खपत वाले शेयरों से कम प्रतिफल मिलने की आशंका | बीएस बातचीत | | पुनीत वाधवा / June 23, 2019 | | | | |
इस समय बाजारों को इसका इंतजार है कि नई सरकार वृद्घि को रफ्तार देने के लिए बजट में क्या पहल करती है और किस तरह की नीतियां बनाती हैं। उनको वित्त वर्ष 2019-20 की पहली तिमाही के दौरान कंपनियों के आय रुझानों का भी इंतजार है। ओल्ड ब्रिज कैपिटल मैनेजमेंट के संस्थापक एवं मुख्य निवेश अधिकारी केनेथ एंड्राडे ने पुनीत वाधवा से बातचीत में बताया कि देश को अर्थव्यवस्था में सुधार से पहले वित्तीय समेकन की जरूरत है। पेश हैं उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश:
क्या बाजार समय समय पर होने वाली गिरावट के दौर से गुजर रहा है?
भारतीय बाजारों की सबसे बड़ी चिंता कंपनियों की आय में सुधार को लेकर है। हालांकि इसमें सुधार का फिलहाल कोई संकेत नहीं दिख रहा है। निवेश में सुस्ती और पिछले दो दशक से खपत चक्र में कमजोरी झेल रहे बैंकों और कुछ वित्तीय शेयरों को छोड़ दें तो शेष के लिहाज से बैलेंस शीट मजबूत है। आय वृद्घि के दो अंक में बहाल होने तक कुल बाजार पूंजीकरण सीमित बना रहेगा और किसी तरह की तेजी सीमित बनी रहेगी। वहीं तरलता के लिहाज से रुझान भारत के पक्ष में बना हुआ है। 'गिरावट पर खरीदारी' की रणनीति ने भारतीय बाजारों में हमेशा ही काम किया है।
क्या आप मान रहे हैं कि अगली कुछ तिमाहियों में आय को लेकर निराशा से बाजार में गिरावट आएगी?
आंकड़ों के लिहाज से मार्च 2019 की तिमाही कुछ हद तक निराशाजनक रही। कुल मिलाकर वृद्घि एक अंक के निचले स्तर पर रही। उपभोक्ता व्यवसाय का प्रमुख आंकड़ा कमजोर रहा है। एनबीएफसी क्षेत्र में मंदी के अलावा चुनाव ने भी वृद्घि की रफ्तार में नरमी का काम किया। सूचकांक में शामिल अन्य दिग्गजों के वित्तीय परिणाम मिले-जुले रहे हैं। जहां आंकड़े कई मामलों में उम्मीद से कमजोर रहे, वहीं घरेलू अर्थव्यवस्था में दबाव अब पीछे छूट चुका है।
क्या बाजार में तेजी से जोखिम जुड़ा हुआ है?
वैश्विक अर्थव्यवस्था में मंदी के कई कारण हैं। हरेक देश व्यापार के लिए अवरोध खड़े कर रहा है जिससे वृद्घि के लिए अवसरों में कमी आई है। चुनाव के बाद इक्विटी बाजारों के लिए यह प्रमुख जोखिम बना हुआ है।
लार्ज-कैप में ताजा तेजी सिर्फ कुछ खास शेयरों की वजह से आई। क्या यह चिंता का कारण है?
शेयर बाजार में धु्रवीकरण नई घटना नहीं है। हालांकि यह हमेशा बरकरार नहीं रह सकती। शेयरों ने अर्थव्यवस्था में किसी सुधार के अभाव में लगातार अच्छा प्रदर्शन किया है। मूल्यांकन बढ़ा है। अधिक मूल्यांकन में गिरावट का जोखिम रहता है। यह इन शेयरों के लिए प्रतिकूल स्थिति होगी। इसके अलावा मिड-और स्मॉल-कैप कंपनियों में वृद्घि के अभाव से भी निवेशकों में चिंता बनी हुई है। इस सेगमेंट के लिए भी आय में सुधार जरूरी होगा। मिड-कैप और स्मॉल-कैप सूचकांकों में गिरावट आई है। हालांकि 2017 के मुकाबले मूल्यांकन फिलहाल अच्छा दिख रहा है।
आप सरकार से किन उपायों की उम्मीद कर रहे हैं?
हरेक चुनाव में सरकारें बढ़-चढ़कर खर्च करती हैं। 2019 भी इससे अलग नहीं रहा। हमें अर्थव्यवस्था में सुधार से पहले राजकोषीय समेकन की जरूरत है। अगले चरण के खर्च पर अमल करने से पहले खासकर कॉरपोरेट के साथ बकाया को लेकर स्थिति स्पष्टï करने की जरूरत है। हालांकि अल्पावधि में सरकार अपने कार्यकाल के अगले पांच साल के दौरान नीति क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार करेगी।
क्या खपत-आधारित निवेश थीम अभी भी भरोसेमंद है?
खपत भारत में एक दीर्घावधि रुझान है। यदि आप इस रुझान का लाभ उठाते हैं तो वृद्घि की गति मजबूती होगी। यह एक ऐसा घटनाक्रम है जो इस पूरे दशक में बना रहा। हमारा मानना है कि अच्छी वृद्घि दर पीछे छूट चुकी है और इस सेगमेंट को समेकित बनाए जाने की जरूरत है।
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