धरती सूखी किस्मत रूठी | सिद्घार्थ कलहंस / June 05, 2019 | | | | |
उत्तर प्रदेश में आम तौर पर मॉनसून की पहली बौछार जून के दूसरे पखवाड़े में पड़ती है, लेकिन इस बार मई के आखिरी हफ्ते से ही सूबे के तमाम हिस्से पानी की किल्लत से त्राहि-त्राहि कर रहे हैं। पूर्व हो या पश्चिम, पानी की कमी से जूझते लोगों का आक्रोश सड़कों पर नजर आने लगा है। गर्मी की तपिश का सबसे ज्यादा शिकार होने वाला बुंदेलखंड का इलाका इस बार फिर भीषण जल संकट का शिकार हो गया है। लेकिन चिंता की खबर राजधानी लखनऊ से आ रही है, जहां भूजल स्तर खतरनाक तरीके से नीचे जा चुका है। पिछले दो साल में ही यहां भूजल स्तर में 18 फुट की गिरावट दर्ज की गई है। हैरत की बात है कि प्रयागराज, वाराणसी और कानपुर जैसे नदियों से घिरे शहरों के बाशिंदों को भी ढंग से पानी मयस्सर नहीं हो रहा है।
खेत भी रीते गला भी सूखा
पानी की कमी के कारण राज्य के कई हिस्सों में नहरें सूख गई हैं। प्रदेश की मेंथा पट्टी कहलाने वाले बाराबंकी, बहराइच, सीतापुर जैसे जिलों में तो पानी का संकट समझ आता है, लेकिन बरेली जैसे तराई के इलाके में भी किसानों के लिए फसल बचाना मुश्किल हो रहा है। मक्के की अगैती किस्म की फसल कई जिलों में खेत में खड़े-खड़े ही सूखने लगी है। मॉनसून की आमद में 5 से 7 दिन की देर होने का मौसम विभाग का अनुमान भी किसानों की पेशानी पर गहरे बल डाल रहा है। उन्हें लग रहा है कि तब तक फसल बचाए रखना बहुत मुश्किल होगा।
खेतों को सींचना इसलिए भी मुश्किल हो रहा है क्योंकि गांवों में 24 घंटे बिजली देने का वायदा करने वाली प्रदेश सरकार ने 6 से 8 घंटे की कटौती शुरू कर दी है। कटौती के कारण नलकूप ठीक से नहीं चल पा रहे हैं और खेतों की नालियां रीती पड़ी हैं। बुंदेलखंड यूं तो पांच नदियों का इलाका कहलाता है, लेकिन ज्यादातर जगहों पर पानी कम होने के कारण नदियों की धार टूट रही है। पूर्वी इलाकें को सरसब्ज करने वाली गंगा, यमुना, राप्ती, सरयू, कुआनो, शारदा और गंडक नदियों में पानी बहुत कम रह गया है।
किसानों में बहुत मायूसी पसरी है। उनका कहना है कि पानी की कमी के कारण नलकूप, पंपसेट और नहरों से सिंचाई करना सबके वश की बात नहीं रह गई है। इसका सीधा असर धान की नर्सरी पर पड़ेगा। सभी मान रहे हैं कि जल संकट के कारण धान की अगैती फसल को नुकसान होना तय है। मॉनसून रास्ते में अटक गया तो फसल की बुआई भी पिछड़ जाएगी। आम के बागों में भी सिंचाई की दिक्कत खड़ी हो गई है। बागवान कह रहे हैं फसल पर कीट का प्रकोप पहले से ही है, अब सिंचाई नहीं होने के कारण फसल खराब होने का खतरा और भी बढ़ गया है। पानी की कमी से गाय-भैंसों का दूध भी घटने लगा है और पशुपालकों की आमदनी घट रही है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश का बड़ा इलाका पहले ही 'डार्क जोन' घोषित किया जा चुका है। यहां भी भूजल स्तर बहुत नीचे जा चुका है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मक्के की फसल पर भी सूखे का असर पड़ा है। किसानों का कहना है कि खेत में नमी सूख जाने के कारण मक्के के दाने कमजोर हो रहे हैं।
बूंद-बूंद को तरसा बुंदेलखंड
