गुजरात : सूखे की चपेट में कुम्हलाया पशुपालन का धंधा | विनय उमरजी / June 05, 2019 | | | | |
उत्तरी गुजरात में बनासकांठा जिले के गंगुदरा गांव में बलवंत सिंह सोलंकी के खेत के बाहर पशुओं को खिलाने के लिए अरंडी की भूसी का ढेर लगा है। पशुओं के लिए भूसी का ऐसा ढेर बहुत अजीब है क्योंकि आम तौर पर मवेशियों को हरा चारा खिलाया जाता है ताकि वे ज्यादा दूध दें। मगर पानी की जबरदस्त किल्लत और सिंचाई के अभाव के कारण हरा चारा मिल नहीं रहा है, जिसके कारण मजबूरन सोलंकी अपनी 10 गायों और 4 भैंसों को अरंडी की सूखी भूसी ही खिला रहे हैं। इसका असर भी दिख रहा है क्योंकि साल भर पहले सोलंकी को रोजाना 120 लीटर दूध देने वाले ये मवेशी अब बमुश्किल 50 लीटर दूध दे रहे हैं।
सोलंकी के लिए यह ज्यादा बड़ी मुश्किल है क्योंकि राज्य के दूसरे हिस्सों के उलट उत्तरी गुजरात में सोलंकी जैसे किसान खेती के मुकाबले पशुपालन पर ज्यादा निर्भर हैं। यही वजह है कि बनासकांठा जिले में बनास डेरी है, जो गुजरात सहकारी दुग्ध विपणन महासंघ (जीसीएमएमएफ) के तहत आने वाली सबसे बड़ी सहकारी डेरी संस्थाओं में शुमार की जाती है।
हर ओर सूखा
सितंबर, 2018 तक गुजरात में बारिश में 22 फीसदी कमी दर्ज की गई थी, जिसके कारण भूजल का स्तर ही कम नहीं हुआ बल्कि बांधों और जलाशयों में जमा पानी की मात्रा भी कम हो गई। नतीजतन बरसाती और सर्द मौसम की फसलों में उत्पादन भी गिर गया। भारतीय मौसम विभाग (आईएमडी) ने इस साल भी मॉनसून की दस्तक देर से होने की बात कही है और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) गांधीनगर के शिक्षक विमल मिश्रा की एक प्रणाली भी चिंता बढ़ा रही है। सूखे की चेतावनी पहले ही दे देने वाली इस प्रणाली ने कई राज्यों में भीषण सूखा पडऩे का अनुमान जताया है, जिनमें गुजरात का उत्तरी और दक्षिणी हिस्सा भी शामिल है।
गुजरात में कुल 125 लाख हेक्टेयर जमीन पर खेती की जाती है, इसमें से 60 लाख हेक्टेयर खेत बारिश पर निर्भर है और 20 लाख हेक्टेयर की सिंचाई भूजल से होती है। भूजल से सिंचाई वाले ज्यादातर खेत उत्तरी गुजरात में ही हैं। पिछले डेढ़ वर्ष में कम बारिश होने से न केवल भूजल का स्तर नीचे गया है बल्कि बांधों में जमा पानी की मात्रा भी घट गई है। सोलंकी कहते हैं, '2017 तक मैं रोजाना आठ घंटे तक तीन बोरवेल से पानी निकाला करता था और पानी केवल 70 फुट की गहराई पर मिल जाता था। आज मैं केवल एक बोरवेल चला पाता हूं और वह भी आधे घंटे से ज्यादा नहीं चल पाता। पानी भी 133 फुट पर मिलता है। कुछ देर बाद ही उसमें से कंकड़, पत्थर बाहर आने लगते हैं।' सोलंकी दुखी मन से अपना 16 एकड़ का खेत दिखाते हैं, जहां मुश्किल से 1-2 एकड़ हिस्से में घास उगी है। वह कहते हैं, 'मैं किसी तरह यह घास उगा पाया हूं ताकि पशुओं के चारे के लिए अरंडी की भूसी कम खरीदनी पड़े।'
