पानी की तलाश में एक प्यासा शहर | टी ई नरसिम्हन / July 01, 2019 | | | | |
मरीना तट के पास रहने वाले आर बालाजी कार्य के दौरान अपनी आंखें मुश्किल से ही खुली रख पाते हैं। पिछले कई सप्ताहों से उन्हें अपने दैनिक इस्तेमाल के लिए चार बर्तन पानी भरने के लिए सरकारी नलों के पास रातभर खड़े रहना पड़ता है। सरकारी नल में भी पानी का प्रवाह अच्छा नहीं है। इसे लेकर लगभग हर रोज बहस होती रहती है कि पानी भरने की अगली बारी किसकी है, क्योंकि लोग जल संकट की गंभीरता को देखते हुए अपना धैर्य खो बैठते हैं। लेकिन वे यह सब झेलने को तैयार हैं क्योंकि उनके पास इसके अलावा कोई विकल्प नहीं है। उनके घर में लगा नल कई सप्ताह पहले सूख गया जिससे बर्तन धोने का सिंक और शौचालय भी पानी के बगैर सूखे पड़े हैं। उनकी पत्नी और आठ साल की बेटी ने इस संकट से छुटकारा पाने के लिए हैदराबाद में अपने गृह नगर में अस्थायी रूप से जाने की योजना बनाई है।
रोजाना सुबह 5 बजे और फि र रात में 10 बजे घर से निकलना कस्तूरी और उनके पति का रुटीन है। वे मध्य चेन्नई में प्रमुख इलाके माइलापोन में अपने घर से आठ प्लास्टिक बर्तन लेकर निकल जाते हैं और शहर में नल की तलाश में लग जाते हैं। भूजल स्तर घट रहा है। लेकिन यदि वे भाग्यशाली हैं तो कुछ बर्तन पानी भरकर लाने में सफल रहते हैं, जो उनके लिए पेयजल, खाना पकाने, धोने, साफ-सफाई करने और स्नान आदि का एकमात्र स्रोत है। लगभग 50 लाख से ज्यादा लोगों के शहर, वाहन उद्योग के लिए हब, भारत के छठे सबसे बड़े शहर चेन्नई को अपने इतिहास में सबसे गंभीर जल संकट से जूझना पड़ रहा है। इसके चार मुख्य जलाशय पूरी तरह सूख चुके हैं। यहां आवासीय परिसरों, स्कूलों और सरकारी संस्थानों के लिए भी पानी की उचित सुविधा मौजूद नहीं है। होटलों और व्यावसायिक प्रतिष्ठानों ने कम पानी की समस्या की वजह से अपने परिचालन में कमी की है। यह स्थिति शहर के लिए आश्चर्यजनक है, क्योंकि यह प्रति दिन 107 लीटर प्रति व्यक्ति खपत के साथ सबसे कम पानी की खपत वाले शहरों में शामिल हो गया है, जबकि अन्य प्रमुख शहरों में यह खपत रोजाना 140-270 लीटर प्रति व्यक्ति है। यह स्थिति दक्षिण अफ्रीका के केप टाउन शहर की याद दिला सकता है जो आधुनिक समय में भी पानी की किल्लत की घोषणा करने वाला प्रमुख शहर बन गया। जहां राज्य सरकार प्रकृति पर दोष लगा रही है, जो कुछ हद तक सही भी है, क्योंकि पिछले 200 दिनों (22 जून तक) शहर में बिल्कुल भी बारिश नहीं हुई है। वहीं जानकारों का कहना है कि जल संकट काफी हद तक मानव-निर्मित समस्या है।
1,150 करोड़ क्यूबिक फुट की कुल क्षमता वाले शहर के चार प्रमुख जलाशयों में पानी घटकर पिछले साल की 20 प्रतिशत की क्षमता का महज 1 प्रतिशत रह गया है। मौजूदा समय में स्थिति ज्यादा बदतर हो गई है। 2017 में भी, जब तमिलनाडु को 2016 के मॉनसून की विफलता की वजह से 140 वर्षों में सबसे भयंकर सूखे का सामना करना पड़ा था, तब भी शहर के जलाशयों में ज्यादा पानी था। मौजूदा समय में तीन वाटर डीसैलिनेशन संयंत्र 18 करोड़ लीटर प्रतिदिन की आपूर्ति करते हैं। नई वीरानम पाइपलाइन प्रतिदिन 9 करोड़ लीटर पानी 1100 वर्ष पुराने चोला युग के जलाशय से 235 किलोमीटर दूर तक पहुंचाती है।
वर्ष 2018 में बारिश काफी कम रही और शहर में मॉनसून की सिर्फ 45 प्रतिशत बारिश ही हुई, जो पिछले 15 वर्षों में सबसे कम है। लेकिन अब सवाल उठता है कि जल संकट इस स्तर तक गंभीर कैसे बन गया है, क्या इसके लिए सरकारी प्रयासों का अभाव जिम्मेदार है? शिव नाडर यूनिवर्सिटी में स्कूल ऑफ ह्यूमेनिटीज ऐंड सोशल साइंसेज में इंटरनैशनल रिलेशंस ऐंड गवर्नेंस स्टडीज विभाग में प्रोफेसर राजेश्वरी रैना का कहना है, 'अब तक इन समस्याओं को दूर करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया गया है और शहर मौजूदा समय में जो समस्या देख रहा है, वह मानव-निर्मित है।'