बुंदेलखंड में एक बार फिर पानी के लिए हाहाकार मच गया है। गर्मी तांडव कर रही है, नदियों की धार सूखने लगी है और जलाशयों में पानी खत्म हो चुका है। बुंदेलखंड के शहरों और गांवों को पाइप से पेयजल उपलबध कराने की योजना अभी तक जमीन पर नजर नहीं आई है और सरकारी से लेकर निजी हैंडपंप तक सूखने लगे हैं। पानी की कमी इस कदर है कि बुंदेलखंड के महोबा, चित्रकूट जिलों में पानी बिकना शुरू हो गया है और झांसी में जल्द ही पानी के टैंकर सड़कों पर उतरने पड़ सकते हैं। आसपास के जिले भी इसी समस्या से दोचार हो रहे हैं। संगम की नगरी प्रयागराज में बूंद-बूंद पानी के लिए जंग के आसार हैं तो फतेहपुर में लोगों को पानी की तलाश में अपने गांवों से मीलों दूर जाना पड़ रहा है।
हालांकि सरकार हाथ पर हाथ धरे नहीं बैठी है। पानी की किल्लत देखकर बुंदेलखंड में कई जलाशयों को सरकारी नलकूप से भरने के निर्देश दिए गए हैं और गांवों में पानी के टैंकर भेजने को कहा गया है। मगर नदियों में अवैध खनन के कारण बुंदेलखंड में समस्या और भी गंभीर हो गई है। बांदा शहर में खनन माफिया ने केन नदी की धार ही रोक दी है। पिछले हफ्ते बांदा के जिलाधिकारी ने दौरा किया और केन नदी पर दुरेड़ी मोरंग की खदान के पास नदी की जलधारा रोकने पर कार्रवाई के निर्देश दिए। साथ ही वहां लेखपाल भी तैनात किए गए हैं, जिनका काम नदियों की धारा रोकने वालों पर नजर रखना है।
मगर समस्या खेतों और नलों तक ही सीमित नहीं है। बुंदेलखंड हले ही बेसहारा और आवारा मवेशियों की समस्या से परेशान है। पानी का संकट गहराने से बड़ी तादाद में जानवर सड़कों पर बढ़ गए हैं। बुंदेलखंड में पिछले तीन-चार साल से अन्ना प्रथा के तहत चारे-पानी के अभाव में जानवरों को सड़कर पर छोड़ा जा रहा है। एक सरकारी अनुमान है कि बुंदेलखंड में ही 2 लाख से ज्यादा जानवर सड़कों पर हैं। बुंदेलखंड में पानी की समस्या पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता अनिल शर्मा बताते हैं कि पानी घटने के कारण मवेशी ही नहीं लोगों का भी गांवों से पलायन तेज हुआ है। चित्रकूट के पाठा इलाके में, महोबा में और झांसी में भी सैकड़ों गांवों से लोग पानी के संकट के कारण ही पलायन कर रहे हैं। इस बार मॉनसून देर से आने के अंदेशे और बारिश कम रहने की भविष्यवाणी भी परेशान कर रही है। इस कारण हालात एक महीने से पहले सुधरने के आसार नहीं हैं। शर्मा कहते हैं कि लोकसभा चुनावों के कारण पुराने नलकूपों की दोबारा बोरिंग और जलाशयों की सफाई का काम भी अटक गया था, जिसके कारण परेशानी और भी बढ़ गई है।
पाताल में पहुंचा भूजल स्तर
प्रदेश के बड़े शहरों में भी पेयजल का संकट गहरा गया है। लखनऊ के साथ ही प्रयागराज, मेरठ, झांसी, वाराणसी, बरेली जैसे शहरों में ज्यादातर आबादी को बोरिंग का पानी ही दिया जाता है, जिसे ओवरहैंड टैंक के जरिये घरों में पहुंचाया जाता है। भूजल स्तर गिरने से पेयजल का संकट खड़ा हो गया है। लखनऊ में नई बसावट वाले इलाकों में नलों से कुछ देर के लिए ही पानी पहुंचाया जा रहा है। प्रयागराज में ज्यादातर हैंडपंप सूख चुके हैं। वाराणसी जैसे शहर भी पीने के पानी के लिए तरस रहे हैं। लखनऊ के गोमतीनगर इलाके में भूजल स्तर 24 फुट गिर गया है और इंदिरानगर में 18 फुट नीचे चला गया है। ऐसे में बोरिंग से कम पानी आ रहा है और हैंडपंप सूखने लगे हैं। बोतलबंद पेयजल बिकना तो आम बात है, लेकिन लखनऊ और दूसरे जिलों में आम इस्तेमाल का पानी भी 20 रुपये बाल्टी के भाव बिक रहा है।
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