देसी बाजार का कारोबार व आकार वैश्विक स्तर पर सबसे कम | सुंदर सेतुरामन / मुंबई July 03, 2019 | | | | |
भारतीय बाजार का कारोबार और आकार दुनिया भर के अहम बाजारों के मुकाबले सबसे कम है। साल 2018 के विश्व बैंक के आंकड़े के मुताबिक, भारत का तथाकथित टर्नओवर अनुपात (नकदी बाजार का टर्नओवर व बाजार पूंजीकरण का अनुपात) 58 है। इसकी तुलना में अमेरिका का अनुपात 109, दक्षिण कोरिया का 174 और चीन का अनुपात 206 है। दूसरे शब्दों में इन बाजारों में मार्केट वॉल्यूम यानी कारोबार, बाजार पूंजीकरण के मुकाबले ज्यादा है, वहीं भारत के मामले में यह आधे से थोड़ा ज्यादा है।
यहां तक छोटे उभरते बाजार मसलन ब्राजील और दक्षिण अफ्रीका की स्थिति बेहतर है और इनका टर्नओवर अनुपात क्रमश: 147 फीसदी और 79 फीसदी है। विश्व बैंक के मुताबिक, भारतीय टर्नओवर अनुपात 2018 में 43 फीसदी घटकर 58 रह गया, जो साल 2004 में 101 था। ब्रोकरों का कहना है कि ट्रेडिंग की ऊंची लागत और प्रतिभूति लेनदेन कर आदि के चलते यह गिरावट देखने को मिली है। बाजार के विशेषज्ञों ने कहा, साल 2004 में प्रतिभूति लेनदेन कर लागू होने के बाद से इस कर ने निवेशकों के लिए शेयरों, बिड-आस्क स्प्रेड आदि पर लेनदेन की लागत में नाटकीय रूप से इजाफा कर दिया है।
इसके परिणामस्वरूप प्रतिभूति में नकदी व वॉल्यूम भी घटा है। हालांकि एसटीटी तब लागू किया गया था जब लंबी अवधि के पूंजीगत लाभ कर को शून्य कर दिया गया था, लेकिन जब 2018 में फिर से लंबी अवधि का पूंजीगत लाभ कर लागू किया गया तब भी एसटीटी उसी स्तर पर बना हुआ है। क्रॉसियस कैपिटल के प्रबंध निदेशक राजेश बहेती ने कहा, वास्तविकता यह है कि आप पर एसटीटी लगता है और एसटीटी के बाद प्रोफेशनल ट्रेडरों को कारोबारी आय पर कर चुकाना होता है, जहां आपके अधिकतम दर पर वसूली होती है, जिसकी वजह से कराधान दोगुना या तिगुना हो जाता है।
टर्नओवर-बाजार पूंजीकरण के निचले अनुपात की एक अन्य वजह इक्विटी कल्चर का अभाव है। एचडीएफसी सिक्योरिटीज के प्रमुख (खुदरा शोध) दीपक जसानी ने कहा, खुदरा प्रतिभागियों की ज्यादा संख्या और देसी एचएनआई के बीच मजबूत इक्विटी कल्चर के चलते चीन का टर्नओवर अनुपात ज्यादातर विकसित अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले ज्यादा है। जसानी ने कहा कि कुल बाजार पूंजीकरण में कुछ शेयरों का वर्चस्व भी शायद वॉल्यूम को प्रभावित कर रहा है। उन्होंने कहा, समय के साथ भारतीय बाजार संकेंद्रित बाजार बन गया है। कुल बाजार पूंजीकरण में 20 अग्रणी शेयरों की हिस्सेदारी अभी काफी ज्यादा है।
बाजार के प्रतिभागियों ने कहा कि मार्जिन की ऊंची लागत और उच्च लेनदेन लागत प्रोफेशनल ट्रेडरों को दूर रख रहा है। साल 2007-08 में सरकार ने एसटीटी को कर भुगतान मानना बंद किया और इसे खर्च के तौर पर माना, जिसके चलते कारोबारी आय के तहत कर निर्धारण में कराधान दोगुना हो गया। बहेती ने कहा, अगर कारोबार की लागत अर्जित रिटर्न से ज्यादा होती है तो बाजार में रकम लगाने का मतलब नहीं बनता। पिछले दशक में भारत के बाजार पूंजीकरण में सालाना करीब 10 फीसदी की बढ़ोतरी हुई।
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