रोमिता मजूमदार, अदिति दिवेकर और पीरजादा अबरार / June 23, 2019
अगर टाइटैनिक फिल्म वाली घटना साल 2019 में हुई होती तो फिल्म के हीरो जैक समेत सभी यात्री और उनका शानदार जहाज शायद बच जाता। आज के मौसम निगरानी सॉफ्टवेयर समुद्र में तैरते हिमखंड के बारे में काफी पहले ही जानकारी दे सकते हैं और कार्गो ट्रैकिंग प्लेटफॉर्म तथा दूसरे सॉफ्टवेयर जहाज से सामान पहुंचने में होने वाली देरी या ईंधन खपत के असामान्य पैटर्न की जानकारी दे देते हैं।
पिछले कुछ सालों में शिपिंग यानी नौवहन उद्योग में तकनीक के क्षेत्र में तेज बदलाव आया है। हालांकि अधिकांश नवोन्मेष यात्रियों को सहूलियत देने के क्षेत्र में ही किए गए हैं लेकिन अब समुद्री जहाज के लिए भी इस तरह की तकनीक विकसित की जा रही हैं। आज के समय पूरे विश्व की जहाज कंपनियां ना सिर्फ समुद्री जहाज बल्कि उसमें रखे सामान की भी ट्रैकिंग करती हैं। इनमें से बहुत से नवोन्मेष भारतीय तकनीकी स्टार्टअप कंपनियों द्वारा किए जा रहे हैं जो वैश्विक नौवहन कंपनियों को सहायता देने के लिए बिग डेटा, कृत्रिम मेधा (एआई), मशीन लर्निंग और इमेज प्रोसेसिंग तकनीकों का उपयोग करती हैं।
विश्व की सबसे बड़ी शिपिंग कंपनी एपी मोलर-मस्र्क करीब 30 लाख कंटेनरों का प्रबंधन करती है। पहले जब ये कंटेनर बंदरगाह पर पहुंचते थे तो इन्हें ट्रैक करने के लिए कोई प्रणाली मौजूद नहीं थी। बेंगलूरु की स्टार्टअप लिंक्डडॉट्स की मदद से मस्र्क अपने कंटेनर को किसी भी स्थान पर ट्रैक कर सकती है। इसके लिए ट्रक तथा जहाज में जीपीएस लगाए गए हैं और इसे ट्रक चालक के मोबाइल से भी ट्रैक कर सकते हैं।
डेनिश कंपनी मस्र्क एक अन्य भारतीय स्टार्टअप जास्टी के साथ भी काम कर रही है जिससे सिपिंग कंटेनर में होने वाले नुकसान का पता लगाया जा सके। चेन्नई की कंपनी जास्टी ने इमेज एनालिटिक्स और मशीन लर्निंग की सहायता से ऐसा प्लेटफॉर्म तैयार किया है जो क्षति का पता लगा सके और भविष्य में होने वाले नुकसान को रोक सके। उदाहरण के लिए, जब किसी क्षतिग्रस्त कंटेनर की फोटो जास्टी प्लेटफॉर्म पर अपलोड की जाती है तो यह बताता है कि क्या इसे ठीक करने की आवश्यकता है अथवा नहीं। साथ ही यह मंच संभावित लागत के बारे में भी जानकारी देता है। पारंपरिक तौर पर इस कार्य को एक-एक कंटेनर देखकर मानवीय श्रम-बल के साथ किया जाता था जिसमें काफी अधिक समय लगता था।
यह नवोन्मेष काफी कारगर साबित होगा क्योंकि वैश्विक नौवहन उद्योग कंटेनरों की मरम्मत पर सालाना करीब 3 लाख करोड़ डॉलर खर्च करता है। फिलहाल, जैस्ती मार्सक के साथ मिलकर एक प्रायोगिक परियोजना पर काम कर रही है जिसके तहत चेन्नई बंदरगाह पर रोजाना 200 कंटेनरों की निगरानी की जा रही है। पूरी तरह परिचालन में आने पर यह उपाय मरम्मत लागत को करीब 20 प्रतिशत कम कर देगा।
नौवहन उद्योग वैश्विक माल परिवहन प्रणाली का अहम हिस्सा है और विश्व कारोबार में 90 प्रतिशत की हिस्सेदारी रखता है। यह सामान ले जाने की सबसे सस्ती और कारगर प्रणाली है जिसके जरिये बड़े सामान को भी लंबी दूरी तक आसानी से ले जाया जा सकता है। रेटिंग एजेंसी केयर रेटिंग्स के अनुसार भारत का समुद्री उद्योग देश की जीडीपी में करीब 14 प्रतिशत का योगदान करता है।
