सेहत में केरल अव्वल, उप्र फिसड्डी | संजीव मुखर्जी / June 25, 2019 | | | | |
नीति आयोग द्वारा जारी स्वास्थ्य सूचकांक में उत्तर प्रदेश ने लगातार दूसरी बार सबसे खराब प्रदर्शन किया है जबकि केरल लगातार दूसरी बार शीर्ष पर काबिज रहा। आयोग ने पहली बार साल 2017 में सूचकांक को जारी किया था जिसमें केरल पहले और उत्तर प्रदेश आखिरी स्थान पर रहा था।
इस सूचकांक की अहमियत इसलिए बढ़ जाती है क्योंकि स्वास्थ्य मंत्रालय ने राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन (एनएचएम) के लिए जारी की जाने वाली राशि का एक हिस्सा इस सूचकांक में राज्यों के प्रदर्शन से जोडऩे का निर्णय लिया है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन सील 2005 से चला आ रहा एक फ्लैगशिप कार्यक्रम है जिसके लिए अंतरिम बजट 2019-20 में 31,745 करोड़ रुपये का आवंटन किया गया था। यह राशि साल 2018-19 के संशोधित अनुमान से 3 प्रतिशत अधिक है। रिपोर्ट बताती है कि बदहाल प्रथामिक स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते इन्सेफेलाइटिस वायरस से कई बच्चों की मौत होने वाले राज्य बिहार की रैंकिंग में स्थिति इस बार भी नहीं बदली और रैंकिंग में नीचे से दूसरा स्थान मिला है।
साल 2017 में बिहार को नीचे से तीसरा स्थान मिला था जबकि इस बार जारी रैंकिंग में वह एक पायदान और नीचे खिसक गया और अब इससे नीचे सिर्फ उत्तर प्रदेश राज्य है। रिपोर्ट कहती है, 'बिहार के लिए आधार वर्ष और संदर्भ वर्ष के अंतर्गत प्रजनन दर में कमी, जन्म के समय कम वजन, लिंगानुपात में कमी, टीबी बीमारी के ईलाज की सफलता दर, सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं की बदहाल स्थिति और राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन के तहत वित्त ट्रांसफर में देरी इस गिरावट के मुख्य कारण रहे हैं।'
वहीं, उत्तर प्रदेश के मामले में जन्म के समय कम वजन, टीबी के ईलाज की सफलता दर और जन्म के समय पंजीकरण का स्तर रैंकिंग में गिरावट के मुख्य कारण रहे। रिपोर्ट में यह भी बताया गया कि तमिलनाडु साल 2017 के तीसरे स्थान से फिसलकर साल 2018 में 9वें स्थान पर आ गया जबकि पंजाब दूसरे स्थान से गिरकर पांचवे स्थान पर रहा। रिपोर्ट में कहा गया, 'विभिन्न स्वास्थ्य सूचकांक पर खराब प्रदर्शन से पंजाब और तमिलनाडु की रैंकिंग में गिरावट आई है।' बड़े राज्यों में हरियाणा, राजस्थान और झारखंड इन्क्रीमेंटल परफॉर्मेंस (प्रदर्शन सुधारने की दर) के आधार पर शीर्ष 3 राज्यों की सूची में रहे। साल 2017 के स्वास्थ्य सूचकांक में आधार वर्ष 2014-15 और संदर्भ वर्ष 2015-16 था जबकि 2018 की रिपोर्ट के लिए आधार वर्ष 2015-16 और संदर्भ वर्ष 2017-18 रहा।
इस रिपोर्ट के लिए 23 संकेतकों के आधार पर सभी राज्यों के प्रर्दशन को मापा गया है जिसमें स्वास्थ्य योजना परिणाम (नवजात मृत्यु दर, प्रजनन दर, जन्म के समय स्त्री-पुरूष अनुपात आदि), संचालन व्यवस्था और सूचना (अधिकारियों की नियुक्ति अवधि आदि) तथा प्रमुख इनपुट प्रक्रियाओं (नर्सों के खाली पड़े पद, जन्म पंजीकरण का स्तर आदि) को शामिल किया गया है।
