'सुब्रमण्यन का विश्लेषण हतोत्साहित करने वाला, तकनीकी रूप से अनुचित' | बीएस संवाददाता / नई दिल्ली June 19, 2019 | | | | |
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) ने कड़े शब्दों में बिंदुवार जवाब देकर अरविंद सुब्रमण्यन के दावे को खारिज कर दिया है, जिसमें उन्होंने कहा था कि 2011-17 की अवधि के दौरान भारत की आर्थिक वृद्धि दर करीब 2.5 प्रतिशत बढ़ाकर दिखाई गई है। ईएसी ने बुधवार को प्रकाशित आधिकारिक नोट में कहा है कि पूर्व मुख्य आर्थिक सलाहकार (सीईए) ने 'अपनी सुविधा के मुताबिक'आंकड़े उठा लिए हैं, जिसमें उनके विश्लेषण में सांख्यिकीय रूप से तेजी नहीं है और उन्होंने जटिल अर्थमितीय कवायद में 'जल्दबाजी' दिखाई है, जिसमें सरकार के खुद के सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के प्रति उनका 'गहरा अविश्वास' नजर आता है।
नोट में कहा गया है, 'निजी एजेंसी सीएमआईई पर बहुत भरोसा और देश की सेवा करने वाले सरकारी संस्थान सीएसओ पर बहुत ज्यादा अविश्वास तटस्थ शैक्षणिक कार्य के हिसाब से अनुचित है।' सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडिया इकॉनमी (सीएमआईई) एक निजी बिनजेस इन्फॉर्मेशन कंपनी है, जो पूंजी, निवेश, श्रम बाजार और वित्तीय सेवा के आंकड़े पिछले 40 साल से दे रही है। ईएसी-पीएम ने लिखा है, 'यह स्पष्ट हैकि उन्होंने सीएमआईई पर भरोसा किया, लेकिन सीएसओ पर अविश्वास जताया। यह अविश्वास तरीके की वजहों से नहीं है। यह संस्थान के प्रति अविश्वास ज्यादा लगता है।' ईएसी के चेयरमैन विवेक देवराय इसके अंशकालिक सदस्य रथिन रॉय और अर्थशास्त्री सुरजीत भल्ला, चरण सिंह और अरविंद विरमानी ने यह नोट लिखा है।
सुब्रमण्यन ने 70 देशोंं में सबसे ज्यादा इस्तेमाल होने वाले 19 सूचकों का विश्लेषण कर निष्कर्ष निकाला था कि 2011 में इन सूचकों पर वृद्धि दर 2011 के पहले की तुलना मेंं कम थी और इससे असल जीडीपी वृद्धि का अनुमान लगता है। इस पर ईएसी ने कहा है, 'जीडीपी के आधिकारिक आंकड़ों की आलोचना निश्चित रूप से कवरेज या तरीके के आधार पर की जानी चाहिए, जो लेखक ने नहीं किया है।' विश्लेषण के लिए औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) के इस्तेमाल के बारे में ईएसी ने कहा है कि मात्रा आधारित सूचकांक में उत्पादन शामिल होता है और इसमें मूल्यवर्धन नहीं होता, जिसे जीडीपी के अनुमान में शामिल किया जाता है। सुब्रमण्यन ने पाया था कि विनिर्माण के लिए आईआईपी का 2011 के बाद के काल में जीडीपी से तालमेल नहीं है और कम आईआईपी से पता चलता है कि जीडीपी वृद्धि कम थी।
ईएसी ने कहा कि आईआईपी की गणना के तरीके में 2012 में बदलाव किया गया और इस पर पूर्व सीईए ने गौर नहीं किया। प्रधानमंत्री के आर्थिक सलाहकारों ने यह भी कहा कि 2011 के पहले की अवधि के दौरान तमामन उच्च तीब्रता के सूचकांक जैसे कर्ज में वृद्धि दर बैंकों द्वारा भारी मात्रा में कर्ज देने की वजह से थे और वास्तव में अर्थव्यवस्था उतनी तेजी से नहीं बढ़ी थी। दोनों अवधियों के बीच एक और अंतर का उल्लेख करते हुए ईएसी ने कहा कि घरेलू खपत और सार्वजनिक निवेश पिछले दशक में भारत की वृद्धि के प्रमुख कारक रहे हैं, इसके विपरीत निर्यात और निजी निवेश (व कर्ज) इसके पहले अहम रहे हैं। इसमें कहा गया है कि राष्ट्रीय आय पर भारत का अनुमान 2015 के बाद (2011-12 शृंखला) से सुधरा है, जब बेहतर आंकड़े उपलब्ध हुए। इस नोट में सवाल उठाया गया है, '2011 के पहले अगर सब कुछ सही था तो वैश्विक विशेषज्ञ भारत को जीडीपी की ज्यादा जोरदार गणना के तरीकों को अपनाने का सुझाव क्यों दे रहे थे।' सुब्रमण्यन ने अपने विश्लेषण में कर के आंकड़ों का इस्तेमाल नहीं किया है, जिसके बारे में ईएसी ने कहा है कि ऐसा लगता है कि 'अपनी सुविधा के मुताबिक तर्क तैयार किया गया है, जिससे तथ्यों के मुताबिक असुविधाजनक निष्कर्ष न निकले'।
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