केयर के अनुसार अधिक मांग के चलते इनके राजस्व में बढ़ोतरी हुई है। इसके अतिरिक्त, बिजनेस इंटेलीजेंस का उपयोग करते हुए सभी सेवाओं को जिंस आपूर्ति शृंखला तथा दूसरी मूल्य संवर्धित सेवाओं के साथ मिलाने से शिपिंग कारोबार में तेज प्रगति हो रही है।
मस्र्क दूरस्थ कंटेनर प्रबंधन प्रणाली (आरसीएम) का उपयोग कर रही है जिसमें ठंडे सामान की स्थिति का पता लगाने के लिए कोल्ड चेन तकनीक भी शामिल है। कंपनी के प्रबंध निदेशक (दक्षिण एशिया) स्टीव फेल्डर बताते हैं, 'कंपनी के सभी 2,70,000 प्रशीतित कंटेनरों पर जीपीएस, मोडम और सिम कार्ड लगा है जिससे उनकी स्थिति, जगह, तापमान, आद्र्रता और ऊर्जा की स्थिति की जानकारी लगातार अद्यतन की जाती है।' यह जानकारी ग्राहक और आरसीएम वैश्विक सहायता टीम को उपग्रहों के माध्यम से पहुंचती है। मार्सक आईटी कंपनी आईबीएम के साथ मिलकर डिजिटल आपूर्ति शृंखला के लिए ब्लॉकचेन समर्थित प्लेटफॉर्म, 'ट्रेडलेंस' विकसित करने पर भी काम कर रही है जिसके तहत बहुत से कारोबारी एक साझा मंच पर आ सकेंगे।
इसके अलावा भी कई दूसरे नए मंच देने के लिए तकनीक का धन्यवाद किया जा सकता है। अब शिपिंग कंपनियां मौसम का सटीक पूर्वानुमान लगा सकती हैं। आईबीएम की 'द वेदर कंपनी' इससे जुड़ा नवोन्मेष लेकर आई है। आईबीएम ग्लोबल हाई-रिजॉल्यूशन एटमॉस्फेरिक फोरकास्टिंग सिस्टम (जीआरएएफ) पहली व्यवसायिक मौसम प्रणाली होगी जो तूफान का भी अनुमान लगा सकती है। यह प्रत्येक एक घंटे पर अद्यतन होती है। यह प्रणाली इस साल के अंत तक कार्य करने लगेगी और अनुमान है कि इससे वैश्विक स्तर पर अनुमान लगाने के क्षेत्रफल में 200 प्रतिशत का सुधार (फिलहाल के 12 वर्ग किलोमीटर से घटकर 3 वर्ग किलोमीटर) होगा।
'द वेदर कंपनी' के बिजनेस लीडर हिमांशु गोयल कहते हैं, 'हम लॉजिस्टिक और शिपिंग, दोनों के लिए 0.5 वर्ग किलोमीटर तक के छोटे स्तर पर भी आंकड़े पता लगा सकते हैं जिससे बेहतर उपाय विकसित करने में मदद की जा सके।' को"िा स्थित डिजाइन और एनालिटिक्स कंपनी एक्सशिप अपने कई ग्राहकों के लिए शिपिंग डैशबोर्ड विकसित करने में 'द वेदर कंपनी' की एपीआई का उपयोग कर रही है। एक्सशिप में प्रमुख (वेस्सल परफॉर्मेंस रिसर्च) श्याम कृष्णा कहते हैं, 'शिपिंग लागत में करीब 60 प्रतिशत हिस्सेदारी तेल की होती है। इसलिए सामान की निगरानी और वास्तविक जानकारी काफी महत्त्वपूर्ण है।
मौसम की जानकारी इस प्रक्रिया का अहम हिस्सा है क्योंकि हवा की दिशा, गति, तापमान, समुद्री लहरों आदि से तेल खर्च प्रभावित होता है।' वह बताते हैं कि ये सभी आंकड़े प्रत्येक 5 मिनट पर अद्यतन होते हैं। शोध संस्था गार्टनर की सीआईओ सर्वे रिपोर्ट 2019 में बताया गया है कि भारत में कंपनियों के बीच बिजनेस इंटेलीजेंस और एनालिटिक्स दूसरी सबसे बड़ी प्राथमिकता बनकर उभरी हैं। गार्टनर में वरिष्ठ निदेशक एनालिटिक्स डीडी मिश्रा कहते हैं, 'नौवहन उद्योग में आज के समय बिजनेस इंटेलीजेंस और एनालिटिक्स की भरमार है। शिपिंग और लॉजिस्टिक उद्योग में सेंसर आधारित निगरानी प्रणाली और दूसरे डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग तेजी से बढ़ रहा है और उद्योग बेहतर दक्षता हासिल करने के लिए बिग डेटा, एनालिटिक्स, कॉग्निटिव ऑग्मेंटेशन तथा दूसरी डिजिटल तकनीकों का उपयोग कर रहा है।'
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