इस साल सॉवरिन गोल्ड बॉन्डों (एसजीबी) की चार किस्तें जारी की जानी हैं। पहली किस्त जून में खुल चुकी है और इन्हें निर्गत भी कर दिया गया है। दूसरी किस्त जुलाई में,तीसरी अगस्त में और चौथी किस्त सितंबर में जारी की जाएगी। वैश्विक अर्थव्यवस्था की धीमी वृद्घि रफ्तार और अमेरिका तथा साथी देशों के बीच व्यापार जंग से फिलहाल समस्या दूर होने के संकेत नहीं दिख रहे हैं। ऐसे में वित्तीय सलाहकार अपने ग्राहकों को पारंपरिक रूप से सुरक्षित माने जाने वाले सोने में निवेश की सलाह दे रहे हैं।
पिछले कुछ दिनों में सोने की कीमतों में मजबूती आई है। यह मजबूती दरों में कटौती के फेडरल रिजर्व के संकेत और अमेरिका के साथी देशों के संग व्यापार टकराव की वजह से आई है। चीन के साथ उसका व्यापार तनाव लगातार बना हुआ है और दोनों में से कोई भी पीछे हटने को राजी नहीं है। अमेरिका और चीन, दोनों ही जवाबी शुल्क लगा चुके हैं और धमकियां दे रही हैं। क्वांटम म्युचुअल फंड में अल्टरनेटिव इन्वेस्टमेंट्स के वरिष्ठï फंड प्रबंधक चिराग मेहता कहते हैं, 'मैक्सिको के साथ जारी आव्र्रजन टकराव के दौरान अमेरिका शुल्कों का हथियार के तौर पर इस्तेमाल करने की धमकी दे चुका है। इससे भी हालात जटिल हुए हैं।'
वैश्विक आर्थिक मंदी ने भी सोने के पक्ष में काम किया है। अमेरिकी फेडरल रिजर्व ने आगे चलकर ब्याज दरों में कटौती के संकेत दिए हैं। कम ब्याज दरें सोने के लिए बेहतर मानी जाती हैं। यही कारण है कि फेड की बैठक के बाद सोने में चमक आई। अमेरिका के अलावा अन्य देशों को भी आर्थिक मोर्चे पर चुनौतीपूर्ण हालात का सामना करना पड़ रहा है। वल्र्ड गोल्ड काउंसिल के भारत में प्रबंध निदेशक सोमासुंदरम पीआर कहते हैं, 'कई सॉवरिन बॉन्डों पर प्रतिफल इस समय करीब करीब शून्य है। यूरोप को मंदी का सामना करना पड़ रहा है। ब्रेक्जिट मुद्दा भी चमक उतार सकता है। इस तरह का तनाव वाला माहौल सभी मुद्राओं को प्रभावित कर सकता है और यही वजह है कि आपको अपने पोर्टफोलियो में विविधता के लिए सोने को भी रखना चाहिए।'
व्यापार टकराव शुरू होने के बाद से ही चीन अपने सुरक्षित मुद्रा भंडारों को विविध बनाने पर ध्यान दे रहा है। सेंक्टम वेल्थ मैनेजमेंट में प्रोडक्ट्स एंड सॉल्युशंस के प्रमुख प्रतीक पंत कहते हैं, 'शुरू में चीन अमेरिकी प्रतिभूतियों का सबसे बड़ा खरीदार था मगर अब वह इसके बजाय अपना स्वर्ण भंडार तैयार कर रहा है।'
हालांकि एक वजह ऐसी है जिससे सोना बहुत नहीं बढ़ा है। वह वजह है, अमेरिकी डॉलर की मजबूती। मेहता कहते हैं, 'डॉलर अमेरिकी अर्थव्यवस्था में तेजी की वजह से मजबूत नहीं हुआ है बल्कि दुनियाभर में सब जगह कमजोरी के कारण उसमें मजबूती है। यूरो क्षेत्र के देशों और जापान आदि को अपनी स्वयं की आर्थिक समस्याओं से जूझना पड़ रहा है।' कभी कभी ऐसा भी लगता है कि व्यापारिक टकराव समाप्त हो जाएगा। कार्वी स्टॉक ब्रोकिंग के उपाध्यक्ष (जिंस एवं मुद्रा) रमेश वरखेडकर कहते हैं, 'यदि जी-20 शिखर बैठक में व्यापार से जुड़ी समस्याओं का सकारात्मक परिणाम निकलता है तो सोने में तेजी थम सकती है।' फिर भी, जिन निवेशकों के पोर्टफोलियो में सोने के लिए 10-15 प्रतिशत आवंटन नहीं है, उनको अब इसकी तैयारी शुरू कर देनी चाहिए। वरखेडकर कहते हैं कि गिरावट पर सोने में खरीदारी की जानी चाहिए। गोल्ड बॉन्ड का सबसे बड़ा फायदा यह है कि उन पर 2.5 प्रतिशत सालाना ब्याज मिलता है।
अन्य योजनाओं में आपका प्रतिफल पूरी तरह सोने की कीमतों में बदलाव पर आधारित होता है। सोमसुंदरम कहते हैं, 'यदि ये बॉन्ड परिपक्वता तक रखे जाते हैं तो इन पर पूंजीगत लाभ कर नहीं लगता। हालांकि इन बॉन्ड में ज्यादा खरीद-फरोख्त नहीं होती। इनकी कुल अवधि आठ वर्ष है। लेकिन निवेशक पांच साल के बाद (ब्याज भुगतान की तारीख पर) इनसे निकल सकते हैं। वराखेडकर कहते हैं, 'हालांकि ये स्टॉक एक्सचेंजों पर सूचीबद्घ हैं, लेकिन इनमें कारोबार की मात्रा कम रहती है।' उन्हीं निवेशकों को इनमें निवेश करना चाहिए जो कम से कम पांच साल तक इनमें बने रहें। प्राथमिक निर्गमों में खरीदारी के अलावा दूसरा विकल्प यह भी है कि मौजूदा भाव के मुकाबले 3.79-9.17 प्रतिशत के डिस्काउंट पर सेकंडरी बाजार से इनकी खरीद की जाए।
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