तकनीकी क्षेत्र की दिग्गज इन्फोसिस सहित नौ कंपनियां जो शेयर पुनर्खरीद में सक्रिय रहती हैं, उन पर कर का अप्र्रत्याशित बोझ बढ़ सकता है। शुक्रवार को पेश आम बजट में सूचीबद्घ कंपनियों की शेयर पुनर्खरीद पर 20 फीसदी अतिरिक्त कर चुकाने का प्रस्ताव किया गया है।
वित्त विधेयक के अनुसार इस कदम का मकसद लाभांश वितरण कर (डीडीटी) से परहेज करने के कदम पर रोक लग सकती है। नई व्यवस्था 5 जुलाई, 2019 से प्रभावी है। एनए शाह एसोसिएट्स में पार्टनर अशोक शाह ने कहा, 'इस प्रावधान का तत्काल असर उन सूचीबद्घ कंपनियों पर पड़ेगा जिनकी पुनर्खरीद प्रक्रिया अभी जारी है। इन्हें 20 फीसदी कर के साथ ही अधिभार और उपकर भी चुकाना होगा।'
प्राइम डेटाबेस के अनुसार, नौ कंपनियों की 8,605 करोड़ रुपये की पुनर्खरीद प्रक्रिया अभी जारी है। इनमें इन्फोसिस का पुनर्खरीद कार्यक्रम सबसे बड़ा करीब 8,260 करोड़ रुपये का है।
नए कर से इन कंपनियों के मुनाफे पर खासी चोट पड़ेगी क्योंकि 2018-19 में संचयी शुद्घ मुनाफे का औसतन 10 फीसदी कर भुगतान में जाएगा। उदाहरण के तौर पर इन्फोसिस को पुनर्खरीद के एवज में 1,924 करोड़ रुपये कर चुकाना होगा जो उसके 2918-19 के शुद्घ मुनाफे का करीब 12 फीसदी है।
आरएसएम एसट्यूट के संस्थापक सुरेश सुराणा ने कहा, 'किसी सूचीबद्घ कंपनी में शेयरधारकों से शेयरों को वापस खरीदने की प्रक्रिया के लिए 5 जुलाई के बाद आयकर कानून की धारा 115क्यूए के मुताबिक 23.30 फीसदी कर चुकाना होगा।'
उन्होंने कहा, 'पुनर्खरीद की घोषणा कर चुकी कंपनियों के लिए यह बड़ी बाधा होगी।' नए कर की घोषणा के बाद ऐसी नौ कंपनियों में से 3 को छोड़कर बाकी के शेयरों में शुक्रवार को गिरावट आई थी।
विश्लेषकों का कहना है कि इन शेयरों में आगे और बिकवाली का दबाव बढ़ेगा क्योंकि कर भार से उनकी कमाई प्रभावित होगी।
सरकार द्वारा लाभांश वितरण कर बढ़ाने के बाद से पिछले तीन साल से कई कंपनियां सक्रियता से शेयर पुनर्खरीद कर रही थीं। 2016 से कंपनियों ने 1.35 लाख करोड़ रुपये का शेयर पुनर्खरीद किया है। पूंजी बाजार के विशेषज्ञों ने चिंता जताई कि इससे पुनर्खरीद में कमी आ सकती है। 2016-17 में सरकार ने लाभांश आय प्राप्त करने वालों पर अतिरिक्त 10 फीसदी का कर लगाया था। इससे कई कंपनियां अपने शेेयरधारकों को उपकृत करने के लिए लाभांश की जगह पुनर्खरीद की प्रक्रिया अपना रही थीं। इसके तहत कंपनी अपने शेयरधारकों से शेयर वापस
खरीदती है।
अगर सूचीबद्घता के बाद किसी कंपनी का बाजार पूंजीकरण 3,000 करोड़ रुपये से अधिक है तो उसे न्यूनतम 10 फीसदी शेयर तुरंत बेचने होंगे और बाकी 25 फीसदी वह अगले तीन साल के भीतर बेच सकती है। सूचीबद्घता पर जिन कंपनियों का बाजार पूंजीकरण 1,000 करोड़ रुपये से 3,000 करोड़ रुपये होगा, उन्हें 25 फीसदी शेयर बेचने होंगे जबकि 1,000 करोड़ रुपये से कम बाजार पूंजीकरण वाली कंपनी को सूचीबद्घता के बाद 35 फीसदी शेयर बेचने होंगे। अलबत्ता इससे वे छोटी कंपनियां सूचीबद्घता से परहेज करेंगी जिनके पास पूंजी जुटाने की योजना नहीं है क्योंकि उन्हें प्रवर्तक की शेयरधारिता बेचने के लिए मजबूर होना पड़ेगा।साथ ही सेबी न्यूनतम सार्वजनिक शेयरधारिता बढ़ाने के लिए कंपनियों को कुछ नए विकल्प दे सकती है। अभी कंपनियों के पास इसके लिए ऑफर फॉर सेल (ओएफएस), राइट इश्यू, सार्वजनिक शेयरधारकों के लिए बोनस इश्यू और फॉलो ऑन पब्लिक ऑफर का विकल्प है। नियामक प्रवर्तकों को ब्लॉक ट्रेड की अनुमति दे सकता है जहां मूल्य निर्धारण मौजूदा बाजार मूल्य से 5 फीसदी तक की छूट पर हो सकता है। सूत्रों का कहना है कि संस्थागत नियोजन कार्यक्रम (आईपीपी) की प्रक्रिया को आसान बनाया जा सकता है। साथ ही क्यूआईपी के जरिये शेयर जारी करने वाली कंपनियों को भी कुछ राहत दी जा सकती है।
सेबी प्रवर्तक शेयधारकों को सामान्य शेयरधारक के रूप में पुनर्वर्गीकृत करने के नियमों को भी सख्त बनाएगा ताकि कंपनियां अनुपालन के लिए इस विकल्प का दुरुपयोग न करें। अभी 1300 से अधिक ऐसी सक्रिय कंपनियां हैं जिनमें प्रवर्तकों की हिस्सेदारी 65 फीसदी से अधिक है। मौजूदा बाजार दर के हिसाब से इन कंपनियों को प्रस्तावित नियमों के अनुपालन के लिए 4 लाख करोड़ रुपये के शेयरों को बेचना पड़ेगा। प्राइम डेटाबेस के संस्थापक पृथ्वी हल्दिया ने कहा, 'कई लोगों को आशंका है कि क्या बाजार इतनी आपूर्ति झेल पाएगा?' इस प्रस्ताव के समर्थक रहे हल्दिया ने कहा कि इससे बेहतर सार्वजनिक हिस्सेदारी सुनिश्चित होगी, बाजार में सांठगांठ और उतारचढ़ाव में कमी आएगी और शेयरों के बेहतर मूल्य मिलेंगे।
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