शून्य लागत तकनीक जांची-परखी | बीएस बातचीत | | संजीव मुखर्जी / July 09, 2019 | | | | |
सुभाष पालेकर भारत में शून्य लागत प्राकृतिक कृषि के सबसे पुराने पैरोकारों में से एक हैं। उन्होंने संजीव मुखर्जी के साथ साक्षात्कार में इन तकनीकों और उनके फसली उत्पादकता और किसानों की आय बढ़ाने पर दीर्घकालिक असर के बारे में बात की। बातचीत के अंश :
आप शून्य लागत प्राकृतिक कृषि का प्रचार-प्रसार कर रहे हैं। क्या आपको लगता है कि इसे देश में अपनाया जा सकता है?
मुझे नहीं पता कि कौन ऐसे लोग हैं, जो शून्य लागत प्राकृतिक कृषि की कारगरता और इसे बड़े पैमाने पर अपनाने की गुंजाइश पर सवाल उठा रहे हैं। ये वे लोग हैं, जो पैसा बनाना चाहते हैं। इस तकनीक बड़े पैमाने पर अपनाया जा सकता है और इसे भारत के सभी किसान अपना सकते हैं। लेकिन ऐसा एक-दो साल में नहीं हो सकता। इसमें समय लगेगा। देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पांच साल पहले किसानों को उनकी आय दोगुनी करने का आश्वासन दिया था। उन्होंने यह भरोसा इस उम्मीद के साथ दिया था कि देश के कृषि वैज्ञानिक ऐसी तकनीक विकसित करेंगे, जिनसे किसानों की आय 2022 तक दोगुनी की जा सकेगी।
मैं आपसे एक आसान सा सवाल पूछता हूं- क्या पिछले पांच वर्षों में किसी भारतीय कृषि वैज्ञानिक ने एक भी ऐसी तकनीक विकसित की है, जिससे आमदनी दोगुनी की जा सके?
उस समय नीति आयोग ने प्रधानमंत्री के निर्देश पर ऐसी तकनीक तलाशना शुरू किया था, जिनसे किसानों की आय 2022 तक दोगुनी की जा सके और साथ ही ग्लोबल वॉर्मिंग को कम कर सके। इसके बाद आयोग ने शून्य लागत प्राकृतिक कृषि पर ध्यान केंद्रित किया था।
जब पूरी दुनिया कार्बन फुटप्रिंट घटाने के बारे में विचार कर रही है तो कौन भारत में रासायनिक खेती का प्रसार करके कार्बन फुटफ्रिंट को बढ़ाना चाहता है? बहुत सी जगहों से ऐसी शिकायतें आई हैं कि शून्य लागत प्राकृतिक कृषि को अपनाने वाले किसान बाद में परंपरागत कृषि में लौट आए क्योंकि शुरुआती कुछ वर्षों के बाद प्रतिफल अच्छा नहीं मिल रहा था?
पूरी तरह गलत है। जिसने भी मेरी तकनीक अपनाई है, उसे प्रतिफल मिलना शुरू हो जाता है। यह प्रतिफल पहले साल से ही ऑर्गेनिक कृषि और रसायन आधारित कृषि से अधिक होता है। विभिन्न स्थानों पर ऐसे मॉडल चल रहे हैं, जो इन प्रतिफलों और इनकी सततता को दिखाते हैं।
अगर आपकी तकनीक इतनी अच्छी है तो इसे अभी तक बहुत बड़ी तादाद में लोगों ने क्यों नहीं अपनाया?
आप मुझे बताएं कि अगर हमें उत्पादन दोगुना करने की जरूरत पड़ती है क्योंकि आबादी अब बढ़ रही है और भूमि की उपलब्धता सीमित है तो इसका क्या उपाय है। दूसरा किसान खेती छोड़ रहे हैं क्योंकि रासायनिक खेती उनके लिए लाभकारी नहीं है। इतना ही नहीं, रसायन के अंश वाले खाद्य पदार्थ खाकर कौन कैंसर और मधुमेह से मरना चाहेगा? ये सभी समस्याएं उस जहरीले खाद्य की वजह से हैं, जो हम खाते हैं। इन सभी समस्याओं का समाधान प्राकृतिक कृषि है।
शून्य लागत प्राकृतिक खेती को लेकर सवाल हैं। बहुत से लोगों का कहना है कि इस तकनीक और विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों में इसकी सक्षमता पर उचित अध्ययन नहीं किए गए हैं।
ये अफवाह फैलाने वाले सभी लोगों को गोविंद वल्लभ पंत यूनिवर्सिटी ऑफ एग्रीकल्चर ऐंड टेक्नोलॉजी, पंत नगर (उत्तराखंड) या हिमाचल प्रदेश एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी, पालनपुर या आईसीएआर में भेजा जाना चाहिए, जहां शून्य लागत प्राकृतिक कृषि से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर बहुत से कार्य और फील्ड अध्ययन किए जा रहे हैं। सभी किसानों के लिए यह तकनीक उपयोगी होने के हमारे पास वैज्ञानिक सबूत हैं।
ऐसा लगता है कि केंद्र सरकार की इस तकनीक में रुचि है, इसलिए आप उससे क्या उम्मीद कर रहे हैं?
यह सही है कि सरकार लोगों को शून्य लागत प्राकृतिक कृषि अपनाने को बाध्य करने के लिए कानून नहीं बना सकती है। यह लोकतंत्र है। सरकार इस तकनीक को किसानों के लिए ऑर्गेनिक और रासायनिक कृषि के विकल्प के रूप में पेश करेगी। इसके बाद यह देखना किसानों का काम है कि उनके लिए सबसे कौनसी सबसे लाभप्रद है।
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