विदहोल्डिंग टैक्स की ओर तेजी से बढ़ रही है जिससे व्यवस्था में कई लूपहोल बंद हुए हैं।' वह बताती हैं कि जब बैंक या डाकघर कर काटकर जमा करेगा तो फॉर्म 26एएस स्वत: तैयार हो जाएगा। फॉर्म 26एएस टैक्स स्टेटमेंट है जिसमें पैन संख्या सहित कर संबंधी सभी जानकारियों होती हैं। अगर व्यक्ति करदाता नहीं है तो वह कर दायरे में आ जाएगा। कर विशेषज्ञों का कहना है कि यह 'बैंकिंग नकदी लेनदेन कर' (बीसीटीटी) की तरह है जिसे साल 2005 में लाया गया था। इसके तहत किसी व्यक्ति या हिंदु अविभाजित परिवार के लिए गैर-बचत खाते से एक दिन में 50,000 रुपये से अधिक और अन्य के लिए एक लाख रुपये से अधिक की नकदी निकासी पर 0.1 प्रतिशत कर चुकाना होता था। साल 2008 में इसे समाप्त कर दिया गया। डिजिटल भुगतान के लिए आगे आ रहे कारोबारी एमडीआर को कम करने के अलावा सरकार ने बड़े कारोबारियों के लिए कम लागत वाले डिजिटल भुगतान विकल्प उपलब्ध कराना सुनिश्चित करने के लिए कहा है। इसके लिए वित्त मंत्री ने एक नई धारा 269एसयू लाने का प्रस्ताव दिया है जिसके तहत पिछले वित्त वर्ष में 50 करोड़ रुपये से अधिक के बिक्री कारोबार या सकल प्राप्तियों वाले कारोबारियों को एक नवंबर के बाद इलेक्ट्रॉनिक तरीके से ही भुगतान लेने होंगे। अगर कारोबारी इसका पालन नहीं करते हैं तो जब तक कंपनी डिजिटल भुगतान स्वीकार करना शुरु नहीं करेगी, आयकर विभाग 5,000 रुपये रोजाना के हिसाब से पेनल्टी वसूलेगा। नई धारा 271डीबी में पेनल्टी का प्रावधान होगा। सलाहकार समूह आरएसएम ग्रुप के संस्थापक सुरेश सुराना कहते हैं, 'जब दुकानदार डिजिटल लेनदेन के जरिये भुगतान स्वीकार करने लगेंगे तभी देश को कम नकद वाली अर्थव्यवस्था बनाया जा सकता है। ग्राहक ई-कॉमर्स वेबसाइटों पर भुगतान करने या इस तरह के भुगतान से लाभ लेने के लिए डिजिटल पेमेंट कर रहे हैं। इसलिए सरकार ने बड़े कारोबारियों के लिए डिजिटल माध्यम से भुगतान स्वीकार करना अनिवार्य कर दिया है।' लंबा रास्ता सरकार कई सालों से नकद लेनदेन में कमी लाने के प्रयास कर रही है। विभिन्न धाराओं के जरिये सरकार ने भुगतान के लिए डिजिटल माध्यम अपनाना अनिवार्य किया है। उदाहरण के लिए, किसी भी संपत्ति के लेनदेन में नकद राशि 20,000 रुपये तक सीमित कर दी गई है। धारा 269एसटी के तहत कोई भी व्यक्ति एक दिन में किसी दूसरे व्यक्ति से 2 लाख रुपये से अधिक नकद नहीं ले सकता। निश्चित सीमा से अधिक पूंजीगत व्यय नकद राशि में होने पर संबंधित कारोबारी को लेनदेन करने पर रोक लगा दी जाती है। टैक्समैन.कॉम में चार्टर्ड अकाउंटेंट नवीन वाधवा कहते हैं, 'लेकिन यहां एक समस्या है। इस तरह के लेनदेन करने के लिए उपयोग में लाए जाने वाले माध्यमों को सरकार द्वारा स्पष्ट किया जाना चाहिए। देश में सभी व्यक्ति प्रत्येक समय डिजिटल लेनदेन नहींं कर सकते। जब भी सरकार भुगतान का नया तरीका लाती है, इसके लिए आयकर अधिनियम कानून में संशोधन करना पड़ता है।' प्रत्येक वित्त वर्ष में बजट के दौरान संशोधन करने के बजाय वित्त मंत्री ने नकद लेनदेन से जुड़ी हुई आयकर अधिनियम की सभी धाराओं को संशोधित करने का प्रस्ताव दिया है। इसमें कहा गया, 'दूसरे इलेक्ट्रॉनिक माध्यम, जो भी सुझाए गए हों।' इन शब्दों को जोडऩे के बाद सरकार संसद की मंजूरी लिए बिना केवल एक नोटिफिकेशन जारी करके भुगतान का नया माध्यम जोड़ सकती है। वाधवा कहते हैं कि कई ऐसे उदाहरण हैं जब आयकर अधिकारी डिजिटल भुगतान को लेकर आपत्ति जताते हैं क्योंकि ये आईटी कानून में उल्लिखित नहीं हैं। वह कहते हैं, 'कई अधिकारी कानून की मूल भावना को नहीं समझते। वे कानून के शब्दों पर अड़े रहना चाहते हैं।' कर विशेषज्ञों का कहना है कि सरकार डिजिटल भुगतान प्रणाली को लेकर काफी सक्रिय दिखाई दे रही है लेकिन उसे साइबर सुरक्षा पर भी ध्यान देना होगा। सुराना कहते हैं, 'डिजिटल भुगतान अधिक कुशल, पारदर्शी और सुविधाजनक है लेकिन यह साइबर सुरक्षा के लिए भी काफी संवेदनशील है। साइबर हमलों के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। सरकार को यह भी सुनिश्चित करना होगा कि डिजिटल भुगतान क्षेत्र की कंपनियां उचित सुरक्षा उपाय अपनाएं।'
