वित्त उद्योग विकास परिषद (एफआईडीसी) के ताजातरीन आंकड़े गैर बैंकिंग वित्तीय क्षेत्र (एनबीएफसी) में मंदी के स्तर की रूपरेखा प्रस्तुत करते हैं। आंकड़ों के मुताबिक अगर आवास वित्त कंपनियों को अलग कर दिया जाए तो एनबीएफसी द्वारा वित्त वर्ष 2018-19 की चौथी तिमाही में मंजूर ऋण में सालाना आधार पर 31 फीसदी की गिरावट आई है। समान वर्ष की तीसरी तिमाही में इसमें सालाना आधार पर 17 फीसदी की गिरावट देखने को मिली थी। यह वह अवधि है जिस दौरान इन्फ्रास्ट्रक्चर लीजिंग ऐंड फाइनैंशियल सर्विसेज यानी आईएलऐंडएफएस तथा उससे जुड़ी संस्थाओं के डिफॉल्ट की खबरें आने के बाद एनबीएफसी बाजार हिला हुआ था और निवेशकों का विश्वास डोला हुआ था। इस क्षेत्र में नकदी का संकट चिंता का विषय बन गया था क्योंकि एनबीएफसी को फंड की कमी अर्थव्यवस्था के लिए नकारात्मक थी और वृद्धि की संभावनाओं को धक्का पहुंचा रही थी। यह मानने की कोई खास वजह नहीं है कि वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही में एनबीएफसी के लिए हालात बेहतर हुए होंगे।एफआईडीसी के आंकड़ों का और बारीक अध्ययन बताता है कि सबसे बड़ी दिक्कत एनबीएफसी द्वारा लंबी अवधि के ऋण देने में आ रही है। जनवरी से मार्च तिमाही के बीच इसमें सालाना आधार पर 77 फीसदी की गिरावट आई। इसमें चकित होने वाली बात नहीं है क्योंकि परिपक्वता अवधि में अंतर यानी बैंकों से अल्पावधि का ऋण लेकर लंबी अवधि की परियोजना को फंड करना, आईएलऐंडएफएस तथा अन्य एनबीएफसी के समक्ष बड़ा संकट बना हुआ था। इसका वृद्धि और रोजगार की स्थिति पर बड़ा असर होना लाजिमी है। वृद्धि में सतत बढ़ोतरी के लिए यह आवश्यक है कि परियोजनाओं को सुगमता से वित्तीय सहायता हासिल होती रहे तथा रोजगार निर्माण की गति बरकरार रहे। अकुशल श्रमिक बुनियादी ढांचा और विनिर्माण उद्योग पर खासतौर पर निर्भर रहते हैं। सरकारी बैंकों की अत्यधिक जोखिम वाली बैलेंस शीट के कारण एनबीएफसी बुनियादी परियोजनाओं को ऋण देने वाली बिचौलिया संस्थाओं के रूप में सामने आईं। परंतु इस क्षेत्र में व्याप्त संकट ने इसके संसाधन सोख लिए। म्युचुअल फंड के निवेशकों ने भी इससे दूरी बना ली। अब, भले ही बैंकों में सुधार के संकेत नजर आ रहे हैं लेकिन वे अभी तक एनबीएफसी का स्थान नहीं ले सके हैं। न ही उन्होंने एनबीएफसी को कर्ज देना शुरू किया है। पुनर्भुगतान की चिंता के कारण एनबीएफसी की फंडिंग की लागत कई वर्षों के उच्चतम स्तर पर पहुंच गई है। एनबीएफसी के पांच वर्ष के शीर्ष बॉन्ड की लागत गत वर्ष 70 आधार अंक बढ़ गई। यही कारण है कि एनबीएफसी ने रिजर्व बैंक से कहा था कि उनके लिए एक अलग ऋण व्यवस्था आवश्यक है। हालांकि रिजर्व बैंक इसका इच्छुक नहीं दिखा और उसके पास इसकी जायज वजह भी हैं। असहज तरीके से विस्तार कर चुके एनबीएफसी क्षेत्र की साफ-सफाई आवश्यक है। इसे प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। कई लोग मानते हैं कि यह संकट व्यवस्थित नहीं है और केवल कुछ ही एनबीएफसी ने अचल संपत्ति क्षेत्र को यूं गड़बड़ी करके ऋण दिया है और केवल उनकी ही हालत खराब है। कुछ अर्थशास्त्रियों का सुझाव है कि एनबीएफसी की हालत के बारे में सूचनाओं का अभाव है और शायद परिसंपत्ति गुणवत्ता समीक्षा से भी इनकी हालत सुधर सकती है। बैंकों के साथ ऐसा किया जा चुका है। बहुत संभव है कि ऐसा करने से अच्छी एनबीएफसी में निवेशकों का यकीन बहाल हो जाए और खराब एनबीएफसी को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए। इसके अलावा आरबीआई को एक व्यापक कार्य योजना पेश करनी चाहिए। आरबीआई के लिए जरूरी यह है कि वह ऐसा तरीका खोजे जो इस क्षेत्र की सेहत दुरुस्त करने के अलावा बड़ी एनबीएफसी के नियमन में भी कड़ाई ला सके।