चेन्नई के जल स्रोत शहर के तेजी से बढ़ रहे दायरे के अनुरूप गति बनाए रखने में विफल रहे हैं। पर्यावरणविद नित्यानंद जयरामन का कहना है कि 1980 में शहर में कुल निर्मित क्षेत्र 47 वर्ग किलोमीटर था जो 2010 में बढ़कर 402 वर्ग किलोमीटर हो गया और इसमें हर साल तेजी से इजाफा हो रहा है। चेन्नई से सटे दो जिलों - कांचीपुरम और तिरुवल्लूर को जल स्रोतों के लिए जाना जाता है क्योंकि वहां लगभग 6,000 झीलें, तालाब और जलाशय हैं, जो भूजल के लिए मुख्य स्रोत हैं। लेकिन अब इनमें से सिर्फ 3,896 जल स्रोत ही अपना अस्तित्व बचाए रख सके हैं। अन्ना यूनिवर्सिटी में भूविज्ञान विभाग ने 1893 के शहर के मानचित्र के आधार पर खुलासा किया है कि वहां लगभग 60 बड़े जल स्रोत थे। 1950 के दशक में लोगों ने नौपरिवहन के लिए बकिंघम नहर का इस्तेमाल किया। शहर के व्यस्त शॉपिंग हब टी नागर ने झीलों और तालाबों की हरियाली को गायब कर दिया है। जहां पहले हरा भरा जंगल दिखता था, वहीं अब यह कंक्रीट के जंगल में तब्दील हो गया है। इनमें से कई जलाशयों को सरकार द्वारा बंद कर दिया गया था। उदाहरण के लिए, 1970 के दशक में पानी से भरी रहने वाली नुंगमबक्कम झील अब कवि तिरुवल्लूवर को समर्पित स्मारक वल्लूवर कोट्टम में तब्दील हो गई है।
प्रयासों में विलंब
विश्लेषकों का कहना है कि हालात में सुधार लाने के लिए सरकार को शहर के जल स्रोतों को पुनर्जीवित करने के लिए सक्रियता के साथ प्रयास करने की जरूरत है। सरकार की प्राथमिकता जल स्रोतों की स्वच्छता, उन्हें अतिक्रमण से बचाना और नए जलाशयों का निर्माण करने की होनी चाहिए। शहर में लगभग एक सदी से सिर्फ तीन जलाशय हैं। रैना ने कहा, 'उचित योजना के क्रियान्वयन से शहर को पांच या सात वर्षों के सूखे की स्थिति से भी मुकाबला करने में मदद मिल सकती है। पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता का अनुमान घटाना होगा और फिर पानी को उसी के हिसाब से पुन: वितरित किया जाना होगा।' हर कोई इसे लेकर सहमत है कि यह मॉनसून की अनिश्चितता नहीं है, बल्कि भंडारण का अभाव बड़ी समस्या है। चेन्नई बड़ी मात्रा में समुद्र में बहने वाला पानी हासिल करता है। पिछले दशक के दौरान पूरे शहर में भूजल स्तर 85 प्रतिशत तक घटा है। जयरामन का कहना है, 'इस समस्या को दूर करने के लिए हम बड़ा भूमिगत जल भंडारण ढांचा बना सकते हैं। चेन्नई को हरेक 4-5 साल में जल आपूर्ति की किल्लत का सामना करना पड़ता है और हरेक 4-5 साल में शहर को बाढ़ की स्थिति से भी जूझना पड़ता है।'
स्वर्गीय मुख्यमंत्री जे जयललिता ने रेनवाटर हार्वेस्टिंग योजनाएं शुरू की थीं और सरकारी तथा आवासीय इमारकों के लिए इन्हें अनिवार्य बनाया गया था। ऐसे उपायों से शहर को 2000 के दशक के शुरू में पैदा हुए सूखे जैसे हालात का मुकाबला करने में मदद मिली। हालांकि इन योजनाओं को अच्छी तरह से क्रियान्वित नहीं किया गया था और वाटर हार्वेस्टिंग प्रणालियां लगाने वाले लोगों ने इनके नियमित रखरखाव पर ध्यान नहीं दिया जिसकी वजह से जल प्रणालियां कुछ वर्ष बाद ही निष्फल हो गईं।
सरकार की ताजा प्रतिक्रिया जल संकट को टालने की दिशा में एक उपयुक्त संकेत है। मुख्यमंत्री के पलानिस्वामी का कहना है कि शहर में अगले चार महीनों के लिए पर्याप्त पानी है और वह जल संकट को टालने के लिए सोच-समझकर जल की आपूर्ति कर रही है। सरकार ने बारिश के पानी को सुरक्षित रखने के लिए बांधों की जांच के लिए और इसे समुद्र में बहने से रोकने के लिए 1,000 करोड़ रुपये की परियोजना की घोषणा की है। अब तक ऐसी 56 परियोजनाएं चलाई गईं हैं और 17 को पूरा किया जा चुका है। एक नया जलाशय भी बनाया जा रहा है और इसे दो महीने के अंदर पूरा कर लिया जाएगा। जल स्रोतों के कायाकल्प/बहाली की कोशिश भी तेजी से की जा रही है। राज्य प्रशासन का मानना है कि ये परियोजनाएं चेन्नई में बारिश शुरू होने से पहले तैयार हो जाएंगी।
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