तमिलनाडु में गहराया रोग सुबह-शाम पानी खोजते लोग | टी ई नरसिम्हन / June 05, 2019 | | | | |
मध्य चेन्नई के मायलापुर में रहने वाली 40 वर्षीय कस्तूरी रोज सुबह 5 बजे से पहले और रात्रि 10 बजे के बाद घर से आठ बरतन लेकर अपने पति के साथ पानी की खोज में निकल जाती हैं। अगर वे खुशनसीब रहे तो 1-1.5 किलोमीटर के सफर में वे अलग अलग हैंडपंप या टंकियों से पांच बरतन भर लेंगे। उनके लिए यह पानी पीने, खाना बनाने, धुलाई, सफाई और नहाने का एकमात्र स्रोत है। चेन्नई और तमिलनाडु के दूसरे क्षेत्रों में यह एक आम समस्या है जहां भूजल स्तर में भारी गिरावट और तालाबों के सूखने से खेती की भूमि बंजर भूमि में तब्दील होती जा रही है।
चेन्नई के चार प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर पिछले सात दशक में सबसे निचले स्तर पर पहुंच गया है और इस समय कुल क्षमता का केवल 1.3 प्रतिशत पानी ही उपलब्ध है। पिछले 74 सालों में यह सबसे कम उपलब्ध पानी की मात्रा है जिसके चलते यह सबसे गंभीर सूखे के आसार नजर आ रहे हैं। इसके चलते पानी के निजी आपूर्तिकर्ता शहर में एक टैंकर के 2,500 से 6,000 रुपये तक ले रहे हैं, जो वाहन की कुल क्षमता पर निर्भर करता है। प्रशासन पानी की इस कमी के लिए कम बारिश को जिम्मेदार ठहराता है लेकिन विशेषज्ञ दावा करते हैं कि मानवीय कारकों के चलते सूखे के हालात बने हैं। उन्हें भय है कि इस बार का सूखा साल 2017 से भी खतरनाक हो सकता है। पिछले साल राज्य में औसत वर्षा 81 सेमी थी जबकि सामान्य वर्षा स्तर 96 सेमी है। जनवरी महीने में राज्य में 10 सेमी वर्षा हुई है।
राज्य के 32 जिलों में से 24 ने खुद को सूखा ग्रस्त घोषित कर दिया है। तमिलनाडु के अधिकांश जलाशयों में सामान्य सस्तर से 26 प्रतिशत कम पानी उपलब्ध है। हालांकि राज्य के 6 प्रमुख जलाशयों (भवानी, मेटूर, वैगैयी, पराम्बिक्कुलम, अलियार और शोलेयर) में इस साल 16 मई 2019 को पानी का स्तर (0.753 अरब घन मीटर) पिछले साल 17 मई 2018 के मुकाबले (0.419 अरब घन मीटर) तुलनात्मक रूप से अधिक है लेकिन इनकी कुल क्षमता 4.229 अरब घन मीटर है। तंजाबुर, त्रिची, तिरुवरुर और नागापट्टिनम जिलों का 14 लाख एकड़ का इलाका डेल्टा क्षेत्र है और यहां नदी तथा नहरों से 47 प्रतिशत क्षेत्र की सिंचाई होती है। इन क्षेत्रों में ही तमिलनाडु के लिए धान की फसल उगाई जाती है। राज्य के संपूर्ण धान उत्पादन में डेल्टा क्षेत्र के कुल 8 जिले 45.4 प्रतिशत का योगदान करते हैं। इसमें तिरुवरुर और तंजाबुर क्रमश: 10.7 प्रतिशत और 9.9 प्रतिशत हिस्सेदारी के साथ सबसे आगे हैं। हालांकि मेटूर बांध से पानी के अपर्याप्त बहाव के चलते डेल्टा क्षेत्र में खेती बहुत अधिक प्रभावित हुई है जबकि यह क्षेत्र राज्य के लिए धान का एकमात्र स्रोत है। विशेषज्ञ बताते हैं कि कमजोर दक्षिण-पश्चिम मॉनसून ने कृषि को भारी नुकसान पहुंचाया है और 90 दिन वाली फसलों की बुआई का नाश कर दिया है। तंजावुर जिला कावेरी किसान सुरक्षा संघ के महासचिव एस आर विमलनाथ कहते हैं, 'इस बार बारिश 27 प्रतिशत कम हुई है। आमतौर पर डेल्टा क्षेत्र में अप्रैल महीने के बाद पानी की कमी होना शुरू होती है लेकिन इस बार यह फरवरी महीने में ही शुरू हो गई। टैंक, तालाब और झीलों में कहीं भी पानी नहीं है।' भूजल की कमी के चलते तंजावुर के किसान कुरुवई फसलों (स्थानीय मौसमी फसलों) को नहीं बो रहे। यहां भूजल की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है और बोरवेल 500 मीटर तक जा चुके हैं। पीडब्ल्यूडी का कहना है कि तंजावुर में औसत भूजर स्तर पिछले साल के 3.1 मीटर से गिरकर अप्रैल 2019 में 3.58 मीटर पर पहुंच गया।
गन्ने की उपलब्धता नहीं होने से राज्य की कम से कम 10-12 चीनी मिलों ने परिचालन बंद कर दिया है। तमिलनाडु कावेरी किसान संगठन के महासचिव पी आर पांडियन ने बताया कि साल 2011 में तमिलनाडु के किसान 5 लाख एकड़ क्षेत्र में कुरुवई (छोटी अवधि की फसलें) फसलें उगाते थे। वह कहते हैं, 'आज सूखे के चलते यहां कोई भी छोटी अवधि वाली फसल नहीं होती। कुछ सालों तक किसान सांबा सत्र में फसल उगाने में सक्षम थे। पिछले 8 सालों (2011-19) में करीब 10-20 प्रतिशत कृषि योग्य रकबा कम हो गया है।' राज्य के मुख्यमंत्री के पलानीस्वामी की सरकार ने पानी की किल्लत दूर करने के लिए 823.64 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है लेकिन किसान और कार्यकर्ताओं का मानना है कि उनकी समस्याओं को दूर करने के लिए अधिक प्रयास नहीं किए गए हैं। उन्होंने आरोप लगाए कि जल उपलब्धता के अनियमिंत प्रबंधन और योजनाओं की कमी के चलते पानी की किल्लत हुई है।
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