ज्यादा सख्ती | संपादकीय / July 09, 2019 | | | | |
सरकार ने वर्ष 2019-20 के बजट में भी देश की अर्थव्यवस्था का डिजिटलीकरण करने पर जोर बरकरार रखा है, खासतौर पर डिजिटल भुगतान के मामलों में। अर्थव्यवस्था के जिन हिस्सों में अभी नकदी आधारित लेनदेन हो रहा है, उसे सीमित करने की कोशिश में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा कि अगर किसी एक बैंक खाते से एक वर्ष में एक करोड़ रुपये से अधिक की निकासी होती है तो उसके स्रोत पर कर लगेगा। हालांकि इसे लेकर बहुत अधिक आपत्ति की गुंजाइश नहीं है क्योंकि यह नोटबंदी के समय प्रस्तावित कई अन्य प्रावधानों की तुलना में काफी कम कठोर है।
बहरहाल, बजट में डिजिटल भुगतान को लेकर जो नीतिगत रूप रेखा प्रस्तुत की गई है उनका नए सिरे से परीक्षण किया जाना चाहिए। वित्त मंत्री ने संकेत दिया है कि कम लागत वाले डिजिटल भुगतान माध्यम मसलन भीम यूपीआई, यूपीआई क्यूआर कोड, आधार पे, कुछ डेबिट कार्ड, एनईएफटी, आरटीजीएस आदि का इस्तेमाल करके नकदी रहित अर्थव्यवस्था को बढ़ावा दिया जा सकता है। ऐसा करके अर्थव्यवस्था में नकदी का प्रयोग कम होगा। यह प्रस्ताव भी रखा गया कि सालाना 50 करोड़ रुपये से अधिक के कारोबार वाले कारोबारी प्रतिष्ठïानों को ऐसे कम लागत वाले डिजिटल भुगतान माध्यमों की सुविधा अपने ग्राहकों को देनी चाहिए और ग्राहकों तथा कारोबारियों पर मर्चेंट डिस्काउंट रेट (एमडीआर) या कोई अन्य शुल्क नहीं लगाया जाना चाहिए।
ऐसा करने से मझोले आकार की दुकानों पर ऐसी डिजिटल भुगतान प्रणाली उपलब्ध कराने का दबाव बनेगा। पहली बात तो यह कि इसे लेकर लॉबीइंग की काफी संभावना है और सैद्घांतिक रूप से ही इससे दूरी बनाई जानी चाहिए। परंतु ज्यादा अहम बात यह है कि यह दुकानदारों, भुगतान कंपनियों और वित्तीय संस्थानों खासकर बैंकों पर छोड़ दिया जाना चाहिए कि वे अपने वाणिज्यिक हितों को ध्यान में रखकर निर्णय लें। केवल तभी एक स्थायी डिजिटल भुगतान व्यवस्था कायम हो सकेगी। एक ऐसा भुगतान ढांचा जो सरकार के आदेश और नियमन पर आधारित हो, वह अक्षम और अनाकर्षक साबित होगा। इकलौता स्थायी डिजिटल वित्तीय ढांचा वह होगा जहां शृंखला की हर कड़ी पर यानी ग्राहक और व्यापारी से लेकर बैंक और कंपनियों तक मौद्रिक लाभ सक्षम तरीके से साझा किया जाए। इसके लिए स्वैच्छिक रूप से डिजिटल लेनदेन को अपनाना होगा, न कि दबाव में।
यह कहा जा सकता है कि सरकार के कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के कई लाभ हैं और एक बार ऐसा लेनदेन पूरा होने के बाद इसके लाभ खुद ब खुद सामने आएंगे। ऐसी दलीलें खासतौर पर नोटबंदी के बाद ऐसी दलीलों को लेकर सावधानी बरतनी होगी। इतना ही नहीं ऐसे किसी भी आदेश की लागत का भी भलीभांति आकलन किया जाना चाहिए। अगर सरकार को लगता है कि कम नकदी वाली अर्थव्यवस्था को अपनाने के अधिक लाभ हैं तो आर्थिक दलील यह कहती है कि उसे इसकी लागत खुद उठानी चाहिए। एमडीआर कुछ डिजिटल भुगतान से राजस्व का बड़ा स्रोत रहा है। उसे खत्म करना इस दलील के प्रतिकूल है। इस मामले में वित्त मंत्रालय ने कहा कि भारतीय रिजर्व बैंक और अन्य बैंक इस लागत को बचत के सहारे झेल लेंगे जो लोगों के डिजिटल भुगतान अपनाने से उन्हें कम नकदी की साज संभाल के चलते होगी। अगर ऐसी कोई बचत होती है तो बैंक अपने दम पर ऐसा निर्णय ले सकते हैं और उन्हें इसकी इजाजत मिलनी चाहिए। ऐसे में संभावना यही है कि ऐसी बचत अभी भविष्य में दूर की कौड़ी है। उस स्थिति में सरकार को नीतिगत प्राथमिकताओं की लागत वहन करने का तरीका निकालना चाहिए, बजाय कि बैंकों या व्यापारियों पर दबाव बनाने के।
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