यहां से करीब 40 किलोमीटर दूर बनासकांठा जिले के ही सोटवाड़ा गांव में मूंगफली और आलू उगाने वाले किसान जेठभाई पटेल ने बताया कि मॉनसूनी फसल की पैदावार में 50 फीसदी, रबी की पैदावार में 30 फीसदी और खरीफ की पैदावार में 10 फीसदी की कमी आई है। पटेल का गांव पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर है। कुछ वर्ष पहले उन्होंने जमीन से पानी खींचने के लिए 500 फुट पर बोरिंग कराई और 15 हॉर्स पावर का मोटर पंप लगाया था लेकिन अब उन्हें 1,200 फुट से भी नीचे जाकर 50 हॉर्स पावर का मोटर पंप लगाना पड़ा है। विडंबना है कि ये दोनों ही गांव एक नहीं बल्कि राज्य के दो बड़े बांधों दांतीवाड़ा और सिपु से घिरे हैं। इस साल 10 मई की रिपोर्ट के मुताबिक गुजरात के कुल चार में से इन दो बांधों में क्षमता के मुकाबले 10 फीसदी से भी कम पानी बचा है।
सूख रहे जलाशय
गुजरात सरकार के नर्मदा, जल संसाधन, जलापूर्ति एवं कल्पसर विभाग के मुताबिक दांतीवाड़ा में करीब 39.8 करोड़ घन मीटर पानी के भंडारण की क्षमता है, लेकिन वहां केवल 7.27 फीसदी यानी 2.9 करोड़ घन मीटर पानी ही बचा है। सिपु बांध में 16.1 करोड़ घन मीटर की कुल क्षमता का केवल 8.36 फीसदी यानी 1.4 करोड़ घन मीटर पानी बचा है। हालांकि दांतीवाड़ा और सिपु बांध में पानी के भंडारण स्तर से सोलंकी और पटेल को कोई लेनादेना नहीं है। सोलंकी कहते हैं, 'इस क्षेत्र में हमारे जैसे बहुत सारे गांव इन बांधों से जुड़े नहीं है क्योंकि पानी की आपूर्ति करने के लिए छोटी नहरें नहीं बनाई गई हैं। इसकी वजह से हमें पूरी तरह से भूजल पर ही निर्भर रहना पड़ता है जिसका स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हालांकि फिलहाल पीने का पानी कोई बड़ा मुद्दा नहीं है।' सोलंकी इशारा करते हैं कि पास का थराड तालुका जरूर एक बांध से जुड़ा है। वह एक विधानसभा सीट भी है जहां से भाजपा के पर्वतभाई पटेल विधायक हैं।
दूसरी ओर गुजरात सरकार में जल संसाधन मंत्री कुंवरजी बावलिया कहते हैं कि जहां भी जरूरत है, वहां सरकार सक्रिय होकर टैंकर की सुविधा मुहैया करा रही है। लिहाजा भूजल पर निर्भर क्षेत्रों में मंडरा रहे सूखे के संकट को लेकर बहुत अधिक चिंता की बात नहीं है। बावलिया कहते हैं, 'सभी जिलों को टैंकर सेवाओं के दायरे में विस्तार करने के लिए स्थायी निर्देश दिया गया है। जहां भूजल उपलब्ध है, वहां सरकार की ओर से बोरवेल की सुविधा स्थापित की जा रही है। मौजूदा योजनाएं 2011 की जनगणना पर आधारित हैं, इसलिए कुछ गांवों में मांग और उपयोग में बढ़ोतरी हो सकती है। लेकिन जहां कहीं भी जरूरत होगी टैंकर की सुविधा दी जा रही है। पूरे राज्य में विशेष तौर पर उत्तरी गुजरात में फिलहाल 5,000 लीटर से लेकर 10,000 लीटर तक के 460 टैंकर सेवा दे रहे हैं।'
उधर विशेषज्ञ मानते हैं कि सौराष्ट्र जो अब भी बारिश पर ही निर्भर है और जहां कुछ हद तक सिंचित क्षेत्र है के उलट उत्तरी गुजरात में केवल आगामी मॉनसून से ही राहत मिल सकती है। सरदारकुशीनगर दांतीवाड़ा कृषि विश्वविद्यालय में कॉलेज ऑफ रीन्यूएबल एनर्जी ऐंड एन्वायरन्मेंटल इंजीनियरिंग कॉलेज के डीन बी एस देवड़ा कहते हैं, 'राज्य के सभी हिस्सों की तुलना में उत्तरी गुजरात सबसे अधिक भूजल पर निर्भर है। ऐसे में गिरते भूजल स्तर से लोगों के जनजीवन पर बहुत अधिक असर पड़ रहा है। इसका फसल और मवेशियों पर भी उतना ही अधिक प्रभाव पड़ रहा है। पानी की किल्लत से किसान मवेशियों को पालने में असमर्थ हो रहे हैं और वे इन्हें दूसरे गांवों के हाथों बेचने पर मजबूर हैं। इस साल केवल अच्छी मॉनसून रहने पर ही गिरते भूजल का कोई उपचार हो सकता है।'
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