अमेरिका-चीन वार्ता नाकाम हुई तो पड़ सकता है भारत पर असर | अनूप रॉय / June 16, 2019 | | | | |
भारत को गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) के मसलों का समाधान प्राथमिकता के आधार पर करना होगा। मार्गन स्टैनली में इकनॉमिक्स के वैश्विक प्रमुख और मुख्य अर्थशास्त्री चेतन अहया ने अनूप रॉय से बातचीत में कहा कि भारत की अर्थव्यवस्था बहुत नजदीकी से वैश्विक अर्थव्यवस्था के साथ जुड़ी हुई है और अगर अमेरिका-चीन के बीच कारोबारी रिश्ते खराब होते हैं तो भारतीय रिजर्व बैंक के लिए घरेलू मसलों और नकदी की समस्या का समाधान करना काफी मुश्किल होगा। प्रमुख अंश...
अमेरिका-चीन के कारोबारी तनाव का क्या असर होगा?
हम स्थिति को देखते हुए पहला अनुमान यह लगा रहे हैं कि दोनों देशों के बीच 29 जून तक कुछ समझौता हो जाएगा। दो तिमाहियों से वैश्विक वृद्धि 3.2 प्रतिशत के मौजूदा स्तर पर स्थिर है, लेकिन इसके बाद इसमें मामूली सुधार होगा। दूसरी स्थिति यह हो सकती है कि कोई समझौता न हो, लेकिन कोई दुराव न हो। इसका मतलब यह है कि अनिश्चितता की स्थिति अगले 3-4 महीने बनी रहेगी। तीसरी स्थिति यह है कि कोई समझौता न हो और अमेरिका 325 अरब डॉलर के चीन के सामान पर 25 प्रतिशत शुल्क लगा दे। ऐसे में अगली तीन तिमाही में मंदी की स्थिति आ सकती है।
क्या इससे भारत को फायदा होगा?
अगर तनाव के पहले की स्थिति देखें तो चीन में प्रतिव्यक्ति आय और वेतन में वृद्धि हो रही थी, जहां अन्य देशों की मूल्यवर्धित विनिर्माण में हिस्सेदारी थी। लेकिन आपने देखा होगा कि इससे भारत को नहीं बल्कि वियतनाम और बांग्लादेश को लाभ था। भारत की चुनौतियां अलग तरह की हैं। जब इस तरह के कारोबारी तनाव होते हैं तो कोई पूरी तरह से विजेता बनकर नहीं आता। जब तनाव का वैश्विक चक्र पर पड़ेगा तो पूरी एशियाई अर्थव्यवस्था प्रïभावित होगी, जिसमें भारत भी शामिल है।
क्या भारत को वास्तव में एनबीएफसी संकट से चिंतित होने की जरूरत है?
भारत की उतनी घरेलू निर्भरता नहीं है, जैसा कि हम भरोसा करते हैं। यह वैश्विक चक्र से बहुत ज्यादा जुड़ा है। भारत को इस मसले का भी समाधान करने की जरूरत है क्योंकि कारोबारी तनाव के अनपेक्षित परिणाम आ सकते हैं। अगर वृद्धि सुस्त होती है तो भारत से पूंजी प्रवाह बाहर की ओर हो सकता है, जिससे मुद्रा के अवमूल्यन का दबाव होगा। ऐसे में रिजर्व बैंक के लिए व्यवस्था में आक्रामक तरीके से नकदी डालना मुश्किल हो जाएगा। अगर वैश्विक वृद्धि का माहौल अनुकूल रहता है तो एनबीएफसी मसले का समाधान बेहतर तरीके से हो सकता है। लेकिन ऐसा नहीं भी हो सकता है।
इस मसले का समाधान क्या हो सकता है? एनबीएफसी को बेलआउट करना?
एनबीएफसी को बेलआउट करने के बजाय रियल एस्टेट सेक्टर को मदद करने से स्थिति सुधरेगी। एनबीएफसी की समस्या रियल एस्टेट से जुड़ी हुई है। हम ऐसी स्थिति में पहुंच गए हैं, जहां कर्ज देने वाले जोखिम में हैं और कर्ज अर्थव्यवस्था के चुनिंदा क्षेत्रों में जा रहा है। एनबीएफसी की स्थिति का पूरी व्यवस्था पर व्यापक प्रभाव पड़ रहा है। मैं यह नहीं कह रहा हूं कि कोई गंभीर व्यवस्थागत जोखिम है, लेकिन इससे रिकवरी पर असर पड़ रहा है। अगर व्यापक अर्थव्यवस्था में धन का प्रवाह कम होता है तो आपकी वृद्धि कमजोर पड़ेगी और उन कंपनियों के लिए स्थिति कठिन होगी।
इस समय सरकार की तात्कालिक प्राथमिकता क्या होनी चाहिए?
निवेश बहाल करना और एनबीएफसी के मसलों का समाधान उच्च प्राथमिकता पर होनी चाहिए। सरकार को निवेश बहाल करने की जरूरत की जानकारी है और इसके लिए समिति गठित की गई है। एनबीएफसी के मसले पर यह कहा जा सकता है कि वित्तीय व्यवस्था मानव शरीर के हृदय जैसी है। अगर यह सही काम नहीं करता है तो आप सही जगह नहीं पहुंच सकते। सरकारी बैंकों के पुनर्पूंजीकरण मसला भी है।
रिजर्व बैंक ने दरों में 3 बार कटौती की है, क्या आप और संभावना देख रहे हैं?
रिजर्व बैंक ने समावेशी कदम उठाया है, जो हमारे हिसाब से उचित है। पूंजीगत व्यय चक्र में बहुत कमजोरी है। आसान मौद्रिक नीति से वृद्धि की समस्या का समाधान हो सकता है। हमें लगता है कि दिसंबर तक रिजर्व बैंक द्वारा 50 आधार अंक की और कटौती करने की संभावना है।
भारत के आंकड़ों पर भी कुछ विवाद है?
यह मसला गणना के तरीके में बदलाव के बाद उठा है। इसका सरल समाधान यह है, जो भारत के बारे में फैसला करने के पहले अपने निवेशकों से कह रहे हैं, कि कॉर्पोरेट के राजस्व वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करें। यह सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का सही प्रतिरूप नहीं होता है, लेकिन यह निवेशकोंं से साफतौर पर जुड़ा होता है।
यह तो घट रहा है?
हां, रुझान सुस्त है। अगर आप कर पूर्व आय वृद्धि को देखें, तो इससे पता चलता है कि कॉर्पोरेट सेक्टर में चीजें कैसी चल रही हैं, तो पता चलता है कि यह भी हाल के वर्षों में सुस्त रहा है। लेकिन अब यह सुधर रहा है।
क्या इसका मतलब यह है कि इस समय सुस्त वृद्धि ढांचागत है?
मैं इसे गहन चक्रीय समस्या कहूंगा। ढांचागत का मतलब यह होगा कि भारत में कर्ज या कमजोर भौगोलिक स्थिति जैसी बड़ी समस्याओं से घिरा है। मुझे ऐसा नहीं लगता। ऐसे में भारत में समस्या चक्रीय है, न कि ढांचागत।
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