इंदिरा गांधी से कैसे अलग होगा निर्मला सीतारमण का बजट? | दिल्ली डायरी | | ए के भट्टाचार्य / June 20, 2019 | | | | |
लगभग आधी शताब्दी पहले भारतीय संसद में पहली बार किसी महिला ने आम बजट पेश किया था। वह इंदिरा गांधी थीं जिन्होंने 28 फरवरी, 1970 को 1970-71 का बजट पेश किया था। वह उस समय प्रधानमंत्री थीं और उनके पास वित्त मंत्रालय का अतिरिक्त प्रभार था। भारी जनादेश के बाद सत्ता में लौटी मोदी सरकार का पहला बजट पेश करने की तैयारी कर रहीं वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण संभवत: इस अतीत से वाकिफ होंगी। वह यह जानने के लिए भी उत्सुक होंगी कि आधी शताब्दी पहले इंदिरा ने देश की आर्थिक चुनौतियों का समाधान कैसे किया था। हालांकि जिन परिस्थितियों में इंदिरा ने फरवरी 1970 में अपना एकमात्र बजट पेश किया था और जिन परिस्थितियों में सीतारमण 5 जुलाई को अपना पहला बजट पेश करेंगी, वे पूरी तरह अलग हैं।
इंदिरा ने अर्थव्यवस्था में तूफान लाने वाले नीतिगत उपायों के कुछ महीने बाद बजट पेश किया था। इन उपायों में बैंकों का राष्ट्रीयकरण और बड़े औद्योगिक घरानों के एकाधिकार तथा विस्तार को रोकने के लिए बनाया गया कानून शामिल था। यह आम चुनावों से पहले उनका अंतिम बजट था जो मार्च 1971 में होने थे। सीतारमण के साथ ऐसी कोई परिस्थिति नहीं है। उनका बजट नई सरकार की आर्थिक नीतियों की शुरुआत होगी। उनके बजट से पहले आर्थिक मोर्चे पर कोई बड़ा उपाय नहीं किया गया है। नोटबंदी और वस्तु एवं सेवा कर से अर्थव्यवस्था में व्यापक हलचल हुई लेकिन उन्हें दो से तीन साल हो चुके हैं।
साथ ही वे परिस्थितियां भी एकदम अलग हैं जिनमें इंदिरा और सीतारमण वित्त मंत्री बनीं। मोरारजी देसाई के जुलाई 1969 में बैंकों के राष्ट्रीयकरण से ऐन पहले वित्त मंत्री का पद छोड़ दिया था जिसे इंदिरा को संभालना पड़ा था। दूसरी ओर सीतारमण ने अरुण जेटली का स्थान लिया। जेटली ने खराब स्वास्थ्य के कारण यह जिम्मेदारी लेने में असमर्थता जताई थी। फिर भी सीतारमण को अपने पहले बजट में जिन समस्याओं का हल निकालना होगा वे उन समस्याओं से बहुत अलग नहीं हैं जिनका सामना इंदिरा को 1970 में अपने बजट को अंतिम रूप देते हुए करना पड़ा था। इंदिरा के बजट भाषण के अंतिम पैरे को देखिए। उन्होंने कहा, 'श्रीमान भाषण खत्म करने से पहले मैं कहना चाहती हूं कि इस सम्मानित सदन में अपना पहला बजट पेश करते हुए मैं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के विकास की मौजूदा चुनौतियों और बाधाओं से अच्छी तरह वाकिफ हो गई हूं। हमारे पास विकास के कई अवसर हैं और इस उद्देश्य के लिए संसाधनों को बढ़ाने का हरसंभव प्रयास किया जाना चाहिए। अगर विकास की जरूरत तात्कालिक है तो सामाजिक कल्याण के लिए कुछ उपाय करने भी जरूरी हैं। संसाधनों की किसी तत्काल आवश्यकता के बावजूद राजकोषीय प्रणाली को आय, खपत और धन में व्यापक समानता के लक्ष्यों को हासिल करने के लिए काम करना है। इसके साथ ही अर्थव्यवस्था के जिन क्षेत्रों में निजी पहल और निवेश की जरूरत है उन्हें भी अर्थव्यवस्था के व्यापक हित को देखते हुए ध्यान में रखा जाना चाहिए। मैं केवल उम्मीद कर सकती हूं कि जो प्रस्ताव मैंने अभी पेश किए हैं वे बहुत कम या बहुत अधिक प्रयास करने के विपरीत खतरों से दूर हैं।'
