शेल कंपनियों पर और शिकंजा | |
वीणा मणि / नई दिल्ली 06 19, 2019 | | | | |
► कंपनी मामलों का मंत्रालय एलएलपी कानून में कर रहा संशोधन की तैयारी
► बढ़ेंगी मुखौटा कंपनियों की मुश्किलें
► कंपनियों के एलएलपी के बदलने की रफ्तार हुई दोगुना
► नोटबंदी के बाद आई प्रक्रिया में तेजी
► हजारों कंपनियों ने खुद को एलएलपी में बदला
► कंपनियों की तुलना में आसान हैं एलएलपी के नियम
कंपनी मामलों का मंत्रालय कंपनियों को सीमित दायित्व साझेदारी (एलएलपी) में बदलने के नियमों को सख्त करने जा रहा है जिससे मुखौटा कंपनियों की मुश्किलें और बढ़ जाएंगी। इसके लिए मंत्रालय एलएलपी कानून में संशोधन की योजना बना रहा है। सूत्रों के मुताबिक मंत्रालय एक समिति गठित करने पर विचार कर रहा है जो इस कानून में जरूरी बदलाव के सुझाव देगी। मंत्रालय को आशंका है कि कंपनियों को एलएलपी में बदलने की प्रक्रिया हाल के वर्षों में तेज हुई है। ऐसा इसलिए है क्योंकि मुखौटा कंपनियों की तुलना में एलएलपी में सख्त नियम नहीं हैं। वर्ष 2016 में नोटबंदी की घोषणा के बाद से कंपनियों के एलएलपी में बदलने की रफ्तार दोगुनी होकर 6,000 पहुंच चुकी है।
मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कहा कि कंपनियां कानून का फायदा उठाकर एलएलपी में बदल रही हैं। उन्हें ऐसा करने से रोकने के लिए एलएलपी कानून में संशोधन किया जाएगा। उन्होंने कहा, जिस गति से कंपनियां एलएलपी में बदल रही हैं, वह असामान्य है। मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई के बाद एलएलपी में बदलने वाली कंपनियों की संख्या दोगुनी हो गई है। संभव है कि कानून को ताक पर रखने की कोशिश कर रहे हैं।' मंत्रालय साथ ही इस कानून को दुरुस्त करने की कोशिश कर रहा है ताकि केवल छोटी कंपनियां ही एलएलपी में बदली जाएं। एलएलपी कानून इसी उद्देश्य के लिए बनाया गया था। विशेषज्ञों का कहना है कि कंपनियों की तुलना में एलएलपी से जुड़े नियम ज्यादा सख्त नहीं हैं। एलएलपी को अपने निदेशकों के बारे में सरकार को जानकारी नहीं देनी होती है और सालाना रिटर्न भी दाखिल करना भी जरूरी नहीं होता है।
सरकारी अधिकारियों का कहना है कि मुखौटा कंपनियों के खिलाफ सरकार की शुरुआती कार्रवाई के बाद से हजारों कंपनियों ने खुद को एलएलपी में बदला है। अनुमान के मुताबिक मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू होने के बाद इसकी गति दोगुना हो गई है। एलएलपी कानून की अवधारणा पेश करने वाली समिति के सदस्य रहे पवन विजय ने कहा, 'शुरुआत में एलएलपी कानून का उद्देश्य असंगठित क्षेत्र की स्वामित्व वाली कंपनियों को संगठित क्षेत्र में लाना था। लेकिन कंपनियों के एलएलपी बनने पर कोई पाबंदी नहीं है। अब इस कानून को सख्ती से लागू करने का समय आ गया है।'
देश में एलएलपी को कानूनी वैधता देने के लिए संसद ने सीमित दायित्व भागीदारी कानून, 2008 बनाया था। एलएलपी एक ऐसी कारोबारी व्यवस्था है जिसमें हरेक साझेदार का दायित्व कानून द्वारा सीमित है। एलएलपी एक वैध इकाई है जिसका अस्तित्व उसके भागीदारों से स्वतंत्र होता है। उनके अधिकार और दायित्व का निर्धारण उनके बीच हुए समझौते की शर्तों के आधार पर होता है। सरकार ने नोटबंदी के बाद मुखौटा कंपनियों के खिलाफ कार्रवाई शुरू की थी। उस समय इनमें से कई कंपनियों में असामान्य रूप से पैसा आया था और बाहर गया था। पहले चरण में करीब 225,000 मुखौटा कंपनियों और 300,000 निदेशकों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी। दूसरी सूची में 225,000 ऐसी कंपनियां शामिल थीं जिनके तौर तरीके मुखौटा कंपनियों की तरह थे।
कंपनी रजिस्ट्रार में करीब 11 लाख कंपनियां पंजीकृत हैं जिनसें से करीब 500,000 ही पूरी तरह सक्रिय हैं। मुखौटा कंपनियों के अलावा गायब हुई कंपनियों पर भी मंत्रालय की नजर है। शेयर बाजारों में सूचीबद्घ होने के बावजूद करीब 400 कंपनियों का कोई अतापता नहीं है। मुखौटा कंपनियों की पहली सूची में कई ऐसी कंपनियां थीं जिनके पैन का पता नहीं चल पा रहा है। इनमें से कई कंपनियों के खिलाफ कर चोरी के मामले हैं।
|