मध्य वर्ग को लूट कर होगा गरीब कल्याण? | शेखर गुप्ता / July 07, 2019 | | | | |
नरेंद्र मोदी सरकार के नवीनतम बजट का एक प्रमुख बिंदु यह भी है कि उसने सालाना 2 करोड़ रुपये से ऊपर आय अर्जित करने वाले अमीरों पर लगने वाले उच्च कर की दर में और इजाफा किया है। सालाना 5 करोड़ रुपये से ऊपर आय अर्जित करने वालों के लिए यह इजाफा और अधिक है।
सुधार समर्थक लोग कहेंगे कि यह इंदिरा गांधी की शैली है जिसमें अमीरों को लूटा जाता है। तमाम लोग यह भी कहेंगे कि यह इस बात का प्रमाण है कि मोदी ने भी समाजवाद के उस सिद्धांत को अपना लिया है जो आपातकाल के बाद से संविधान की प्रस्तावना का हिस्सा है। यह बात अलग है कि वह देश की सबसे स्थिर दक्षिणपंथी सरकार को दोबारा सत्ता में ले आए हैं।
दोनों गलत हैं क्योंकि मोदी सरकार अमीरों को नहीं बल्कि मध्य वर्ग को लूट रही है। यह वर्ग उनकी पार्टी का सबसे वफादार वोट बैंक भी है। हम यहां इस सवाल का उत्तर तलाश रहे हैं क्या इस अक्षुण्ण वफादारी की वजह से भी पार्टी इस वर्ग के साथ ऐसा व्यवहार कर रही है?
कुछ तथ्यों पर बात करते हैं। बीते पांच वर्ष में मोदी सरकार ने संभवत: राष्ट्रीय संपत्ति का गरीबों के पक्ष में सबसे प्रभावी हस्तांतरण या पुनर्वितरण किया। इसका सही-सही अंदाज लगाना मुश्किल है लेकिन आवास, शौचालय, घरेलू गैस और मुद्रा ऋण के क्षेत्र में 9 से 11 लाख करोड़ रुपये की बीच की राशि गरीबों में वितरित की गई। इस दौरान न के बराबर लीकेज हुई। जाति, धर्म आदि को लेकर कोई भेदभाव नहीं किया गया। इससे मोदी को दूसरी बार प्रचंड बहुमत हासिल करने में मदद मिली। परंतु यह पैसा आया कहां से?
हमारी तात्कालिक कल्पना यही होती है कि यह पैसा अमीरों से आया लेकिन तथ्य कुछ अलग कहानी कहते हैं। कच्चे तेल में गिरावट के बीच सरकार ने ईंधन पर कर बढ़ाना जारी रखा। इससे उसकी आय में इजाफा होता गया। इस राशि का अधिकांश हिस्सा वाहन इस्तेमाल करने वाले मध्य वर्ग से आया। ऐसे में यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि गरीबों को धन का हस्तांतरण तो हुआ लेकिन यह अमीरों से नहीं बल्कि मध्य वर्ग से आया। इसने मोदी को इतने वोट भी दिलाए कि वह आसानी से दोबारा सत्ता में आ गए।
बड़े शहरों से लेकर शहरीकृत राज्यों तक तमाम एक्जिट पोल के आंकड़े हमें यही बताते हैं कि मध्य वर्ग ने भी खुलकर मोदी के लिए मतदान किया। तेजी से शहरीकृत होता हरियाणा इसका उदाहरण है। यह अत्यंत अमीर प्रांत है जहां बहुत कम गरीब रहते हैं। वर्ष 2019 तक भाजपा यहां हाशिये पर थी लेकिन अब उसके पास यहां कुल मतों में 59 फीसदी हिस्सेदारी है।
मोदी ने जिस प्रकार अर्थव्यवस्था को चलाया है, उससे यही सबसे अहम बात निकलकर आती है। उन्होंने मध्य वर्ग से लेकर गरीबों को दिया और दोनों ने अगले चुनाव में उन्हें उतने ही उत्साह से वोट दिया। मध्य वर्ग उनके सबसे मजबूत वोट बैंक के रूप में उभरा है और वह खुशी खुशी कीमत चुकाने को तैयार है।
ताजा बजट की बात करें तो एक बार फिर अमीरों से लेने की भावना नजर आती है लेकिन क्या अमीरों को इससे दिक्कत है? उससे भी अहम बात यह कि क्या ऐसा करके सरकार अमीर होती है या गरीबों को देने के लिए उसके पास अधिक धन आता है? जवाब है नहीं।
