ब्याज दरें चाहे हुईं कम छोटी बचत में अब भी दम | संजय कुमार सिंह / July 07, 2019 | | | | |
सरकार ने जून के अंत में बचत जमाओं के अलावा सभी छोटी बचत योजनाओं पर ब्याज दरों में 10 आधार अंकों की कमी कर दी। अक्सर वरिष्ठ नागरिक और सुरक्षा चाहने वाले दूसरे निवेशक सरकारी गारंटी वाली इन योजनाओं में ही रकम लगाना पसंद करते हैं। उन्हें ब्याज में कटौती के बावजूद लघु बचत की अधिक आकर्षक योजनाओं में बने रहना चाहिए।
छोटी बचत योजनाओं के लिए ब्याज की दरें उतनी ही परिपक्वता अवधि वाले सरकारी बॉन्डों पर मिलने वाले प्रतिफल से जुड़ी रहती हैं। यह बात अलग है कि सरकार अपने हिसाब से ही उन्हें तय करती है। अप्रैल-जून तिमाही में 10 साल की अवधि वाली सरकारी प्रतिभूतियों पर प्रतिफल में करीब 40 आधार अंकों की गिरावट आई। भारतीय रिजर्व बैंक ने भी इस दौरान बेंचमार्क रीपो दर में लगातार तीन बार कटौती की है और उसमें कुल 75 आधार अंक की कमी आ गई है। इन सबके कारण और दरों में बदलाव का फायदा या नुकसान ग्राहकों को देने की जरूरत होने के कारण सरकार को लघु बचत दरों में भी कमी लानी पड़ी। लेकिन छोटे निवेशकों की हिफाजत को ध्यान में रखते हुए सरकार ने उतनी कटौती नहीं की, जितनी सरकारी बॉन्डों के प्रतिफल में गिरावट के कारण की जानी चाहिए थी।
ब्याज दरों में इस कटौती के बाद वरिष्ठï नागरिक बचत योजना पर 8.6 फीसदी ब्याज दिया जाएगा। मुंबई में वित्तीय योजनाकार अर्णव पांड्या कहते हैं, 'वरिष्ठ नागरिकों को पांच साल की किसी भी ऋण योजना पर इससे अच्छी ब्याज दर हासिल नहीं हो सकती।' इस योजना में उन्हें आयकर अधिनियम की धारा 80सी के तहत कर छूट भी हासिल होगी। ब्याज की आय पर कर वसूला जाता है। लेकिन वरिष्ठï नागरिक आयकर धारा 80टीटीबी के तहत मिलने वाली कर रियायत का इस्तेमाल कर सकते हैं, जिससे उनकी कर देनदारी घट जाएगी। बैंकों, सहकारी बैंकों और डाकघर में जमा रकम पर ब्याज से होने वाली 50,000 रुपये तक की आय को कर देनदारी से घटाया जा सकता है।
सुकन्या समृद्घि योजना भी आकर्षक बनी रहेगी। जो माता-पिता अपनी बच्ची की शिक्षा या विवाह के लिए रकम बचाना चाहते हैं, उन्हें 8.4 फीसदी ब्याज के साथ कर मुक्त प्रतिफल हर हाल में अच्छा लगेगा। योजना में अधिकतम 21 साल के लिए निवेश करना होता है और निवेशकों को इस बात के लिए तैयार रहना चाहिए कि इस योजना में तरलता बहुत सीमित है यानी हर समय नकदी निकालने की सुविधा नहीं है।
ब्याज दर में कटौती के बाद केवल ये दोनों योजनाएं ही अच्छी नहीं हैं बल्कि लोक भविष्य निधि (पीपीएफ) पर दांव लगाना भी ठीक रहेगा। पीपीएफ पर अब 7.9 फीसदी ब्याज मिलेगा और इस पर किसी भी तरह का कर नहीं लगता। इसीलिए जो निवेशक सेवानिवृत्ति के बाद अच्छी रकम जमा करने के लिए डेट में निवेश करना चाहते हैं, उनके लिए पीपीएफ खासा मुफीद है। सेबी में पंजीकृत निवेश सलाहकार पर्सनलफाइनैंसप्लानडॉटइन के संस्थापक दीपेश राघव कहते हैं, 'अगर आपके पीपीएफ के 15 साल पूरे हो जाते हैं और आप उसकी अवधि बढ़वाते हैं तो पीपीएफ की शर्तों में बहुत लचीलापन आ जाता है। आप जब चाहें उसमें रकम लगा सकते हैं और जब इच्छा हो निकाल भी सकते हैं।'
कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और पीपीएफ दोनों में ही ईईई की सहूलियत मिलती है यानी न तो मूल निवेश पर कर लगता है, न ब्याज पर और न ही रकम निकासी पर ब्याज लगता है। मगर सेवानिवृत्त हो चुके व्यक्ति को पीपीएफ में एक फायदा और मिलता है। राघव कहते हैं, 'रिटायर होने के बाद आप ईपीएफ में निवेश जारी नहीं रख सकते। अगर आप रिटायर होने के बाद ईपीएफ में जमा रकम नहीं निकालते हैं तो उस पर मिलने वाले ब्याज पर आपको कर चुकाना पड़ता है। लेकिन पीपीएफ में आप ताउम्र रकम लगा सकते हैं और निकाल भी सकते हैं। उस पर होने वाली आय पूरी तरह कर मुक्त होती है।'
ऊपर बताई गई तीनों लघु बचत योजनाओं यानी वरिष्ठï नागरिक बचत योजना, सुकन्या समृद्घि योजना और पीपीएफ में आयकर धारा 80सी के तहत कर लाभ भी मिलता है। विशेषज्ञ बताते हैं कि लघु बचत के मामले में सबसे उम्दा योजनाएं ये ही हैं।
राष्ट्रीय बचत पत्र (एनएससी) पर 7.9 फीसदी प्रतिफल हासिल होता है। लेकिन इस पर ब्याज से होने वाली आय पर कर वसूला जाता है। राहत यह है कि इस पर मिलने वाले ब्याज को वापस निवेश कर दिया जाता है और उस पर धारा 80सी के तहत लाभ मिलता है। सवाल यह उठता है कि इस राहत का फायदा उठा पाएंगे या नहीं क्योंकि अधिकतर निवेशक दूसरी निवेश योजनाओं के जरिये ही धारा 80सी के तहत 1.5 लाख रुपये का निवेश कर चुके होते हैं।
अलबत्ता सावधि जमा और मासिक आय योजना में निवेश करना बहुत फायदेमंद नहीं है। पांडय़ा समझाते हैं, 'उन पर ब्याज की दरें बहुत आकर्षक नहीं हैं। विशेषकर वरिष्ठï नागरिकों को उसी अवधि के लिए बैंक एफडी में रकम लगाने पर ज्यादा ब्याज हासिल हो सकता है। उन दोनों योजनाओं में कर का फायदा भी नहीं मिल रहा है।'
कर के बाद प्रतिफल के मामले में डेट फंड छोटी अवधि की कई योजनाओं पर भारी पड़ सकते हैं क्योंकि तीन साल पूरे होने के बाद उन्हें इंडेक्सेशन का फायदा मिल जाता है। मगर विशेषज्ञ सुरक्षित निवेश के हिमायती निवेशकों को इस समय उनमें रकम लगाने से कहने को हिचक रहे हैं। मिंटवॉक के सह संस्थापक निखिल बनर्जी कहते हैं, 'कंपनियां जिस तरह से डिफॉल्ट कर रही हैं या उनकी रेटिंग में कमी आ रही है, उन्हें देखते हुए सुरक्षा पर जोर देने वाले निवेशक विशेषकर बुजुर्ग लंबी अवधि के डेट फंडों से दूरी बरत सकते हैं। वह लिक्विड फंडों या ओवरनाइट फंडों में ही रकम लगाने की सोच सकते हैं।'
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