शुल्क दायरे में नेटफ्लिक्स-प्राइम | दिलाशा सेठ / नई दिल्ली June 28, 2019 | | | | |
ऑनलाइन विज्ञापनों पर इक्विलाइजेशन शुल्क से राजस्व लगातार बढ़ रहा है। इससे उत्साहित सरकार को यह शुल्क नेटफिलिक्स और एमेजॉन प्राइम जैसी डिजिटल कंटेंट स्ट्रीमिंग कंपनियों पर भी लगाने में गुंजाइश नजर आ रही है।
राजस्व संग्रह की स्थिति ठीक नहीं है और चालू वित्त वर्ष के लिए राजस्व लक्ष्य भी बड़ा है। ऐसे में सरकार अगले सप्ताह पेश किए जाने वाले बजट में इन डिजिटल सेवाओं पर कर लगाने के प्रस्ताव पर विचार कर सकती है। वित्त वर्ष 2018-19 में इक्विलाइजेशन शुल्क से राजस्व संग्रह बढ़कर 1,000 करोड़ रुपये पर पहुंच गया। यह 2017-18 में 560 करोड़ रुपये और 2016-17 में 200 करोड़ रुपये था। इक्विलाइजेशन शुल्क 2016-17 में लागू किया गया था।
एक सरकारी अधिकारी ने कहा, 'इक्विलिटी शुल्क से बढ़ता संग्रह उत्साहजनक है। इस शुल्क को इंटरनेट कंटेंट स्ट्रीमिंग कंपनियों पर लागू करने की भी गुंजाइश है। लेकिन इस समय इसका दायरा और अधिक नहीं बढ़ाया जाना चाहिए। डिजिटल कंपनियों पर कर का मुद्दा वैश्विक स्तर पर ज्वलंत है, इसलिए हम खुद को मनमर्जी से फैसला लेने वाले के रूप में नहीं दिखाना चाहते।'
भारत आर्थिक सहयोग एवं विकास संगठन (ओईसीडी) के बेस इरोजन ऐंड प्रॉफिट शिफ्टिंग (बीईपीएस) ढांचे के तहत भी स्थायी प्रतिष्ठान के दायरे को व्यापक बनाने के लिए दबाव बना रहा है ताकि गूगल, फेसबुक, माइक्रोसॉफ्ट और नेटफ्लिक्स जैस डिजिटल उद्यमों पर कर लगाया जा सके। हालांकि इक्विलाइजेशन शुल्क को डिजिटल कंपनियों पर कर लगाने के आसान तरीके के रूप में देखा जा रहा है क्योंकि इसे घरेलू नियमों के तहत लागू किया जा सकता है।
इसके लिए कर संधियों में बड़ी तादाद में संशोधन करने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह आय पर कर नहीं है। इक्विलाइजेशन शुल्क पर गठित समिति ने बी2सी स्तर यानी म्यूजिक या ऐप डाउनलोडिंग या क्लाउंड कंप्यूटिंग के लिए भुगतान जैसी डिजिटल सेवाओं पर 6 से 8 फीसदी शुल्क लगाने का प्रस्ताव रखा था। सरकार जानती है कि शुल्क की लागत का बोझ भारतीय ग्राहकों पर डाला जा सकता है, इसलिए वह यह सुनिश्चित करने के तरीके तलाश रही है कि लागत का बोझ विदेशी कंपनियों पर ही आए।
उदाहरण के लिए पेमेंट गेटवे। इससे करदाताओं को कर जमा कराने और दस्तावेजों की जरूरत नहीं पड़ेगी। सरकार ने पिछले साल बजट में अहम आर्थिक मौजूदगी के सिद्धांत का प्रस्ताव रखा था। इसके तहत भारतीय ग्राहकों से कारोबारी मुनाफा कमाने वाली प्रवासी डिजिटल कंपनियों पर कर लगाने में भारतीय उपयोक्ताओं की संख्या और राजस्व सीमा का इस्तेमाल किया जाएगा। हालांकि इसके लिए प्रत्येक दोहरे कराधान बचाव समझौते को संशोधित करना होगा, जो एक बड़ी चुनौती है। इसलिए ओईसीडी बेस इरोजन ऐंड प्रॉफिट शिफ्टिंग फ्रेमवर्क के तहत एक बहुपक्षीय योजना कारगर साबित हो सकती है, जिसमें सभी कर संधियां स्वत: ही संशोधित हो जाएंगी।
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