हो सकता है कि आप यह जानना चाहें कि देश में ऐसे कितने धनाढ्य हैं। सीबीडीटी के आंकड़े बताते हैं कि गत वित्त वर्ष में केवल 6,351 लोगों ने अपने आयकर रिटर्न में 5 करोड़ रुपये से अधिक आय होने की बात कही थी। इनकी औसत आय 13 करोड़ रुपये थी। इससे कितना और राजस्व आएगा? बीसीसीआई के एक वर्ष के टर्नओवर से अधिक नहीं। गरीब रोमांचित होते रहेंगे और अमीरों को चूसा जाता रहेगा। जो वास्तव में अमीर होंगे वे धीरे से शिकायत करेंगे लेकिन वे गोपनीय चुनावी बॉन्ड खरीदते रहेंगे और ये एक खास पत्र पेटी में जाएंगे। आप अंदाजा लगा सकते हैं वह कौन सी पत्र पेटी है। अगर वे ऐसा नहीं करेंगे तो कर अधिकारी उन तक पहुंच जाएंगे।
गरीबों को सस्ते जोश और मनोरंजन के लिए बेवकूफ बनाया जा रहा है लेकिन असली मजाक मध्य वर्ग का उड़ा है। क्योंकि वर्ष 2014-19 की तरह इस बार भी वही अपनी संपत्ति देगा जिसे गरीबों को हस्तांतरित किया जाएगा। वित्त मंत्री ने बजट में पेट्रोल और डीजल पर अतिरिक्त कर लगाकर उनको तोहफे देने की शुरुआत की। कहा गया कि कच्चे तेल की कीमतों में आई गिरावट की भरपाई के लिए ऐसा किया जा रहा है।
इसके बाद कई ऐसी नीतियां प्रस्तुत की गईं जिनके आधार पर कहा जा सकता है कि यह मध्य वर्ग को चूसने का प्रयास है, न कि अमीरों को। शेयरों पर दीर्घावधि का पूंजीगत लाभ कर (एलटीसीजी) लगाया गया, लाभांश वितरण कर (डीडीटी) बढ़ाया गया, सालाना 10 लाख रुपये से ऊपर की लाभांश आय पर अतिरिक्त कर लगाया गया, 50 लाख रुपये से एक करोड़ रुपये के बीच की आय पर उपकर बढ़ाया गया, सब्सिडी कम की गई और घरेलू गैस समेत मध्य वर्ग से सब्सिडी के मामले में काफी कुछ छीना गया। हम गैर जरूरी सब्सिडी छीने जाने का स्वागत करते हैं लेकिन याद रहे कि इसकी कीमत कौन चुका रहा है। नोटबंदी और जीएसटी ने मध्य वर्ग की जीविका की लागत बढ़ा दी है।
मोदी और भाजपा इस बढ़ते मध्य वर्ग को जिस प्रकार इस्तेमाल कर रहे हैं, उससे पता चलता है कि उन्होंने उनका दिमाग अच्छी तरह फिरा दिया है। पार्टी के साथ उनकी वफादारी के कारक आर्थिक नहीं बल्कि उभरते, ताकतवर हिंदू राष्ट्रवाद में निहित हैं। इसमें मुस्लिम विरोध को और जोड़ा जा सकता है। इस वर्ग के कई लोगों को मुस्लिम विरोध वीभत्स लग सकता है लेकिन वे कैबिनेट, शीर्ष सरकारी पदों और संसद में मुस्लिमों की नामौजूदगी या कमी देखकर प्रसन्न हैं।
मेरे सहयोगी और राजनीतिक संपादक डी के सिंह ने एक उल्लेखनीय आंकड़ा निकाला है कि भाजपा के वित्त मंत्री अपने बजट भाषण में मध्य वर्ग का उल्लेख कितनी बार करते हैं। इसका औसत पांच है। चुनाव पूर्व पीयूष गोयल के अंतरिम बजट में 13 बार इस शब्द का इस्तेमाल किया गया। निर्मला सीतारमण के ताजा बजट में यह तीन रह गया। जाहिर है वह फरवरी में गोयल के किए गए उन वादों को पूरी तरह भुला बैठीं जिनमें मानक कटौती बढ़ाने, टीडीएस सीमा तय करने, कर दायरे में छूट जैसी बातें शामिल थीं। सवाल यही है कि जब आप प्रेम के वशीभूत होकर हमें वोट दे ही रहे हैं तो हम आपकी फिक्र क्यों करें? गरीब तो अहसान मानकर हमें वोट दे ही रहे हैं।
चार दशकों तक देश के मुस्लिम अल्पसंख्यकों को देश के धर्मनिरपेक्ष दलों ने मूर्ख बनाया। उन्हें पता था कि भाजपा से भयभीत मुस्लिम उन्हें वोट देंगे, इसलिए उन्होंने उनको हल्के में लेना शुरू कर दिया। यही कारण है कि उन्होंने मुस्लिमों के लिए कुछ नहीं किया। उनका वोट बचाव के लिए फिरौती के समान था। अब भाजपा को लग रहा है कि अधिकांश मध्य वर्ग इसी कारण उसे वोट कर रहा है। यही कारण है कि हम उसे मोदी के मुस्लिम कहकर पुकार रहे हैं।
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