जब इंदिरा ने बजट पेश किया तो अर्थव्यवस्था को गति देने के उपाय, संसाधनों को बढ़ाना, सामाजिक कल्याण और निजी निवेश को बहाल करना उनकी प्राथमिकता थी। 2019-20 के बजट को अंतिम रूप देने में लगीं सीतारमण के दिमाग में भी ये बातें चल रही होंगी। लेकिन आज अर्थव्यवस्था की स्थिति 50 साल पहले की तुलना में बहुत जटिल है और वित्त मंत्री के नीतिगत विकल्प इंदिरा की तुलना में ज्यादा सीमित हैं। वह इन मुश्किल लक्ष्यों को कैसे हासिल करेंगी, इस सवाल का जवाब 5 जुलाई को मिल जाएगा।
उदाहरण के लिए कराधान के सवाल पर इंदिरा ने कर आधार बढ़ाने की जरूरत बताई थी। उन्होंने कहा, 'कर आधार बढ़ाने में हमें सबसे पहले यह सुनिश्चित करना होगा कि पहले से लगाए गए करों की चोरी न हो। मैंने कर प्रणाली की कुछ खामियों को दूर करने का प्रयास किया है और कुछ ऐसी रियायतों को खत्म कर दिया है जिनकी उपयोगिता खत्म हो गई है।' कर आधार बढ़ाना और कर प्रणाली की खामियों को दूर करना अधिकांश वित्त मंत्रियों की प्राथमिकता रही है और सीतारमण के भी इसी राह पर चलने की उम्मीद है।
लेकिन कर दरों के सवाल पर वह शायद ही इंदिरा का अनुसरण करेंगी। इंदिरा ने दो लाख रुपये से अधिक की आय पर अधिकतम कर दर बढ़ाकर 93.5 फीसदी की थी जिसमें दस फीसदी अधिभार भी शामिल था। 1973-74 में अधिकतम दर और बढ़कर 97.5 फीसदी पहुंच गई थी। लेकिन इसके बाद चीजें बदलनी शुरू हुईं। करीब 20 साल पहले भारत में व्यक्तिगत कर के लिए मध्यम कर दर प्रणाली की शुरुआत हुई और कर की तीन श्रेणियां 10 फीसदी, 20 फीसदी और 30 फीसदी बनाई गई। वर्ष 2017-18 से 10 फीसदी की श्रेणी को बढ़ाकर पांच फीसदी कर दिया गया।
पिछले कुछ वर्षों में सरकार ने कंपनियों के लिए भी कर की दरों में कमी की है। सालाना 250 करोड़ रुपये तक का कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए यह 25 फीसदी और उससे अधिक का कारोबार करने वाली कंपनियों के लिए 30 फीसदी रखी गई है। अब उम्मीद की जा रही है कि सभी कंपनियों को 25 फीसदी के दायरे में लाया जाएगा। इसलिए सीतारमण की चुनौती पूरी तरह अलग और ज्यादा कारगर व्यवस्था बनाना है। उनके लिए यह आसान नहीं होगा। अधिकांश वित्त मंत्री बजट भाषण के समय माहौल को हल्का फुल्का बनाने की कोशिश करते हैं। इंदिरा ने एक कर प्रस्ताव में संशोधन के बारे में कहा, 'जो स्वर्ग में एक साथ रहते हैं, उन्हें एक कर संग्रहकर्ता को अलग नहीं करना चाहिए। इसलिए आय और धन के कराधान के प्रयोजन के लिए पति, पत्नी और नाबालिग बच्चों की आय और धन को एक साथ जोड़ा जाना चाहिए।' क्या सीतारमण से अपने बजट भाषण के दौरान इस तरह के हास्यबोध की उम्मीद की जा सकती है?
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