गूगल, फेसबुक पर आयकर विभाग की नजर | |
श्रीमी चौधरी / नई दिल्ली 07 09, 2019 | | | | |
► गूगल और फेसबुक जैसी तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों द्वारा भारत से राजस्व की कम रिपोर्टिंग की जांच करने का फैसला
► गूगल और फेसबुक पर 6% विदहोल्डिंग कर लगता है, जिसे मोदी सरकार ने 2016 में लगाया था
► अंतरराष्ट्रीय कराधान विभाग को इन वैश्विक फर्मों द्वारा बनाई गई सभी रसीदों की जांच करने और भुगतान वाली रसीद से उनका मिलान करने को कहा गया है
आयकर विभाग ने गूगल और फेसबुक जैसी तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज कंपनियों द्वारा भारत से अपने राजस्व की कम रिपोर्टिंग की जांच करने का फैसला किया है। बिजनेस स्टैंडर्ड को मिली जानकारी के मुताबिक आयकर विभाग तकनीकी कंपनियों के देश में विज्ञापन कारोबार से होने वाली आमदनी की जांच करने जा रहा है। कर विभाग को यह जानकारी मिली है कि वैश्विक कंपनियां, जिनसे 6 प्रतिशत विदहोल्डिंग कर (जिसे इक्वलाइजेशन लेवी के नाम से जाना जाता है) लिया जा रहा है, वे अपने भारतीय उपभोक्ताओं से होने वाली कमाई कम करके दिखा रही हैं।
भारत में ये कंपनियां 40 प्रतिशत कॉर्पोरेशन कर के दायरे में नहीं आती हैं, जो विदेशी कंपनियों को भुगतान करना होता है, लेकिन गूगल और फेसबुक पर विज्ञापनदाताओं से विदहोल्डिंग कर के रूप में 6 प्रतिशत लिया जाता है। नरेंद्र मोदी सरकार ने 2016 में विदहोल्डिंग कर लगाया था। यह कदम केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) द्वारा तैयार की गई कार्ययोजना के अनुरूप है, जो चालू वित्त वर्ष में कर चोरी करने वालों को पकडऩे के लिए तैयार की गई है। सीबीडीटी चाहता है कि सर्वे और स्पॉट वैरीफिकेशन किया जाए, जिससे विदहोल्डिंग कर का अनुपालन न करने के मामले पकड़े जा सकें।
आईटी के एक अधिकारी ने कहा, 'इन कंपनियों का भारत में परिचालन अपनी मूल कंपनी की सेवाओं के पुन: विक्रेता के रूप में होता है। ऐसे में भारत में इनकी आमदनी वास्तविक विज्ञापन राजस्व में नहीं नजर आती, जो भारत के उपभोक्ताओं से होती है।' सीबीडीटी के मुताबिक इस समय आकलन अधिकारी सिर्फ फॉर्म संख्या 1 (इक्वलाइजेशन लेवी) देख सकता है, जिसका भुगतान भारत में निवास करने वाला करता है। बहरहाल यह लेवी वास्तव में प्रवासी प्राप्तकर्ता की आमदनी से जुड़ी होती है और ऐसे में उस प्रवासी की सकल प्राप्ति से इसकी तुलना करने की जरूरत है। शीर्ष निकाय ने अंतरराष्ट्रीय कराधान विभाग को निर्देश दिया है कि वह इन वैश्विक फर्मों द्वारा बनाई गई सभी रसीदों की जांच करे और भुगतान वाली रसीद से उनका मिलान करे।
इसके अलावा कर विभाग यह भी जांच कर रहा है कि क्या सेवा प्रदाता कर संपत्ति घटा रहा है या नहीं, और कथित राशि को खजाने में जमा कर रहा है या नहीं। यह कर लगाए जाने के बाद भारत को इक्वलाइजेशन लेवी से 1,000 करोड़ रुपये मिले हैं। बहरहाल यह राशि इन फर्मों की भारत में गतिविधियों की तुलना में बहुत कम है। यही वजह है कि कर विभाग इन सेवाओं को गूगल कर में लाने पर विचार कर रहा है, जो इस समय डिजिटल विज्ञापन तक सीमित है।
वित्त विधेयक 2018 में पूर्व वित्त मंत्री अरुण जेटली ने आयकर अधिनियम की धारा 9 में संशोधन कर भारत में होने वाली आमदनी तक इसका विस्तार करने की संभावनाओंं की बात कही थी। इस कदम से सिर्फ फेसबुक और गूगल पर ही नहीं बल्कि अन्य तकनीकी कंपनियों जैसे एमेजॉन, उबर और ट्विटर पर भी असर पड़ सकता है। इस प्रावधान से डिजिटल कर लग जाएगा, जिसकी अहम आर्थिक उपस्थिति है, जो किसी प्रवासी की किसी भी वस्तु, सेवा या संपत्ति की भारत में मौजूदगी पर लग सकता है, जिसमें डेटा या सॉफ्टवेयर डाउनलोड भी शामिल होगा। यह ऐसी स्थिति में लागू होगा, जब इस तरह के लेन देन या या पहले के साल में लेन देन की राशि उल्लिखित राशि से ज्यादा होगी। दूसरे- इसमें कारोबारी गतिविधियोंं या ग्राहकों के साथ उल्लिखित संख्या में गतिविधियों पर व्यापार का व्यवस्थित और निरंतर आग्रह हो।
फेसबुक के उपभोक्ताओंं के साथ कंपनी द्वारा संचालित अन्य प्लेटफॉर्म जैसे ह्वाट्सऐप और इंस्टाग्राम के ग्राहक भी हैं। अनुमानित रूप से ह्वाट्सऐप और इंस्टाग्राम के क्रमश: 20 करोड़ और 6 करोड़ सक्रिय उपभोक्ता हैं। इस तरह से भारत की 1.3 अरब आबादी में से आधे लोग फेसबुक द्वारा संचालित किसी न किसी प्लेटफॉर्म से जुड़े हुए हैं। जी2ओ और ओईसीडी जैसे वैश्विक प्लेटफॉर्मों पर देशों के बीच डिजिटल टैक्स पर बातचीत हो रही है।
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