रिपोर्ट के अनुसार संदर्भ वर्ष 2015-16 की तुलना में 2017-18 में स्वास्थ्य क्षेत्र में बिहार का संपूर्ण प्रदर्शन सूचकांक 6.35 अंक गिरा है। इसी दौरान उत्तर प्रदेश के प्रदर्शन सूचकांक में 5.08 अंक, उत्तराखंड 5.02 अंक तथा ओडिशा के सूचकांक में 3.46 अंक की गिरावट आई है। रिपोर्ट में पिछली बार के मुकाबले सुधार और कुल मिलाकर बेहतर प्रदर्शन के आधार पर राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की रैंकिंग तीन श्रेणी में की गई है। पहली श्रेणी में 21 बड़े राज्यों, दूसरी श्रेणी में आठ छोटे राज्यों एवं तीसरी श्रेणी में केंद्र शासित प्रदेशों को रखा गया है।
सूचकांक में सुधार के पैमाने पर हरियाणा का प्रदर्शन सबसे अच्छा रहा है। उसके 2017-18 के सूचकांक में 6.55 अंक का सुधार आया है। इसके बाद क्रमश: राजस्थान (दूसरा), झारखंड (तीसरा) और आंध्र प्रदेश (चौथे) का स्थान रहा। वहीं छोटे राज्यों में त्रिपुरा पहले पायदान पर रहा। उसके बाद क्रमश: मणिपुर, मिजोरम और नागालैंड का स्थान रहा। इसमें सबसे पीछे अरुणाचल प्रदेश (आठवें), सिक्किम (सातवें) तथा गोवा (छठे) रहे। रिपोर्ट के अनुसार केंद्रशासित प्रदेशों में दादर एंड नागर हवेली (पहला स्थान) तथा चंडीगढ़ (दूसरा स्थान) में स्थिति पहले से बेहतर हुई है। सूची में लक्षद्वीप सबसे नीचे तथा दिल्ली पांचवें स्थान पर है।
संपूर्ण रैंकिंग में आठ छोटे राज्यों में मिजोरम पहले स्थान पर जबकि मणिपुर अैर मेघालय क्रमश: दूसरे और तीसरे स्थान पर है। वहीं नागालैंड आठवें, अरूणाचल प्रदेश सातवें और त्रिपुरा छठे स्थान पर है। इसी आधार पर सात केंद्र शासित प्रदेशों में चंडीगढ़ पहले स्थान पर जबकि दादर नागर हवेली दूसरे, लक्षद्वीप तीसरे स्थान पर हैं। वहीं दमन एंड दीव सबसे निचले पायदान पर है। अंडमान निकोबार छठे और दिल्ली पाचवें स्थान पर है।
रिपोर्ट जारी किए जाने के मौके पर नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कहा, 'यह एक बड़ा प्रयास है... जिसका मकसद राज्यों को महत्त्वपूर्ण संकेतकों के आधार पर स्वास्थ्य सेवाओं के क्षेत्र में सुधार के लिए आपस में प्रतिस्पर्धा के लिए प्रेरित करना है।' उन्होंने कहा, 'हम ऐसे राज्यों के साथ काम कर रहे हैं जो सूचकांक में पीछे हैं, उनमें सुधार के लिए वहां ज्यादा काम करेंगे।' आयोग के सदस्य डॉ. वी के पॉल ने कहा, 'स्वास्थ्य क्षेत्र में अभी काफी काम करने की जरूरत है... इसमें सुधार के लिए स्थिर प्रशासन, महत्वपूर्ण पदों को भरा जाना तथा स्वास्थ्य बजट बढ़ाने की जरूरत है।' उन्होंने कहा, 'केंद्र सरकार को सकल घरेलू उत्पाद का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य पर खर्च करना चाहिए। जबकि राज्यों को स्वास्थ्य पर राज्य जीडीपी का औसतन 4.7 प्रतिशत से बढ़ाकर 8 प्रतिशत खर्च करना चाहिए।'
|