कोस्टल शिपिंग से उर्वरक की ढुलाई पर भी मिलेगी सब्सिडी | मेघा मनचंदा / नई दिल्ली June 21, 2019 | | | | |
उर्वरक विभाग ने कोस्टल शिपिंग मार्ग से उर्वरकों की ढुलाई पर भी सब्सिडी की प्रतिपूर्ति की नीति को मंजूरी दे दी है। इसके पहले वित्तीय समर्थन सिर्फ रेल मार्ग से ढुलाई पर मिलता था। इस कदम से ढुलाई की लागत में करीब 40 प्रतिशत की कमी आएगी। नीति के मुताबिक, 'सिर्फ सब्सिडी वाले स्वदेशी उर्वरक यूरिया और फॉस्फेटिक और पोटैशियम (पीऐंडके) उर्वरक की कोस्टल शिपिंग/नदी के माध्यम से जलमार्ग से ढुलाई को माल ढुलाई सब्सिडी के योग्य माना जाएगा।' उर्वरक की एक ही मोड या मल्टी मोडल ढुलाई, जिसमें कोस्टल शिपिंग भी शामिल है, पर माल ढुलाई सब्सिडी रेलवे को मिलने वाले शुल्क या वास्तविक शुल्क (जो भी कम हो) के बराबर मिलेगी।
उर्वरक की ढुलाई के लिए कोस्टल शिपिंग और इनलैंड वाटरवेज को शामिल करने और इसे सब्सिडी से जोडऩे का प्रस्ताव जहाजरानी मंत्रालय द्वारा पिछले साल पेश किया गया था। विशेषज्ञों का मानना है कि इस कदम से परिवहन लागत और ढुलाई का समय घटाने में उल्लेखनीय मदद मिलेगी और यह पर्यावरण के अनुकूल भी होगा। उद्योग के आंकड़ों के मुताबिक 3.1 करोड़ टन यूरिया और 2.5 करोड़ टन अन्य उर्वरकों (फॉस्फेटिक और पोटैशियम) की ढुलाई देश के विभिन्न इलाकों में भेजने के लिए होती है। जहाजरानी मंत्रालय का अनुमान है कि 2025 तक तटीय व नदी मार्ग से ढुलाई बढ़कर 90 से 100 लाख टन हो जाएगी, जिससे सालाना ढुलाई के लागत में 900 से 1,000 करोड़ रुपये की कमी आएगी।
इस फैसले से तटीय जहाजों से उर्वरकों की ढुलाई को प्रोत्साहन मिलेगा, जो मंत्रालय की सागरमाला परियोजना के तहत आता है। इस समय भारत 2.8 करोड़ टन तैयार उर्वरक और कच्चे माल का आयात आंध्र प्रदेश, गुजरात और ओडिशा में करता है, जो बड़े क्लस्टर हैं। भारत में जहाज से होने वाली कुल ढुलाई में मिट्टी के पोषकों की मात्रा करीब 2 प्रतिशत है। भारत में तटीय ढुलाई और नदी के माध्यम से ढुलाई की हिस्सेदारी 7 प्रतिशत है, जो चीन जैसे उभरते देशों में 10 से 20 प्रतिशत के करीब है। भारतीय उर्वरक निगम के देश भर के विभिन्न इलाकों में संयंत्र हैं, जिन्हें तटीय ढुलाई का सबसे ज्यादा लाभ मिलने की संभावना है।
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