जल संकट से चेन्नई में बढ़ता जन आक्रोश | रॉयटर्स / July 02, 2019 | | | | |
चेन्नई से लगभग 20 मील दूर बंगारामपेट्टई गांव में पिछले महीने लगभग 150 लोगों ने पानी के एक टैंकर पर धावा बोल दिया था। इन ग्रामीणों ने इस टैंकर का शीशा तोड़ दिया और नजदीक के पुलिस स्टेशन के हवाले करने से पहले उसके टायरों की हवा निकाल दी। इस दक्षिण भारतीय शहर के बाहरी छोर पर रहने वाले लोगों में जल संकट को लेकर गुस्सा इस कदर बढ़ गया है कि वे सड़कों को जाम कर रहे हैं, टैंकर गाडिय़ों को नुकसान पहुंचा रहे हैं, क्योंकि उनका मानना है कि उनके जल भंडारों से पानी शहर के लागों, व्यवसायियों और लक्जरी होटलों को दिया जा रहा है।
बंगारामपेट्टई के ग्रामीणों ने टैंकर रोकने से एक दिन पहले क्षेत्र में सरकारी अधिकारी को भेजे पत्र में कहा था, 'निजी टैंकर हमारे गांव में आठ कुओं से भी ज्यादा से जुड़े हुए हैं और वे मनमाने तरीके से रोजाना हजारों लीटर पानी निकाल रहे हैं।' खराब जल प्रबंधन और बारिश के अभाव का मतलब है कि शहर में सभी चार जलाशय इस गर्मी में लगभग सूख गए हैं। इससे कई स्कूलों को बंद करने को बाध्य होना पड़ा है, कंपनियों को अपने कर्मचारियों से घर से काम करने को कहा गया है और होटलों ने मेहमानों के लिए पानी बचाकर रखने पर ध्यान केंद्रित किया है। राजधानी नई दिल्ली और आईटी हब बेंगलूरु समेत अन्य भारतीय शहरों को भी गंभीर जल संकट से जूझना पड़ रहा है।
लेकिन समस्या चेन्नई में ज्यादा गंभीर है। यहां तमिलनाडु सरकार द्वारा कृषि और ग्रामीणों की दैनिक जरूरतों के लिए कुओं के इस्तेमाल पर जोर दिए जाने से स्थानीय तौर पर तनाव बढ़ गया है। अपने पत्र में बंगारामपेट्टई के निवासियों ने कहा कि उन्होंने जिले के मुख्य प्रशासक समेत सरकारी अधिकारियों से अनुरोध किया, लेकिन टैंकर बगैर पानी दिए ही वापस लौट रहे हैं। एक स्थानीय साइनबोर्ड पेंटर एस अरुल ने कहा, 'अब गांव में दो पानी टंकियों में से एक में पानी नहीं रह गया है, क्योंकि निजी टैंकर रात-दिन पानी निकाल रहे हैं।'
राज्य के लोक निर्माण विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार चेन्नई के पड़ोस के जिलों तिरुवल्लूर और कांचीपुरम में भूजल स्तर मई में तेजी से घटा, जो चेन्नई को छोड़कर जिलों में राज्य के औसत की तुलना में काफी कम रह गया है। चेन्नई जिले के लिए आंकड़ा अभी सार्वजनिक नहीं किया गया है। आंकड़ों में कहा गया है कि कांचीपुरम जिले में कई विदेशी वाहन निर्माताओं के कारखाने हैं और यहां भूजल स्तर 6 फुट या राज्य के औसत से तीन गुना से भी ज्यादा घटकर मई 2019 के अंत तक 20 फुट रह गया। हालांकि अभी इसके संकेत नहीं मिले हैं कि कारखानों ने पानी की किल्लत की वजह से उत्पादन घटाया है।
बंगारामपेट्टई के नजदीक हार्डवेयर स्टोर चलाने वाले 27 वर्षीय एम जीवा ने कहा कि उन्होंने गांव का पानी वापस शहर में ले जा रही कई टैंकर गाडिय़ों का पीछा किया और पाया कि मुख्य तौर पर होटलों और कंपनियों को इस पानी की आपूर्ति की जा रही है। बंगारामपेट्टई के नजदीक तिरुनिनरावुर कस्बे में दो बड़ी झीलें सूख गई हैं। जब रॉयटर्स ने यहां का दौरा किया तो उसने पाया कि मछली पकडऩे वाली एक नाव बंद पड़ी देखी गई और सूखी हुई झील के मध्य में बच्चे क्रिकेट खेल रहे थे। शहर के बाहरी छोर पर स्थित एक अन्य गांव पूची अथिपेडू में स्थानीय जमींदार एस रमेश ने निजी टैंकरों को कुओं से पानी निकालने की अनुमति दे रखी है जिससे स्थानीय समुदाय में गुस्सा बढ़ रहा है।
तिरुवल्लूर के मुख्य प्रशासनिक अधिकारी मेगेस्वरी रविकुमार ने कहा, 'जल की निकासी सिर्फ उन्हीं जिलों के क्षेत्रों से की जा रही है जहां पर्याप्त पानी मौजूद है।' उन्होंने कहा कि जिला प्रशासन ने उन कुछ वाटर टैंकरों को रोका है जो अवैध तरीके से पानी भर रहे थे। राज्य सरकार के अधिकारियों का कहना है कि जिले में कम से कम तीन अन्य गांवों ने भूजल में गिरावट का विरोध करते हुए सड़कें अवरुद्घ की हैं। इन गांवों में ज्यादातर आबादी चावल और गन्ने की खेती पर निर्भर रहती है। साउथ चेन्नई प्राइवेट वाटर टैंकर्स एसोसिएशन के अध्यक्ष एन निजालिंगम ने यह स्वीकार किया कि ग्रामीणों ने उनके कुछ टैंकरों का पीछा किया था, जबकि कई अन्य टैंकरों को गुस्साई भीड़ से टकराना पड़ा था।
कई अन्य भारतीय शहरों की तरह चेन्नई का विकास भी पिछले 20 वर्षों से तेज गति और बेतरतीब ढंग से हुआ है। इसकी आबादी 2020 तक दोगुनी बढ़कर 1.07 करोड़ हो जाने का अनुमान है, जो संयुक्त राष्ट्र के एक आंकड़े के अनुसार वर्ष 2011 में 45 लाख थी। चेन्नई स्थित रेन सेंटर के निदेशक शेखर राघवन का कहना है कि चेन्नई नगरपालिका शहर का 50 प्रतिशत से अधिक पानी पाइपलाइन और प्राधिकरणों द्वारा किराए पर लिए गए टैंकरों के जरिये मुहैया कराती है जबकि शेष जलापूर्ति का प्रबंधन निजी कंपनियां करती हैं।
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