चंद्रयान 15 जुलाई को भरेगा उड़ान | टी ई नरसिम्हन और पीरजादा अबरार / June 12, 2019 | | | | |
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण के लिए 15 जुलाई की तारीख निर्धारित की है। 1,000 करोड़ रुपये से अधिक की लागत वाली इस परियोजना में करीब 620 उद्योग हिस्सेदारी ले रहे हैं। अगर यह मिशन सफल रहता है तो चंद्रमा पर पहुंचने वाला भारत विश्व का चौथा देश बन जाएगा। इस अभियान की रोचक बात यह है कि इसके मिशन निदेशकों में दो महिलाएं भी शामिल हैं। इसरो के अध्यक्ष के शिवन ने कहा कि चंद्रयान-2 को ले जाने वाला जीएसएलवी मार्क-3 15 जुलाई को सुबह 2:15 पर चेन्नई के निकट श्रीहरिकोटा स्थित इसरो के अंतरिक्ष केंद्र से प्रक्षेपित किया जाएगा।
अंतरिक्ष एजेंसी के पास चंद्रयान-2 प्रक्षेपण के लिए पूरे महीने का समय था लेकिन उन्होंने 15 जुलाई का ही दिन चुना। इसका कारण यह है कि उस दिन प्रक्षेपण के लिए दो मिनट का समय मिल रहा है जबकि शेष सभी दिन केवल एक मिनट का समय ही उपलब्ध था जो काफी कम समय है। शिवन ने कहा, 'हमने 6 या 7 सितंबर को चंद्रमा पर उतरने का लक्ष्य निर्धारित किया है और यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर उतरेगा।' चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर जाने वाला भारत पहला देश होगा और भारत ने दो मुख्य कारणों से यहां जाने का निर्णय लिया है, सुविधा और विज्ञान।
दरअसल, चंद्रमा के इस हिस्से पर अधिक सौर ऊर्जा उपलब्ध है और यहां अधिक दृश्यता मिलेगी। यहां भूमि समतल है जिससे चंद्रयान की लैंडिंग आसान होगी। जहां तक विज्ञान की बात है, इसरो का मानना है कि चंद्रमा के इस हिस्से में पानी और दूसरे खनिज होंगे। यह ध्यान देने योग्य है कि भारत के चंद्रयान-1 ने पहली बार चंद्रमा पर पानी की पहचान की थी। इस मिशन की मुख्य चुनौती आसान लैंडिंग और कठिन 15 मिनट हैं जिन्हें शिवन इस मिशन का 'सबसे खतरनाक' हिस्सा बताते हैं। इन 15 मिनट में रोवर अपने ऑर्बिट से निकलकर चंद्रमा की सतह पर उतरेगा।
अंतरिक्ष यान में तीन मॉड्यूल हैं, ऑर्बिटर, लैंडर (विक्रम) और रोवर (प्रज्ञान)। शिवन ने बताया कि ऑर्बिटर में आठ पेलोड, तीन लैंडर और दो रोवर होंगे। लैंडर का जीवन काल एक सौर दिन (पृथ्वी पर 14 दिन) होगा तो वहीं ऑर्बिटर का जीवन काल एक साल का होगा और इस अवधि में वह चंद्रमा की परिक्रमा करता रहेगा। लागत के बारे में बताते हुए शिवन ने कहा कि 1,075 करोड़ रुपये में से करीब 603 करोड़ रुपये उपग्रह निर्माण पर खर्च होंगे और शेष 375 करोड़ रुपये जीएसएसवी मार्क-3 रॉकेट पर खर्च होंगे। उपग्रह में करीब 60 प्रतिशत लागत उद्योग से है तो वहीं रॉकेट के मामले में यह 85 प्रतिशत है। अन्य रोचक बात यह है कि शत-प्रतिशत स्वदेशी अभियान में मिशन और परियोजना निदेशक महिलाएं हैं। शिवन बताते हैं कि इस अभियान में लगी पूरी टीम में करीब 30 प्रतिशत महिलाएं हैं।
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