एमएसएमई को मिले दोगुना ऋण | |
सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों पर गठित विशेषज्ञ समिति ने पेश की अपनी रिपोर्ट | सुब्रत पांडा और अनूप रॉय / मुंबई 06 25, 2019 | | | | |
► वेंचर कैपिटल और निजी इक्विटी फर्मों के लिए 10 हजार करोड़ रुपये का कोष
► एमएसएमई क्षेत्र के लिए होना चाहिए 20 लाख रुपये तक रेहन मुक्त ऋण
► कंपनियों को बाहरी संकट से बचाने के लिए 5 हजार करोड़ रुपये का कोष
► इस क्षेत्र को आगे बढ़ाने में सिडबी की होगी अहम भूमिका
► उधार लेने वालों के लिए ऋण सेवा प्रदाताओं की स्थापना
► एमएसएमई को बढ़ावा देने के लिए अधिक परिषदों के गठन की सिफ ारिश
► जटिल कानूनों के बजाय व्यापक एमएसएमई संहिता
बढ़ती महंगाई को देखते हुए सूक्ष्म, लघु एवं मझोले उद्यमों (एमएसएमई) पर गठित विशेषज्ञ समिति ने इस क्षेत्र के लिए गिरवी मुक्त ऋण दोगुना कर 20 लाख रुपये करने की सिफारिश की है। इसमें प्रधानमंत्री मुद्रा योजना (पीएमएमवाई) और स्वयं-सहायता समूह आधारित इकाइयां भी शामिल हैं। भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पूर्व अध्यक्ष यू के सिन्हा की अगुआई वाली इस समिति ने साथ ही बाहरी परिस्थितियों के कारण पैदा हुए संकट से इस क्षेत्र को बचाने के लिए 5,000 करोड़ रुपये का कोष बनाने का भी सुझाव दिया है।
समिति का साथ ही कहना है कि एमएसएमई को विभिन्न विभागों में पंजीकरण कराने की जरूरत नहीं होनी चाहिए और उन्हें केवल स्थायी खाता संख्या (पैन) देकर ही अपनी अधिकांश गतिविधियों को चलाने की अनुमति होनी चाहिए। एमएसएमई को अपना कौशल बढ़ाने में मदद करने वाले निजी क्षेत्र को करों में छूट या बॉन्ड के रूप में प्रोत्साहन दिया जाना चाहिए। इस खंड में निजी क्षेत्र का योगदान मामूली है लेकिन उनके पास शोध एवं विकास की जो सुविधाएं हैं, वे काफी अहम हैं। सरकार को खासकर उत्पाद विकास, प्रौद्योगिकी अपनाने और विपणन रणनीति में एमएसएमई क्षेत्र के कौशल को विकसित करने की जरूरत है।
समिति ने सुझाव दिया है कि सरकार को एमएसएमई क्षेत्र में निवेश करने वाली वेंचर कैपिटल और निजी इक्विटी फर्मों की मदद के लिए सिडबी द्वारा विकसित संशोधित शर्तों पर 10,000 करोड़ रुपये का एक फंड ऑफ फंड्स बनाना चाहिए। इससे सौदे की शर्तों और उत्पादन ढांचे में नवाचार को बढ़ावा मिलेगा।
खराब प्रदर्शन करने वाली एमएसएमई के खातों के पुनर्गठन के बारे में समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि किसी एमएसएमई के खाते को छह महीने के संतोषजनक प्रदर्शन के बाद स्टैंडर्ड में अपग्रेड किया जा सकता है। अभी इसमें एक साल का प्रावधान है। जिस एमएसएमई के खाते को स्टैंडर्ड में बदला जाना है, उसके पास छह महीने के स्थायी प्रदर्शन के अलावा कारोबार में अतिरिक्त इक्विटी होनी चाहिए या नकदी प्रवाह का नया स्रोत होना चाहिए।
भारतीय रिजर्व बैंक (आरबीआई) ने जनवरी में एमएसएमई खातों के पुनर्गठन के लिए एकमुश्त योजना की घोषणा की थी लेकिन मूल रूप से यह योजना उन खातों के लिए है जो अब भी मानक है। मौजूदा व्यवस्था के मुताबिक एनपीए बन चुके एमएसएमई खातों के लिए बैंकों को उस दिन 15 फीसदी प्रावधान करना होता है जिस दिन वे एनपीए बनते हैं। समिति का कहना है कि ऐसे खातों के लिए बैंकों को एक साल तक प्रावधान करने की जरूरत नहीं पड़ती है लेकिन बैंकर ऐसे खातों के पुनर्गठन से हिचकते हैं।
एमएसएमईडी कानून अपने उद्देश्य में सफल रहा है लेकिन अब वक्त आ गया है कि एमएसएमई क्षेत्र में बाजार में पहुंच बढ़ाने और कारोबार को आसान बनाने के उपायों पर जोर होना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इस कानून को व्यापक एमएसएमई संहिता में बदला जा सकता है और विभिन्न जटिल कानूनों को तिलांजलि दी जा सकती है। नए कानून में क्षेत्राधिकार आधारित और मनमानी निरीक्षण व्यवस्था के स्थान पर नीति आधारित और पारदर्शी निरीक्षण व्यवस्था लाई जा सकती है।'
समिति का कहना है कि इस कानून से एमएसएमई क्षेत्र की बड़ी चुनौतियों का समाधान होना चाहिए। इनमें बुनियादी ढांचे से जुड़ी बाधाएं, औपचारिक स्वरूप का अभाव, प्रौद्योगिकी अपनाना, क्षमता निर्माण, बैकवर्ड और फॉरवर्ड लिंकेज, क्रेडिट तक पहुंच का अभाव, पूंजी जोखिम और भुगतान में देरी की समस्या शामिल है। रिपोर्ट में कहा गया है कि इन समस्याओं के कारण एमएसएमई क्षेत्र के विकास के लिए अनुकूल कारोबारी माहौल नहीं मिल पा रहा है। समिति के अनुसार एमएसएमई क्षेत्र की क्षमताओं के पूर्ण इस्तेमाल और इसकी रफ्तार बनाए रखने के लिए उद्यमशीलता का माहौल तैयार करना खासा अहम है। अन्य सिफारिशों में समिति ने एमएसएमई को आ रही भुगतान में देरी की समस्या दूर करने के लिए एमएसएमईडी कानून में संशोधन की जरूरत बताई है।
समिति ने कहा कि इसके तहत सभी एमएसएमई को एक निश्चित रकम से ऊपर के सभी बिल अनिवार्य रूप से अपलोड करना चाहिए। समिति के अनुसार निगरानी करने वाली इकाई का भी गठन किया जाना चाहिए। रिपोर्ट में कहा गया है, 'इस प्रणाली से भुगतान नहीं करने वाले खरीदारों के नाम स्वत: ही दिख जाएंगे। इसके साथ ही खरीदारों पर भी एमएसई आपूर्तिकर्ताओं को रकम जारी करने का दबाव बढ़ेगा।' फाइनैंस इंडस्ट्री डिपार्टमेंट काउंसिल (एफआईडीसी) के चेयरमैन रमन अग्रवाल ने इसे एक एक अच्छी पहल बताया। उन्होंने कहा कि इससे एमएसएमई क्षेत्र को बड़े स्तर पर मदद देने के लिए एनबीएफसी को अनुमति मिल जाएगी।
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